M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 14

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 14 Last

कभी लगता तोफ़ान थम गया। ओ र कभी लगता यह तो आग़ाज़ था अभी उरूज बाक़ी है गांव का तोफ़ान थम भी गया तो उस से कोई फ़रक़ नहीं पड़ता रहा था चारों तरफ़ तोफ़ान उठा हुआ था आस पास के सारे गांव अलाक़े जाल रहे थे। हर जगह वही मनाज़र थे जो नोटया मैं दीखे गए थे। वही वाक़ाात दहराे जा रहे थे। जो नोटया मैं पेश आए थे।
हर गांव मैं एक अमित पटेल सा राकशस मौजूद था गांव मैं एक भी मुसलमान नहीं बच्चा था या तो वह आग मैं जाल कर मर गए थे। या उन की बे वारिस लाशीं गांव की सड़कों पर सड़ चकी थीं । या फिर वह जान बच्चा कर किसी तरह गांव से भागने मैं कामयाब हुए थे। और क़रीबी शहर के एक पनाह गज़ीं कीमप मैं कसमपरसी की जिन्दगई गज़ार रहे थे।
पूरे गांव पर एक पर होल सनाटा था हर चहरह तना हुआ था तने हुए चहरे पर न तो पशीमानी का तासरात थे और न ही फ़ातहानह जज़बात मुस्तक़्बिल के ख़ोफ़ से एक तना हर एक किसी के चहरे पर था अमित भाई पटेल जैसे लोगों के चहरों पर फ़ातहानह तासरात थे। और वह एक एक लमहह का जशन मना रहे थे। लोगों को जमा कर के तक़रीरीं करते। अपने कारनामे सनाते और उन को उन के कारनामों पर मबारकबाद दीते अालान करते।
यह अखनड भारत की राह मैं पहला क़दम है । । ‘‘
चल पडे हैं । । । अब मनज़ल दूर नहीं । । । ‘‘
आज गुजरात। । । कल दूसरी रयासत। । । ‘‘
मलक मैं एक भी। । । मलछ नहीं बच्चे गा। । । ‘‘
मुसलमान या तो क़बरसतान जाईं गए। । । या पाकसतान। । । ‘‘
अब गांव मैं धीरे धीरे ख़ाकी वरदयां दखाई दीने लगई थीं । अख़बार के रपोरटर और टी वी चैनल के कीमरह मीन आने लगए थे। लेकिन उन को जो कुछ हुआ उस की कहानी सनाने वाला कोई नहीं था वह पनाह गज़ीं कीमपों से लोगों की कहानयां सुन कर आते और उन के लिए जले घरों की मन्ज़र कशी कर के ख़बरीं बनाते।
गांव के लोगों के ज़बानों पर जैसे ताले लगए हुए थे। उन को सख़ती से हकम दिया गया था कि वह अपनी ज़बान न खोले। । । अगर किसी ने ज़बान खोली तो उस से सख़ती से पेश आया जाएगा। परीस रपोरटर लोगों से पूछते कि क्या उस गांव मैं उस तरह के वाक़ाात हुए तो जवाब मैं वह ख़ामोश रहते या कुछ घाग क़िस्म के लोग उस बात को झटलाते कहते यह गांव के शरीफ़ लोगों को बदनाम करने की साज़श है
उस का दिल चाहता कि वह कीमरे सामने जा कर खड़ा हो जाए और जो कुछ उस ने अपनी आँखों से देखाजो कुछ अपने कानों से सना जो कुछ उस गांव मैं हुआ उस का एक एक लफ़्ज़ सना दे। लेकिन वह ख़ोफ़ज़दह था उस डर था अगर उस ने सचाई बयान की ज़बान खोली तो उस का अनजाम भी जावेद सा हो गा।
