M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 12

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 12

मधू अपने सह मनज़लह मकान के तीसरे मनज़ल की ग्लेरी मैं खड़ी गांव मैं जारी आग और खून के खील को देख रही थी। सारे गांव पर धवीं के काले बादल छाे हुए थे। जो लमहह लमहह गहरे होते जा रहे थे। फ़लक शगाफ़ वहशयानह नारों ، दर्द तकलीफ़ ، बे बसी मैं डोबती चीख़ों ، आह व पकार से माहोल मैं एक बे हनगामह शोर पीदा हो रहा था की टोलयां हाथों मैं ननगई तलवारीं ، तरशोल लिए वहशयानह नारे लगाते गलयों से गज़र रहे थे और मर काट कर रहे थे।
उस मकान के आप पास की मकानों से धवां आथ रहा था तो की मकानों से आग की लपटीं आथ रही थीं । माहोल मैं बसी अनसानी गोशत के जलने की बदबो उस बात की गवाही दे रही थी कि उस आग मैं पता नहीं कतने अनसानी जिसम जाल रहे हैं । लो ग वहशयों की तरह नहते अकलोते अनसानों पर टोट पड़ते और अौन की अौन मैं जीते जागते इन्सान को मरदह लाश मैं तबदील कर दीते। उस ने अपनी आँखों से एसे ख़ोफ़नाक मनाज़र पहले कभी नहीं दीखे थे। अगर वह किसी ज़ख़मी भी देख लीती तो उस के जिसम मैं बहता खून देख कर उसे चकर आने लगते थे। लेकिन वही अपनी आँखों से लाशों को सड़कों पर गरती देख रही थी। अनसानों को आग मैं जिन्दा जलती देख रही थीं । अपनी आँखों से अोरतों के उसमतीं ताराज होती देख रही थी।
वहशी दरनदे बरबरीत का ननगा नाच रहे रहे थे। उन को रोकने वाला कोई नहीं था हर टोली के साथ अमित भाई पटेल था हर खून ख़राबे आतश ज़नी मैं वह पेश पेश था उस के काले करतोत को देख कर उस के दिल मैं अमित के लिए नफिरत बड़ती जा रही थी। उस का दिल जान रहा था वह भी अपने हाथों मैं कोई तलवार या तरशोल उठाे और उस तलवार या तरशोल से अमित का सर क़लम कर दे। या तरशोल से अमित के सारे जिसम को छीद कर उसे तड़प तड़प कर मरने के लिए जिन्दा छोड़ दे।
उस के म बाप नीचे मनज़ल पर थे। उस के पूरे मकान मैं वही तीन अफ़राद थे। वह और उस के म बाप एक बहन की शादी होगई थी और भाई बाहर रहते था यह हनगामह शुरू हुआ तो उस के पता जी ने उसे ओपर जाने के लिए कहा और खुद नचली मनज़ल पर दरवाज़ह बनद कर के खड़क्यों से उस ख़ोनी हनगामे को देखने लगए।
क्यों । । । जिन्दगई मैं पहली बार उस क़िस्म के नज़ारे देख रही हो ना देखा आग और खून का खील खीलने मैं कितना मज़ह आता है ‘‘ अचानक आवाज़ सुन कर वह चौंक पडे।
वह उस तरह तेजी से मड़ी जैसे किसी बछो ने उसे डनक लिया हो। पलटने से क़बल उस ने जो अनदाज़ह लगाया था वह अनदाज़ह मजिसम उस के सामने था उस के सामने अमित भाई पटेल खड़ा था तुम वह उसे नफिरत से देखती बोली।
हां । । । मैं । । । देखा मेरा खील। । । उन मलछ मसलमानों से चन चन कर बदले ले रहा हूं । अमित शीतानी हनसी हनसता हुआ बोला।
शीतान के पास ताक़त बहुत होती है लेकिन जब उस का वक़्त आता है तो एक मामोली बचह भी उसे उस के अनजाम को पहनचा दीता है ‘‘
मेरी ताक़त अमर है कतनी तनज़ीमैं हैं मेरे साथ। मेरी ताक़त की कोई अनतहा नहीं । बी जे पीआर एस एस ، बजरंग दल वशो हनदो परीशद सब मेरे ग़लाम हैं । मेरे अशारों पर नाचते हैं । मेरे एक इशारे पर अपना तन मन धन क़रबान करने को तयार हो जाते हैं । ‘‘
तुम यह बता यहां क्यों आए वह नफिरत से बोली।
तुम्हें यह समझाने के तुम उस सरदार जी का ख़याल अपने दिल से नकाल कर मेरी हो जा। वरना मैं तो तुम्हें पा कर रहूं गा तुमहारे उस सरदार जी का वह हशर करों गा कि उसे सुन कर दुनिया कानप अठे गई। अमित बोला।
मरने के बाद भी मैं तुमहारे बारे मैं सोच नहीं सकती तो जीते जी तुमहारे बारे मैं क्या सोचों गई। और जीते जी तो छोड़ो मरने के बाद भी मेरे दिल से जिम्मी का ख़याल नकाल नहीं सकता। यह जिसम रोह मेरा सब कुछ जिम्मी का है मेरे जिसम ، रोह हर चीज़ पर जिम्मी का हक़ है तुमहारे जैसे कुते उसे छो भी नहीं सकते। ‘‘
