M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 3

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव
लेखकः-ःएम.मुबीन
Part 3

माामलह मामोली था मगर एक अजीब सी बे चैनी उस के अन्दर समा गई थी। दुकान से गाहक ग़ाब हो गए थे। इसलिए दुकान खली रख कर कोई फ़ादह नहीं था उस ने चाय बजे दुकान बनद कर दी और रघो और राजो से कहा कि वह घर चले जाए। ‘‘
हालात का जाज़ह लीने के लिए वह चोक तक गया। सारा हनगामह चोक मैं ही हुआ था सड़कों से भीड़ ग़ाब होगई थी। अका दका लोग दखाई दे रहे थे। घरों के दरवाज़े भी बनद थे। चोक के पास पोलस की एक गाड़ी खड़ी नज़र आई। ज्यादा तर दोकानीं बनद थीं । एक दो जगह जली चीज़ों का ढीर दखाई दे रहा था तो एक दो जगह पथरों और टोटी हुई बोतलों की कानच पडे थीं । दोनों जानब से पत्थर और कानच की बोतलों का तबादलह हुआ था इसलिए दोनों जानब दोनों चीज़ों का ढीर था
सवीरे उस ने चोक की सजओट देखी थी। वह अब तबदील होगई थी। चोक मैं एक दो गुजराती मैं लखे बोरड अब भी आवीज़ां थे। वह गुजराती पहार तो नहीं पा रहा था लेकिन उन बोरडों पर लगए भगवा झनडे और उन पर लखी भगवा तहरीरीं उन बोरड पर क्या लखा है उस बात की ग़माज़ी कर रहे थीं । लोग दो चार चार के गरोह मैं खड़े हो कर एक दूसरे से बातीं कर रहे थे। वह क्या बातीं कर रहे थे उस के तो कुछ भी पले नहीं पड़ रहा था उस ने एक दो आदमी से जानने की कोशिश भी की कि माामलह क्या हेास पर तो उन्हों ने उसे घोर कर देखा फिर बोले। । । अरे जो माामलह था खतुम हो गया सरदार जी। अब यहां बीकार रुक कर कोई फ़ादह नहीं । अपने अपने घरों को जा उसी मैं भलाई है यहां खड़े रहीं गए तो दोबात होगई और माामलह और बड़ जाएगा। ‘‘
पागल लोग हैं । अरे पागलों के क्या मुंह लगा जाए। ‘‘
आज तक ऐसा नहीं हुआ। अब ऐसा होना भी नहीं चाहये। ‘‘
अरे यह तो शरवाात है आगे आगे दीखे होता है क्या। ‘‘
उसे लगा उस का वहां रकना अक़लमनदी की बात नहीं है पोलस उसे मशतबह नज़रों से देख रही है वह वहां से वापिस दुकान पर चला आया। और ओपर अपने कमरे मैं जा कर रात का खाना बनाने लगा। दोपहर का खाना अब तक पीट मैं था इसलिए रात के खाने की गनजाश तो नहीं थी। फिर भी उस ने थोड़ा सा खाना ख लेना का सोच लिया रात खाना ख कर साने के लिए लीटा तो नीनद आँखों से ग़ाब थी। भला रात दस बजे उसे नीनद आ सकती थी। बे चैनी सी करोटीं बदलता दिन भर के वाक़ाात के बारे मैं सोचने लगा।
सवीरे जो कुछ हुआ। उस ने देखा महसोस क्या वह एक खुशगवार तजरबह था लेकिन शाम को जो कुछ हुआ उस ने अपनी आँखों से देखा उस के लिए एक नाखुशगवार तजरबह था माामलह कुछ भी नहीं था और माामलह काफ़ी बड़ गया। माामलह उस से ज्यादा भी बड़ सकता था अगर बड़ जाता तो। यह सोच कर उस के माथे पर ठनडे पसीने की बोनदीं अभर आईं । वह उस के आगे सोच नहीं सकता था उसे लग रहा था अगर माामलह बड़ जाता तो और उस की दुकान भी महफ़ोज़ नहीं रहे। वह एक ना वाबसतह आदमी था दोनों गरोहूं से उस का कुछ लेना दीना नहीं था लेकिन उस की दुकान लोगों की नज़र मैं थी। उस की दुकान उस कारोबार धनदह की लोगों मैं खटकता है शरपसनद उस वाक़ाह पा उस तरह के किसी वाक़ाह की आड़ मैं उसे और उस की दुकान को भी नशानह बन सकते हैं ।