चारों तरफ़ वहशी बखरे पडे थे। वह वहशयों से के दरमयान घरा हुआ था इसलिए एक कोने मैं दबके रहने मैं ही उस को अाफ़ीत महसूस हो रही थी। अब तक कोई गरफ़तारी अमल मैं नहीं आई थी। वहशी दिनदनाते सारे गांव मैं आज़ाद घोम रहे थे। उन के चहरों पर फ़ातहानह चमक थी। और आँखों मैं वहशी अरादे। शरीफ़ लोग उन को देखते तो उन के कारनामों को याद कर के सहम जाते थे। और अदब से अनीं सलाम कर के आगे बड़ जाते थे।
वह लोगों के दलों मैं डर दहशत ख़ोफ़ की अलामत बन गए थे। सयासी लीडर आते। मगर मछ के आनसो बहाते धवां धार तक़रीरीं करते। क़ातलों ، मजरमों को न बख़शने का अज़म करते और वापिस चले जाते। क़ातल मजरम वहशी उन के ख़लाफ़ नारे लगाते। वहशत दरनदगई पानदह बाद के नारे लगाते। अपने कारनामों के तारीख़ के सनहरे ओराक़ क़रार दीते। ऐसा लगता था जैसे दुनिया से अनसाफ़ ، रवादारी सचाई ख़लोस महबत आथ गई थी। बस चारों तरफ़ नफिरत ज़हर फ़रक़ह परसती छाई थी। एक अला दहका हुआ था जिस की तपश चारों तरफ़ फीली थी।
दोतीन दिन से उस ने दुकान नहीं खोली थी। रघो और राजो भी काम पर नहीं आ रहे थे। उस दिन वह आए भी तो उस ने अनीं घर भीज दया। अभी हालात ठीक नहीं हुए थे। जब हालत दोस्त हो जाईं गए तो दुकान खोलों गा। दुकान खोल कर भी कोई फ़ादह नहीं था न कोई गाहक आने वाला था न धनदह होने वाला था सारा वजोद घाम का सहरा बन हुआ था कतने घाम थे उन का शमार करना मुश्किल था गांव मैं होने वाली वाक़ाात का घाम जावेदकी मौत का ग़म। । । और अब सब से बड़ कर मधू की बरबादी का ग़म। । । अमित की दरनदगई का अहसास। । । उन बातों को या कर के कभी खून खोल अठता तो कभी वजोद पर एक बे बसी छाजाती और दिल खून के आनसो रोने लगता।
वह अफ़सरदह सा दुकान के बाहर करसी पर बैठा था उसी वक़्त सामने से अमित पटेल फ़ातहानह अनदाज़ मैं चलता हुआ आया। कहो सरदार जी कैसे हो तुम बच गए बड़ी बात है ؟ मुझ से दशमनी ले कर भी जिन्दा हो। । । वरना पूरे गांव मैं मेरा कोई भी दुश्मन जिन्दा नहीं बच्चा है ‘‘
उस ने कोई जवाब नहीं दिया सर उठा कर ख़ाली नज़रों से अमित को देखा।
ओहो। । । हां । । । शायद तुम्हें उसली बात तो मालूम ही नहीं हुई। सच मच तुम्हें उस बात का पता नहीं चला हो गा। वरना उन आँखों मैं यह ख़ाली पन नहीं होता। । । आग होती। । । मधू से बहुत प्यार करते होनामधू भी प्यार करती है तुम्हें । मधू जो मेरी है जिस पर सिर्फ़ अमित पटेल का हक़ है वह मधू तुमहारी होगई थी। और तुम पर अपना तन मन धन सब कुछ नछओर करने के लिए तयार थी। अमित पटेल को ठकरा कर। । । ‘‘
अमित रुक गया और उस के चहरे के तासरात पड़ने की कोशिश करने ला। वह ख़ाली ख़ाली नज़रों से उसे घोरे जा रहा था
लेकिन अब मधू तुमहारी नहीं रहे गई। मधू अगर इज़्ज़त दरा बाप की बीटी होगई तो तुमहारे क़रीब भी नहीं फटके गई। और मधू की उसलीत जान कर तो तुम मधू की सूरत देखना भी क़ुबूल नहीं करो गए। । । अब मधू जिन्दगई भर एक रनडी बन कर जिन्दा रहे गई। एक रनडी जिस को मैं जब चाहूं तब इस्तेमाल करों गा। ‘‘
अमित की बात सुन कर उस के कानों की रगें फड़कने लगईं ।
