M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 10

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Pat 10

रात बड़ी भयानक थी। सारे गांव को एक परहोल सनाटे ने अपनी लपीट मैं ले रखा था लेकिन ऐसा महसूस हो रहा था गांव के हर घर से एक शोर आथ रहा है सारे गांव पर वहशत तारी थी। ऐसा महसूस हो रहा था कि माहोल मैं बहुत कुछ खोल रहा है एक लओे की तरह। । । एक आतश फ़शां की तरह। । । पता नहीं कब यह फट पडे और फट कर बाहर आ जाए और अपने साथ अपने रास्ते मैं आने वाली हर शे को जला कर राख कर दे। उस की तपश हर कोई महसूस कर रहा था
उसे नीनद नहीं आ रही थी। आज दिन भर टी वी पर जो मनाज़र दखाे गए थे उसे लगा ज़हनों मैं ज़हर अनडीला जा रहा है अला की लकड़यों मैं तील डाला जा रहा है और अब अला पोरी तरह तयार है बस उसे आग बताने की देर है और ऐसी आग भड़े गई शायद भी बझ सके। उसे ऐसा महसूस हो रहा था यह गांव क्या। । । पुर गुजरात। । । पुर भारत। । । उस आग से नहीं बच सकता। वह अपने आप को भी उस माहोल मैं महफ़ोज़ है वह एक ग़ीर वाबसतह शख़स है दोनों फ़रक़ों से उस का कोई तालुक़ नहीं है इसलिए दोनों फ़रक़ों के लिए बे जरर है कोई उस की तरफ़ आंख उठा कर भी नहीं दीखे गा। उस का कोई दुश्मन नहीं है लेकिन एक दुश्मन है अमित भाई पटेल। और यह ऐसा दुश्मन है जो कुछ भी कर सकता है उसे ۱۰۰ आदमयों से जतना ख़तरह नहीं हो सकता था अमित से उसे ख़तरह महसूस हो रहा था व हालात का फ़ादह उठा कर उस से अपनी दशमनी का हसाब चका सकता है इसलिए उसे अपनी हफ़ाज़त का अनतज़ाम करना चाहये। अगर अमित उस पर हमलह करे तो उसे पुर यक़ीन था वह पाँच महनदरों से अकीला मक़ाबलह कर सकता है लेकिन उसे डर था । । अमित अकीला उस पर हमलह नहीं करेगा। वह अपने गरगों के साथ उस पर हमलह करेगा। ऐसी सूरत मैं खुद को बचाना उस के लिए मुश्किल हो जाएगा। अमित जिन जिन तनज़ीमों से वाबसतह था वह तमाम तनज़ीमैं एक पलीट फ़ारम पर जमा होगई थी और उन्हों ने उस क़त्ल आम के ख़लाफ़ भारत बनद का नारह लगाया था बी जे पीआ र एस एस वशो हनदो परीशद बजरंग दल शयो सीना सभी उस बनद मैं शामिल थीं । और यह ते था बनद कामयाब होने वाला है
आज भी दिन भर सारा कारोबार बनद ही रहा। कल तो मकमल तोर पर बनद रहेगा। उस बनद की सयासत से क्या हाशिल होने वाला है उस की कुछ समझ मैं नहीं आ रहा था उस ने अपने बचपन मैं पंजाब मैं उस तरह का बनद की बार दीखे थे। जब भी कोई आदमी दहशत गरदों के हाथों मारा जाता उस के ख़लाफ़ उसी तरह का बनद पकारे जाते थे। बनद नाकाम भी होते थे और कामयाब भी। लेकिन उन से हाशिल कुछ नहीं हो पाता था न मरने वालों को न मारने वालों को। इसलिए उसे बनद के नाम से नफिरत थी। बहुत दनों के बाद वह उसी तरह का बनद कल देखने वाला था वह जो एक ग़ीर वाबसतह शख़स था उस बनद से इतना ख़ोफ़ज़दह था जो लोग उस वाक़ाह से वाबसतह थे उन का क्या हाल हो गाास ख़याल के आते ही उस ने सोचा गांव के हालात का जाज़ह लिया जाए। रात के साड़े दस बजे रहे थे। अकीले उस तरह गांव मैं नकलने से उसे पहली बार ख़ोफ़ महसूस हो रहा था लेकिन हिम्मत कर के वह नकल पड़ा।
गांव पर सनाटा छएा हुआ था लेकिन जगह जगह दस दस बीस बीस को टोलयों मैं गोल बैठे थे। सलाह व मशोरह कर रहे थे। एक दूसरे से सरगोशयां कर रहे थे। उसे देख कर वह चौंक पड़े। मशकोक नज़रों से उसे देखने लगते फिर जब अनीं महसूस होता यह उन के लिए बे जरर आदमी है तो फिर अपने अपने कामों मैं मशग़ोल हो जाते। मनसोबों और सरगोशयों मैं ।
वह जावेद से मल कर उस की हालत जानना चाहता था मसलम महलों की सूरत हाल देखना चाहता था ۱۵،۲۰ हज़ार की आबादी मैं मसलम आबादी मुश्किल से ۵۰۰ के लग भग होती तक़रीबा ۵۰ ،۶۰ घर वह भी गांव एक कोने मैं । ज़ाहर सी बात है कि वह ख़ोफ़ व दहशत से समटे होते हो गए। महलह के नकड़ पर लोगों का एक हजोम पहरह दे रहा था उसे आता देख सब चौंक पडे और उन्हों ने उसे घीर लिया