उस बात से उसे इतनी बे चैनी होने लगई कि दिल मैं आया उस दुकानकाम धन्दे को छोड़ कर वह वापिस पंजाब चले जाए और अपने चाचा से कह दे। । । अब मैं उस गांव मैं नहीं रह सकता। न वह काम धनदह कारोबार कर सकता हूं । तुम चाहो तो वह दुकान फ़रोख़त कर दो कसी को कराे पर दे दो। अब मुझ से यह काम नहीं हो सकता। फिर उस ने सर झटक दया। इतनी छोटी छोटी बातों से अगर वह घबरा जाएगा तो फिर जिन्दगई जी चका।
करोटीं बदल बदल कर वह सोने की कोशिश कर रहा था कि अचानक अपने मकान के नीचे उसे एक मोटर साईकल रकने की आवाज़ सनाई दी।
सरदार जी। । । सरदार जी। । । एक शनासा आवाज़ को सुन कर उस ने फौरन बसतर छोड़ दया। ग्लेरी मैं आ कर झानक कर देखा तो उस के अनदाज़े के मताबक़ जावेद ही था जो उसे आवाज़ीं दे रहा था
अरे जावेद भाई आप उस वक़त। । । उस ने हैरत से पोछा और नीचे अतर आया।
हां अनसटी टयोट का एक रानड लगाे आया था सोचा आप से मिलता चलों । ‘‘
सब ख़ीरीत तो है ना। । । ؟‘‘
हां ख़ीरीत ही है लेकिन कुछ कहा नहीं जा सकता। दिन मैं तो मेरी कमपयोटर कलास के पास कुछ नहीं हुआ। लेकिन फिर भी डर लगा हुआ है कि कहीं शरपसनद रात मैं उसे नुक़सान पहनचाने की कोशिश न कर रहे। इसलिए सोचता हूं आज रात भर जागों । और एक दो दो घंटा बाद जा कर अनसटी टयोट को देखता रहूं । ‘‘
हां । । । जावेद भाई। । । अहतयात करने की बहुत ज़रूरत है डर तो मुझे भी महसूस हो रहा है ‘‘
अरे डर आप को किस बात का सरदार जी। ‘‘ जावेद हनसा। डर तो हम लोगों को होना चाहये।
मीरा कारोबार लोगों की नज़रों मैं खटकता है ‘‘ उस ने कहा।
हां है कारोबार ही तो सारे फ़साद की जड़ है मफ़ाद परसत अपने मफ़ाद के लिए धरम ، मज़हब की आड़ लीते हैं । और छोटी छोटी बातों पर हनगामह खड़ा कर के माामलह को बगाड़ने की कोशिश करते रहते हैं । अब यह सिर्फ़ अीद मीलाद अलनबी की बात ही नहीं है नोरातरी मैं भी मसलमानों को नोरातरी के अतसो मैं शामिल होने से रोका जाता है बहुत से मुसलमान इसलिए अब उस तरह के अतसो मैं शरीक नहीं होते हैं । कहां ज़रा सी बात पर माामलह बगाड़ा जाए। वरनह कुछ सालों क़बल तक तो ऐसी कोई भी बात नहीं थी। नोरातरी मैं गरभा खीलने वाला कौन मुसलमान है कौन हनदो पहचान मैं नहीं आता था अीद मीलाद अलनबी के खाने मैं न शरीक होने की तो पहले बात करने का कोई सोच भी नहीं सकता था वीसे आप को डरने की कोई ज़रूरत नहीं है आप से वह लोग डरीं गए। सिर्फ़ एक बार अपनी करपान खोल कर गांव वालों को बता दीजये। कोई आप की दुकान की तरफ़ आंख उठाने की जरात भी नहीं करेगा। ‘‘