शायद तुम्हें मालूम नहीं है । । मधू के साथ मैं सहाग रात मना चका हूं । मधू के कनवारे पन को मैं खतुम कर चका हूं । मधू की जवानी का ज़ाक़ह सब से पहले मैं ने चखा है अब वह बासी है तुम बासी खाना खा गए। । । खा। । । अगर तुम मधू को अपना भी लो। । । तो मुझे कोई फ़रक़ नहीं पड़ेगा। । । वह मेरा बासी। । । झोटा छोड़ा हुआ खाना है जसे तुम जिन्दगई भर खाते रहोगए। । । तो सरदार जी। । । मेरा झोटा खाना पसन्द करो गए । । । कर लो मधू से शादी। । । लेकिन उस के साथ सहाग रात तो मैं मना चका हूं । । । उस के एक एक अनग से खील चका हूं । । । उस के जिसम का एक एक हसह अपनी आँखों से बरहनह देख चका हूं । । । उसे भोग चका हूं । । । आहा। । । आहा। । । आहा। । । जा मेरी झोटी छोड़ी मधू को भोगो। । । आहा। । । आहा। । । ‘‘

अमित अचानक उस के मुंह से एक चीख़ नकली कमीने मैं तुझे जिन्दा नहीं छोड़ों गा। । । तो ने मेरी मधू को बर्बाद क्या। । । मैं चप रहा। । । अब तो उसे ज़लील कर रहा है तो जिन्दगई भर उस तरह मेरी मधू को ज़लील करता रहेगा। इसलिए अब मैं तुझे जिन्दा ही नहीं छोड़ों गा। । । बोले सौ नहाल। । । कहते हुए उस ने करपान नकाली और अमित की तरफ़ लपका।
अमित उस नी सचवीशन से घबरा गया था अमित ने ख़वाब मैं भी नहीं सोचा था कि जिम्मी उस तरह का कोई क़दम उठाे गा। उस के हाथों मैं ननगई करपान थी और वह करपान लहराता हुआ उस की तरफ़ बड़ रहा था
नहीं चीख़ता हुआ वह गांव की तरफ़ भागा। अजीब मन्ज़र था अमित जान बच्चा कर कतों की तरह भग रहा था और जिम्मी उस के पीछे हाथ मैं ननगई करपान लिए दौर रया था जो भी उस मन्ज़र को देखता। ख़ोफ़ज़दह हो कर एक तरफ़ हट जाता और दोनों को रासतह दे दीता। जैसे ही अमित उस के क़रीब आता वह अपनी करपान से उस पर वार करता। अमित चीख़ कर गरता। लेकिन अ से पहले कि वह उस पर दूसरा वार करे अमित पोरी ताक़त यकजा कर के आथ खड़े होता और भग जाता जिम्मी फिर उस के पीछे ननगई करपान ले कर दोड़ता।
जहां मौक़े मिलता वह करपान से अमित के जिसम पर वार करता। अमित सर से पीर तक खून मैं डोबा हुआ था लोगों ने उस से भी होलनाक मनाज़र दीखे थे। लेकिन ऐसा मन्ज़र नहीं देखा था कल का योधा बे बस बे यारों मददगार अपनी जान बचाने के लिए भग रहा था कल तक जो लोगों की मौत का बन हुआ था आज मौत उस का तााक़ब कर रही थी। किसी मैं इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह जिम्मी को रोके।
जिम्मी अपनी करपान से अमित पर वार किए जा रहा था आख़र ज़ख़मों की ताब न ला कर अमित ज़मीन पर गर पड़ा। खून मैं लत पत अमित आख़री बार तड़पा और फिर साकत हो गया। नढाल हो कर जिम्मी करपान का सहारा ले कर ज़मीन पर बैठ गया। और फोट फोट कर रोने लगा।
लोग उस के सीनकड़ों मीटर दूर दायरे की शक्ल मैं खड़े उसे ख़ोफ़ से देख रहे थे। किसी मैं उस के क़रीब आने की हिम्मत नहीं थी।
वह मुसलसल रो रहा था । । । । । । । । !!