अरे जिम्मी। । । तुम इतनी रात गए यहां कैसे आए जावेद उसे देख कर भीड़ को चीरता हुआ उस के पास आया।
आप की ओर आप के मोहल्ले की सूरत हाल का जाज़ह लीने आया हूं । । । जावेद भाई उस ने कहा।
अभी तो सब ठीक है लेकिन जो हालात है उस से ऐसा महसूस होता है कल कुछ भी ठीक नहीं हो गा। जावेद मएोसी से बोला।
क्या मतलबोह बोला आप के कहने का मतलब क्या हे
कल क्या हो सकता है कुछ अनदाज़ह नहीं लगाया जा सकता
अगर ख़तरह है तो आप लोग उस गांव को छोड़ दीं ‘‘
गांव छोड़ कर कहा जाईं । चारों तरफ़ ख़तरह मनडला रहा है मैं ने आस पास के तमाम शहरों की रपोरटीं जमा कर ली है हर जगह से एक ही जवाब मिलता है रहां भी वही माहोल है ख़तरह उन पर भी मनडला रहा है तो भला वह हमैं पनाह क्या दीं गए। हम लोग सीनकड़ों सालों से उस गांव मैं आबाद हैं । आज तक उस गांव की यह रोएत रही है कि सारा हिन्दोस्तान सलगता रहा लेकिन यहां कुछ नहीं हुआ। खुद करे यह रोएत क़ाम रहे। हम अपनी तोर पर अपनी हफ़ाज़त के लिए हमारे पास लकड़यां भी नहीं है कुछ दिन क़बल तलाशी के नाम पर वह भी पोलीस जबत कर के ले जाचकी है ‘‘ जावेद बोला।
उस ने तमाम लोगों की तरफ़ देखा। हर चहरे पर ख़ोफ़ लहरा रहा था आँखों मैं बे बसी छाई हुई थी। ख़तरों के ख़दशात से चहरह तना हुआ था
जावेद भाई दिन भर हम एक एक के चहरे को पड़ते रहे। कल तक जो हमारे यार थे आज उन की आनखीं भी बदली बदली हैं । हर कोई अमित के रंग मैं रंग गया और अमित की बोली बोलने लगा है यह आसार अछे नहीं हैं । एक आदमी बोला।
गज़शतह दनों उस गांव मैं वह स कुछ हुआ जो गज़शतह सौ सालों मैं नहीं हुआ था ऐसा लग रहा है जैसे यह सब पहले से ते था मनज़म तोर पर उस बात की पोरी तयारी की जा रही थी। दोसरा आदमी बोला।
तो हम क्या करीं ؟‘‘
हम हमलह नहीं कर सकते तो बचा भी नहीं कर सकते। बचा के लिए हमारे पास लाठयां भी तो नहीं है ‘‘
अललह बहुत बड़ा है वह सब ठीक कर दे गा। ‘‘
हमैं अललह पर भरोसह है लेकिन उस के बनदो पर नहीं । ‘‘
वह लोग आपस मैं बातीं कर रहे थे और वह तमाशाई बन चप चाप एक दूसरे के चहरों को देख रहा था
देखते होनी को कोई टाल सकता। अगर ओपर वाली ने यह हमारे मक़दर मैं लिख दिया है तो यह हो कर रहे अग दिल बरदाशतह होने की ज़रूरत नहीं है उस का सामना करने के लिए खुद को तयार करना चाहये। और अपने अन्दर उस तरह के हालात का मक़ाबलह करने की हिम्मत जमा करनी चाहये वरना वक़्त के आए गा हम कुछ भी नहीं कर पाईं गए। सिर्फ़ झोटे ख़ोफ़ की वजह से हमारी जानीं जाईं गई। जावेद हर किसी को दलासह दे रहा था
थोड़ी देर रुक क वह वहां से वापिस दुकान की तरफ़ चाल दया। उस बार लोटा तो चोक पर उसे की लोगों ने घीर लिया
क्यों सरदार जी कहां से आ रहे हो
मसलमानों के मोहल्ले से आ रहे होना
क्या चाल रहा वहां ؟‘‘
सना है वहां पाकिस्तान से हथयार आ गए हैं । पूरे मोहल्ले का बचह बचह महलक हथयारों से लीस है कल वह उस गांव पर हमलह कर दीं गए और उस गांव का एक आदमी को भी नहीं छोड़ीं गए। कसी ने कहां ।
अन के पास पाकिस्तान से हथयार कहां से आ सकते हैं । उन के पास तो अपनी हफ़ाज़त के लिए लाठयां भी नहीं है हथयार तो आप लोगों के पास है पाकिस्तान के हथयार का शोशह छोड़ कर आप लोगों को अपनी हफ़ाज़त के लिए मसलह कर दिया गया है यह तो वक़्त बताे गा आप उन हथयारों से अपनी हफ़ाज़त करीं गए या हमलह करीं गए वह बोला।
साला यह भी उन का तरफ़ दार लगता है कसी ने उस की बात सुन कर जाल कर कहा।
देखये वहां ऐसा कुछ नहीं है वह लोग तो खुद डरे सहमे हुए हैं । उस ने कहा और आगे बड़ गया।
वापस आ कर वह बसतर पर लीट गया। लेकिन नीनद उस की आँखों से कोसों दूर थी। ऐसी हालत मैं भला कसे नीनद आ सकती थी। उसे महसूस हो रहा था जैसे उस के चारों तरफ़ एक अला दहक रहा है गांव के चारों तरफ़ एक अला दहका हुआ है जिस की आग आगे बड़ रही है गांव को हर किसी को अपनी लपीट मैं लीने के लिए।

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