अब करपान से कौन डरता है जावेद भाई। अब बनदोक़ का ज़मानह है पसतोल के सामने मेरी करपान की क्या बसात। वह बोला।
एक दो बातीं कर के जावेद चला गया। उस से कह गया कि वह इतमिनान से सौ जाए। लेकिन नीनद उसे कहां आ रही थी। नीनद तो आँखों से दूर थी। ग्लेरी मैं खड़ा वह सनाटे मैं डोबी गांव की अमारतीं सड़कों और गलयों को देखता रहा। कभी सर उठा कर आसमान को देखने लगता। फिर अचानक ज़हन मैं मधू का ख़याल आया। आज अीद मीलाद अलनबी की छटी की वजह से वह कालेज नहीं गई थी। अब जब गांव मैं यह माामलह हो गया है क्या उस के घर वाली उसे कालेज जाने दीं गए। । । ؟ उस का जवाब वह तलाश नहीं करपा रहा था उस के घर वालों ने अगर कल मधू को कालेज जाने नहीं दिया तो का वह मधू के दीदार से महरोम रहेगा।
उस बात को सोच कर उस अफ़सरदगई छा गई उसे लगा उस लक़ व दक़ सहरा मैं सिर्फ़ मधू ही एक ऐसा नख़लसतान जिस के सहारे वह आगे बड़ने की सोच सकता है जिस के तसोर से वह उस रीगसतान का सफ़र ते कर सकता है लेकिन कतनी अजीब बात है माामलह सिर्फ़ दीदार तक अटका हुआ। उसे मधू के दीदार से ही एक ऐसा रोहानी सकोन मिलता है जिस को वह बयान नहीं कर सकता। सारी उमर उस के सामने मधू का चहरह रहे और वह सारी उमर मधू के चहरे को ताकता रहे। पता नहीं उस के लिए मधू के दिल मैं किस तरह के जज़बात है उस ने अभी तक अपनी किसी हरकत से मधू पर अपनी महबत का इज़हार भी तो नहीं क्या है और यह जरोरी नहीं है कि अगर वह मधू पर अपने प्यार का इज़हार कर दे तो मधू उस के प्यार को क़ुबूल ही करे। यह जरोरी नहीं कि उस के बाद वह मधू से प्यार करना छोड़ दे। कयोनकह प्यार यक तरफ़ह भी तो हो सकता है ममकन नहीं कि दो तरफ़ह भी हो।
दुनिया मैं एसे हज़ारों लाखों लोग हैं जो अपने महबोब से यक तरफ़ह प्यार करते हैं । अपने प्यार का इज़हार भी उस पर कर नहीं पाते। हर किसी को उस के दिल की मराद मल जाए यह ममकन नहीं हर किसी को उस की चाहत उस का प्यार मल जाए यह ममकन नहीं है उस के गांव मैं की लड़कयां उस से प्यार करती थीं । लेकिन वह उन से प्यार नहीं करता था की लड़क्यों ने उस से अपने प्यार का इज़हार क्या था और कहा था अगर वह अनीं नहीं मला तो वह अपनी जान दे दे गई। ‘‘ उन के प्यार के इज़हार के बओजोद उस का दिल नहीं पघला था उस का दिल मैं उन के लिए प्यार का जजबा नहीं जागा था न उस दिल मैं उन के लिए प्यार का जजबा जागा था न उन्हों ने उस के लिए अपनी जान दी थीं । उन की शादी हो गईं तो चप चाप अपने शोहरों के पास चली गईं ।
उस तरह की हज़ारों बातीं ग्लेरी मैं खड़ा बहुत देर तक सोचता रहा। जब उस के क़दम बोझल होने लगए और आँखों मैं नीनद समाने लगई तो चप चाप अन्दर आया और बसतर पर लीट कर बे ख़बर सौ गया।

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