--------------------------The End-------------------------------

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M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 13

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 13

दिन भर रात भर वहशत का ननगा नाच जारी रहा। जो होलनाक वाक़ाात वह अपनी आँखों से देख रहा था उस से भी ज्यादा वहशत नाक वाक़ाात होते थे जिन को सुन कर कलीजह कानप अठता था रात सनाटे को चीर कर बे बसों की दरदभरी चीख़ीं फ़जा के सीने मैं दफ़न होती रहीं । धवीं के बादल सारे गांव को अपनी लपीट मैं लिए रहे। जगह जगह से आग की लपटीं अठती दखाई दे रही। रात भर वह सौ नहीं सका।
ग्लेरी मैं खड़ा अनधीरे मैं आनखीं फाड़ फाड़ कर गांव को देखता रहा। कभी दिल घबरा जाता तो आ कर बसतर पर लीट जाता लेकिन फिर भी नीनद आँखों से कोसों दूर थी। उस ने जिन्दगई मैं ऐसा मन्ज़र पहली बार देखा था उस ने अपने बज़रगों से एसे मनाज़र की कहानयां सनी थीं । लेकिन यह मनाज़र तो उन से भी ज्यादा होलनाक थे। अनसानों की जान लीने के लिए एसे एसे वहशयानह तरीक़ों का इस्तेमाल क्या गया था जिन के बारे मैं सोचा भी नहीं जा सकता था
पो ठने के बाद भी धमाके चीख़ीं गोनजती रही। वह बसतर पर लीटा था अचानक दरवाज़े पर दसतक हुई। दसतक सुन कर उस का दिल दहल उठा। एसे माहोल मैं एसे माहोल मैं कौन उस से मिलने के लिए आ सकता है ؟ कानपते दिल से उस ने दरवाज़ह खोला तो दरवाज़े मैं मधू को खड़ी देख कर उस का दिल धक से रह गया।
मधू तुम ؟ उस वक़्त यहां ؟‘‘
मधू ने कोई जवाब नहीं दया। वह अन्दर आई और अपने दोनों हाथों से अपना मुंह छपा कर फोट फोट कर रोने लगई।
मधू क्या बात है क्या हुआ ؟ वह मधू को रोता देख कर घबरा गया। और उस से पूछने लगा। मधू ने उस बार भी उस की किसी बात का जवाब नहीं दया। और अपना चहरह अपने हाथों से छपाते दहाड़े मर मर कर रोती रही। मधू क्या बात है तुम बताती क्यों नहीं ؟ ‘‘ मधू का रोना देख कर उस के दिल की धड़कनीं बड़ती जा रही थीं । और आँखों के सामने अ अनधीरा छाता जा रहा था तुम उस वक़्त एसे हालात मैं यहां आई हो तुम्हें एसे हालात मैं तो अपने घर से भी बाहर नहीं नकलना चाहये था सारा गांव वहशयों से भरा परा है सारा गांव वहशी दरनदह बन गया है किसी को किसी का होश नहीं है ‘‘
जिम्मी। । । मैं लट गई। । । मैं बर्बाद होगई। मैं किसी को मुंह दखाने के क़ाबल नहीं रही। एक दरनदे ने मुझे किसी क़ाबल नहीं छोड़ा। वह ज़ोर ज़ोर से दहाड़े मर मर कर रोने लगई।
उस के दिल की धड़कनीं तीज़ हो गईं । और आँखों के सामने का अनधीरा कुछ ज्यादा ही गहरा हो गया। उस की कुछ समझ मैं नहीं आया मधू क्या कह रही है या क्या कहना चाहती है
मधू तुम क्या कह रही हो। मेरी कुछ समझ मैं नहीं आ रहा है ‘‘
जिम्मी। । । मुझे अमित ने बर्बाद कर दया। उस ने मेरे साथ रीप क्या है मेरी उसमत दरी की है यह कह कर कि अब मैं तुमहारे क़ाबल नहीं रहूं गई। उस के बाद तुम मेरी तरफ़ आंख उठा कर भी नहीं दीखो गए। ‘‘ मधू रोती हुई बोली।