जद न करो मान जा। । । मुझे ग़सह मत दला। । । वरना। । । जिम्मी को तुमहारी जिन्दगई से स तरह नकाला जाए मुझे खूब अछी तरह आता है जिस जिम्मी पर तुम्हें इतना नाज़ है ، फ़ख्र है । । वह जिम्मी तुमहारी जिन्दगई से उस तरह नकल जाएगा कि तुमहारी सूरत पर थोकना भी पसन्द नहीं करेगा। ‘‘
जीते जी तो यह ममकन नहीं है । । अमित। । । जीते जी तो हम एक दूसरे से जुदा नहीं हो सकते शायद मौत हमैं एक दूसरे से जुदा कर दे। तुम हम दोनों को जुदा ही करना चाहते होना। । । तो आ। । । मेरा लगा घोनट दो। । । अपने तरशोल ، तलवार मेरी जान ले लो। तुमहारी तुमना पोरी हो जाए गई। मैं और जिम्मी जुदा हो जाईं गए। वह बोली।
मैं तुम दोनों को उस तरह जुदा नहीं करों गा। अमित ज़हरीली हनसी हनसता हुआ बोला। तुम दोनों को कुछ उस तरह जुदा करों गा कि तुम दोनों जिन्दा तो रहो गए लेकिन एक दूसरे को अपनी सूरत दखाने के क़ाबल नहीं रहोगए। ता हयात एक दूसरे की सूरत देखना भी पसन्द नहीं करो गए। आज जो एक साथ जीने मरने की क़समैं ख रहे हो। । । ख़वाब देख रहे हो। । । उस के बाद एक दूसरे की परछाई से भी नफिरत करने लगो गए। ‘‘
पानी मैं लकड़ी मारने से पानी जुदा नहीं होता है । । अमित। । । सको तो हमैं जुदा करने के लिए तुमहारे पास जो भ तरकीब है आज़मा लो। जो सितुम हम पर करना है कर लो। फिर भी हम एक दूसरे के ही रहीं गए। कभी एक दूसरे से जुदा नहीं हूं गए। ‘‘
उस की बात सुन कर अमित के चहरे पर गुस्से के तासरात अभर आए। मुझे पते था तुमहारा यही जवाब हो गा। तुम उस सरदार जी के पीछे ऐसी दयवानी हुई हो कि तुम्हें उस के अलओह कुछ नहीं सोझता। इसलिए मैं पूरे अनतज़ाम से आया हूं । तुमहारे म बाप को मैं ने नीचे के कमरे मैं बनद कर दिया हूं । अब कोई भी ओपर नहीं आ सकता। अगर तुम चीख़ो चला भी तो तुमहारी मदद को कोई नहीं आने वाला। क्यों कि चारों तरफ़ चीख़ीं ही चीख़ीं बखरी हुई हैं । अब मैं तुमहारे साथ सहाग रात मनां गा। तुमहारे जिसम से खीलों गा। तुमहारे जिसम के एक एक हसे से लज़त हाशिल करों गा। और तुम्हें कहीं मुंह दखाने के लाक़ नहीं रखों गा। और उस के बाद फिर मैं अपनी जिन्दगई के उसी सब से ज्यादा लज़त नाक तजरबह का एक एक लफ़्ज़ जा कर तुमहारे अाशक़ जिम्मी को सनां गा। तुम ही सोचो। मेरे उस लज़त नाक तजरबे की रोदाद सुन कर तुमहारे अाशक़ के दिल पर क्या बीते गई। तुमहारे जिसम के जिस हसे को छोने की कोशिश करेगा। वहां उसे मेरा चहरह दखाई देगा। वह हसह उसे मेरी लज़त की दासतान की कहानी सनाे गा। आहा। । । आहा। । । ‘‘
नहीं अमित की बात सुन कर वह कानप अठी। तुम ऐसा नहीं कर सकते। । । तुम ऐसा नहीं कर सकते।
मैं ऐसा ही करने आया हूं ऐसा करने के बाद तुम जिम्मी के क़ाबल नहीं रहोगई। जिम्मी तुमहारी सूरत देखना भी पसन्द नहीं करेगा। उस के बाद तुम मेरे पीरो पर गर कर खुद को अपनाने की भीक मानगों गई। और मैं तुम्हें अपना।ं गा। लेकिन तुम्हें अपनी बयाहता बन कर नहीं रखों गा। रखील बन कर रखों गा और जिन्दगई भर तुमहारे जिसम से खीलता रहूं गा। ‘‘ कह कर वह उस पर टोट पड़ा।
नहीं वह चीख़ी। लेकिन उस की चीख़ को सनने वाला कोई नहीं था बचा। । । बचा। । । उस ने मदद के लिए लोगों को पकारा। लेकिन जब चारों तरफ़ लोग खुद उसमतीं लोटने मैं मसरोफ़ थे को भला उस की उसमत बचाने उस की मदद को कौन आता।
उस के और अमित के दरमयान छीना झपटी जा रही थी। हर छीना झपटी के साथ उस के जिसम से एक कपड़ा अतरता थाया तार तार होता था वह किसी वहशी दरनदे की चनगल मैं फनसी हरनी की तरह इधर उधर दौर रती फिर रही थी। उस के जिसम से कपड़े कम से कम होते जा रहे थे। उस का जवान मध माता शरीर अमित के जिसम मैं होस की आग भड़का कर और उसे दयवानह कर रहा था
आख़र वह बे बस हो कर टोट गई। अमित किसी भोके भीड़ये की तरह उस पर टोट पड़ा और उस के जिसम को नोचने लगा। वह उस के जिसम के एक एक अनग को नोच रहा था

Contact:-

M.Mubin

303- Classic Plaza, Teen Batti

BHIWANDI- 421 302

Dist. Thane ( Maharashtra)

Mob:-09322338918

Email:- mmubin123@gmail.com

0 comments:

Post a Comment