उसे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी बारोद ख़ाने की सादी बारोद उस के दमाग़ मैं फट पडे है सारी गांव मैं लगई आग उस के वजोद मैं आ कर समा गई है उस के ज़हन मैं मसलसल धमाके हो रहे थे। और वजोद जाल रहा था आनखीं दहक रही थीं । और उन दहकती आँखों से वह उस मन्ज़र को देख रहा था जसे मधू ने बयान क्या था
जिम्मी। । । अमित बहुत कमीनह है सारे गांव मैं उस ने आग लगाई। । । हर ज़लील घनाना काम क्या। । । और आख़र मैं मुझे भी नहीं छोड़ा। मेरे म बाप को उस ने एक कमरे मैं बुद कर दिया और ओपर चला आया। मैं बहुत चीख़ी चलाई। मैं ने मदद के लिए सारे गांव का बलएा। । । लेकिन जब सारा गांव चीख़ों मैं डोबा हो। । । हर कोई मदद को बला रहा हो तो फिर कौन मेरी मदद को आए गा मेरे म बाप बे बसी से मेरे लटने का तमाशह देखते रहे। जब सीनकड़ों उसमतीं लटी हो। अगर मेरी भी लटी तो उस से किसी को क्या फ़रक़ पड़ता है उस ज़लील का एक ही मक़्सद था तुम यह सब जानने के बाद मुझे ठकरा दो। मेरा ग़रोर टोट जाए मैं दुनिया को मुंह दखाने के क़ाबल न रहूं । मैं उस की न हो सकी तो तुमहारी भी न हो सकों । ‘‘
वह अपना सर पकड़ कर बैठ गया। कुछ लमहूं क़बल तक वह इतने जोश और गुस्से मैं भरा था कि उस का दिल चाह रहा था वह अभी अमित के घर पहूंच जाते और अपनी करपान से अमित के टुकड़े टुकड़े कर दे। लेकिन फिर जैसे उस पर बरफ़ पड़ गई। वह मधू के आनसों को देख रहा था उस के चहरे पर थरकती बे बसी को देख रहा था मधू के आनसो देख कर उस का कलीजह मुंह को आ रहा था उस के चहरे की बे बसी उस पर हुए ज़लम की दासतान सना रही थी। एक औरत की उसमत उस का सब से क़ीमती ज़योर होती है वह उस गहने को सारी दुनिया से बच्चा कर रखती है अपने महबोब अपने शोहर पर नछओर करने के लिए एक औरत के लिए अपने दयोता के क़दमों मैं चड़ओा छड़ाने के लिए उस से बड़ कर और कोई चीज़ नहीं हो सकती। अगर उस से उस का वही क़ीमती ज़योर कोई ज़बरदसती उस छीन ले तो उस औरत के दिल पर क्या गज़रे गई। उस का अनदाज़ह लगाना दुनिया के किसी भी मर्द के लिए बहुत मुश्किल काम था
लेकिन वह मधू के दर्द को महसूस कर रहा था उसे खुद लग रहा था उस से उस की सब से क़ीमती चीज़ छीन ली गई है उस की जो जिन्दगई का हाशिल था वही हाशिल उस से छीन लयागया है वह अपने आप को मधू की तरह बे बस महसूस कर रहा था जज़बात से मग़लोब उठा और उसे अपने आप पर काबू रखना मुश्किल हो गया। और वह भी मधू की तरह अपने दोनों हाथ से अपना चहरह छपा कर बच्चों की तरह फोट फोट रोने लगा।
उसे रोता देख कर मधू का भी दिल भर आया और वह भी दहाड़ीं मर मर कर रोने लगई। और शदत जज़बात से बे काबू हो कर उस से लपीट गई। और वह दोनों एक दूसरे से लपटे रोने लगए। एक दूसरे से लपटे पता नहीं वह कतने देर तक रोते रहे।
मधू की हचकयां बन्द गईं । और उस का गला रनध गया। उस की भी हचकयां बन्द गई और गला भर आ या। काफ़ी देर के बाद वह एक दूसरे से अलग हुए और दो कोनों मैं बैठ कर बे वजह कभी छत और कभी फ़र्श को देखते पता नहीं क्या क्या सोचने लगए। दनों एक दूसरे से न कोई बात कर रहे थे और न एक दूसरे की तरफ़ देख रहे थे। न उन के मुंह से एक लफ़्ज़ नकल रहा था ससकयां रुक गई थीं । गला रनधा हुआ था लेकिन आनसो रकने का नाम नहीं ले रहे थे।
बहुत देर बाद वह बोला मधू। । । हालात बहुत ख़राब है एसे हालात मैं तुमहारी जीसी लड़की का घर से बाहर नकलना ठीक नहीं है एक दरनदे अमित के हाथों तुम तबाह तो हुई हो। चारों तरफ़ हज़ारों अमित बखरे हुए हैं । हर आदमी अमित की तरह जानोर बन गया है जिस तरह अमित ने दरनदगई का मज़ाहरह कर के हालात का फ़ादह कर अपने मन की मराद हाशिल कर ली है मैं नहीं चाहता हूं कि कोई और अमित की तरह हालात का फ़ादह उठा कर तुम से अपने दिल की मराद पोरी कर ले। । । तुम घर जा। उस तोफ़ान को थमने दो उस के बाद सोचीं गए कि हालात का किस तरह मक़ाबलह और सामना करना है और हमैं अब क्या करना है ‘‘
जिम्मी। । । यह मेरी तुम से आख़री मलाक़ात है अब मैं कभी तुम से सामना नहीं करों गई। तुम मुझे भूल जा। । । मेरा ख़याल भी अब दिल मैं नहीं लाना। सोचना तुमहारी जिन्दगई मैं कोई मधू नाम की लड़की आई ही नहीं थी। मेरे पीछे अपनी जिन्दगई बर्बाद नहीं करना। किसी अछी सी लड़की से शादी कर के अपना घर बसा लेना। ससकती हुई मधू बोली।
यह क्या कह रही हो। । । मधू वह तड़प उठा तुम मेरी रोह हो। । । मेरी जान हो। । । तुमहारे बग़ीर मैं अपनी जिन्दगई का तसोर ही नहीं कर सकता। नहीं । । । नहीं दुनिया की कोई ताक़त हमैं एक दूसरे से जुदा नहीं कर सकती। यह तोफ़ान तो एक मामोली हुआ का झोनका था जो गज़र गया यह तोफ़ान तो दूर उस तरह के हज़ारों तोफ़ान भी हमैं अे दूसरे से जुदा नहीं कर सकते। तुम मेरी हो। । । मेरी रहोगई। । । हर हाल मैं । । । हर हाल मैं । । । ‘‘
नहीं जिम्मी। । । अब मैं तुमहारी नहीं हो सकती। । । मैं तुमहारे क़ाबल नहीं हूं । मुझे भूल जा। । । मुझे भूल जा। । । कहती ससकती हुई मधू अठी और तेजी से कमरे के बाहर नकल गई।
वह उसे आवाज़ीं दीता रह गया। और वह उस की नज़रों से ओझल होगई। ग्लेरी मैं आया तो उस ने देखा। । । वह ससकती गांव की तरफ़ जा रही है लमहह बह लमहह उस से दूर होती जा रही है और फिर उस की आंख से ओझल होगई।

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M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 12

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 12

मधू अपने सह मनज़लह मकान के तीसरे मनज़ल की ग्लेरी मैं खड़ी गांव मैं जारी आग और खून के खील को देख रही थी। सारे गांव पर धवीं के काले बादल छाे हुए थे। जो लमहह लमहह गहरे होते जा रहे थे। फ़लक शगाफ़ वहशयानह नारों ، दर्द तकलीफ़ ، बे बसी मैं डोबती चीख़ों ، आह व पकार से माहोल मैं एक बे हनगामह शोर पीदा हो रहा था की टोलयां हाथों मैं ननगई तलवारीं ، तरशोल लिए वहशयानह नारे लगाते गलयों से गज़र रहे थे और मर काट कर रहे थे।
उस मकान के आप पास की मकानों से धवां आथ रहा था तो की मकानों से आग की लपटीं आथ रही थीं । माहोल मैं बसी अनसानी गोशत के जलने की बदबो उस बात की गवाही दे रही थी कि उस आग मैं पता नहीं कतने अनसानी जिसम जाल रहे हैं । लो ग वहशयों की तरह नहते अकलोते अनसानों पर टोट पड़ते और अौन की अौन मैं जीते जागते इन्सान को मरदह लाश मैं तबदील कर दीते। उस ने अपनी आँखों से एसे ख़ोफ़नाक मनाज़र पहले कभी नहीं दीखे थे। अगर वह किसी ज़ख़मी भी देख लीती तो उस के जिसम मैं बहता खून देख कर उसे चकर आने लगते थे। लेकिन वही अपनी आँखों से लाशों को सड़कों पर गरती देख रही थी। अनसानों को आग मैं जिन्दा जलती देख रही थीं । अपनी आँखों से अोरतों के उसमतीं ताराज होती देख रही थी।
वहशी दरनदे बरबरीत का ननगा नाच रहे रहे थे। उन को रोकने वाला कोई नहीं था हर टोली के साथ अमित भाई पटेल था हर खून ख़राबे आतश ज़नी मैं वह पेश पेश था उस के काले करतोत को देख कर उस के दिल मैं अमित के लिए नफिरत बड़ती जा रही थी। उस का दिल जान रहा था वह भी अपने हाथों मैं कोई तलवार या तरशोल उठाे और उस तलवार या तरशोल से अमित का सर क़लम कर दे। या तरशोल से अमित के सारे जिसम को छीद कर उसे तड़प तड़प कर मरने के लिए जिन्दा छोड़ दे।
उस के म बाप नीचे मनज़ल पर थे। उस के पूरे मकान मैं वही तीन अफ़राद थे। वह और उस के म बाप एक बहन की शादी होगई थी और भाई बाहर रहते था यह हनगामह शुरू हुआ तो उस के पता जी ने उसे ओपर जाने के लिए कहा और खुद नचली मनज़ल पर दरवाज़ह बनद कर के खड़क्यों से उस ख़ोनी हनगामे को देखने लगए।
क्यों । । । जिन्दगई मैं पहली बार उस क़िस्म के नज़ारे देख रही हो ना देखा आग और खून का खील खीलने मैं कितना मज़ह आता है ‘‘ अचानक आवाज़ सुन कर वह चौंक पडे।
वह उस तरह तेजी से मड़ी जैसे किसी बछो ने उसे डनक लिया हो। पलटने से क़बल उस ने जो अनदाज़ह लगाया था वह अनदाज़ह मजिसम उस के सामने था उस के सामने अमित भाई पटेल खड़ा था तुम वह उसे नफिरत से देखती बोली।
हां । । । मैं । । । देखा मेरा खील। । । उन मलछ मसलमानों से चन चन कर बदले ले रहा हूं । अमित शीतानी हनसी हनसता हुआ बोला।
शीतान के पास ताक़त बहुत होती है लेकिन जब उस का वक़्त आता है तो एक मामोली बचह भी उसे उस के अनजाम को पहनचा दीता है ‘‘
मेरी ताक़त अमर है कतनी तनज़ीमैं हैं मेरे साथ। मेरी ताक़त की कोई अनतहा नहीं । बी जे पीआर एस एस ، बजरंग दल वशो हनदो परीशद सब मेरे ग़लाम हैं । मेरे अशारों पर नाचते हैं । मेरे एक इशारे पर अपना तन मन धन क़रबान करने को तयार हो जाते हैं । ‘‘
तुम यह बता यहां क्यों आए वह नफिरत से बोली।
तुम्हें यह समझाने के तुम उस सरदार जी का ख़याल अपने दिल से नकाल कर मेरी हो जा। वरना मैं तो तुम्हें पा कर रहूं गा तुमहारे उस सरदार जी का वह हशर करों गा कि उसे सुन कर दुनिया कानप अठे गई। अमित बोला।
मरने के बाद भी मैं तुमहारे बारे मैं सोच नहीं सकती तो जीते जी तुमहारे बारे मैं क्या सोचों गई। और जीते जी तो छोड़ो मरने के बाद भी मेरे दिल से जिम्मी का ख़याल नकाल नहीं सकता। यह जिसम रोह मेरा सब कुछ जिम्मी का है मेरे जिसम ، रोह हर चीज़ पर जिम्मी का हक़ है तुमहारे जैसे कुते उसे छो भी नहीं सकते। ‘‘
जद न करो मान जा। । । मुझे ग़सह मत दला। । । वरना। । । जिम्मी को तुमहारी जिन्दगई से स तरह नकाला जाए मुझे खूब अछी तरह आता है जिस जिम्मी पर तुम्हें इतना नाज़ है ، फ़ख्र है । । वह जिम्मी तुमहारी जिन्दगई से उस तरह नकल जाएगा कि तुमहारी सूरत पर थोकना भी पसन्द नहीं करेगा। ‘‘
जीते जी तो यह ममकन नहीं है । । अमित। । । जीते जी तो हम एक दूसरे से जुदा नहीं हो सकते शायद मौत हमैं एक दूसरे से जुदा कर दे। तुम हम दोनों को जुदा ही करना चाहते होना। । । तो आ। । । मेरा लगा घोनट दो। । । अपने तरशोल ، तलवार मेरी जान ले लो। तुमहारी तुमना पोरी हो जाए गई। मैं और जिम्मी जुदा हो जाईं गए। वह बोली।
मैं तुम दोनों को उस तरह जुदा नहीं करों गा। अमित ज़हरीली हनसी हनसता हुआ बोला। तुम दोनों को कुछ उस तरह जुदा करों गा कि तुम दोनों जिन्दा तो रहो गए लेकिन एक दूसरे को अपनी सूरत दखाने के क़ाबल नहीं रहोगए। ता हयात एक दूसरे की सूरत देखना भी पसन्द नहीं करो गए। आज जो एक साथ जीने मरने की क़समैं ख रहे हो। । । ख़वाब देख रहे हो। । । उस के बाद एक दूसरे की परछाई से भी नफिरत करने लगो गए। ‘‘
पानी मैं लकड़ी मारने से पानी जुदा नहीं होता है । । अमित। । । सको तो हमैं जुदा करने के लिए तुमहारे पास जो भ तरकीब है आज़मा लो। जो सितुम हम पर करना है कर लो। फिर भी हम एक दूसरे के ही रहीं गए। कभी एक दूसरे से जुदा नहीं हूं गए। ‘‘
उस की बात सुन कर अमित के चहरे पर गुस्से के तासरात अभर आए। मुझे पते था तुमहारा यही जवाब हो गा। तुम उस सरदार जी के पीछे ऐसी दयवानी हुई हो कि तुम्हें उस के अलओह कुछ नहीं सोझता। इसलिए मैं पूरे अनतज़ाम से आया हूं । तुमहारे म बाप को मैं ने नीचे के कमरे मैं बनद कर दिया हूं । अब कोई भी ओपर नहीं आ सकता। अगर तुम चीख़ो चला भी तो तुमहारी मदद को कोई नहीं आने वाला। क्यों कि चारों तरफ़ चीख़ीं ही चीख़ीं बखरी हुई हैं । अब मैं तुमहारे साथ सहाग रात मनां गा। तुमहारे जिसम से खीलों गा। तुमहारे जिसम के एक एक हसे से लज़त हाशिल करों गा। और तुम्हें कहीं मुंह दखाने के लाक़ नहीं रखों गा। और उस के बाद फिर मैं अपनी जिन्दगई के उसी सब से ज्यादा लज़त नाक तजरबह का एक एक लफ़्ज़ जा कर तुमहारे अाशक़ जिम्मी को सनां गा। तुम ही सोचो। मेरे उस लज़त नाक तजरबे की रोदाद सुन कर तुमहारे अाशक़ के दिल पर क्या बीते गई। तुमहारे जिसम के जिस हसे को छोने की कोशिश करेगा। वहां उसे मेरा चहरह दखाई देगा। वह हसह उसे मेरी लज़त की दासतान की कहानी सनाे गा। आहा। । । आहा। । । ‘‘
नहीं अमित की बात सुन कर वह कानप अठी। तुम ऐसा नहीं कर सकते। । । तुम ऐसा नहीं कर सकते।
मैं ऐसा ही करने आया हूं ऐसा करने के बाद तुम जिम्मी के क़ाबल नहीं रहोगई। जिम्मी तुमहारी सूरत देखना भी पसन्द नहीं करेगा। उस के बाद तुम मेरे पीरो पर गर कर खुद को अपनाने की भीक मानगों गई। और मैं तुम्हें अपना।ं गा। लेकिन तुम्हें अपनी बयाहता बन कर नहीं रखों गा। रखील बन कर रखों गा और जिन्दगई भर तुमहारे जिसम से खीलता रहूं गा। ‘‘ कह कर वह उस पर टोट पड़ा।
नहीं वह चीख़ी। लेकिन उस की चीख़ को सनने वाला कोई नहीं था बचा। । । बचा। । । उस ने मदद के लिए लोगों को पकारा। लेकिन जब चारों तरफ़ लोग खुद उसमतीं लोटने मैं मसरोफ़ थे को भला उस की उसमत बचाने उस की मदद को कौन आता।
उस के और अमित के दरमयान छीना झपटी जा रही थी। हर छीना झपटी के साथ उस के जिसम से एक कपड़ा अतरता थाया तार तार होता था वह किसी वहशी दरनदे की चनगल मैं फनसी हरनी की तरह इधर उधर दौर रती फिर रही थी। उस के जिसम से कपड़े कम से कम होते जा रहे थे। उस का जवान मध माता शरीर अमित के जिसम मैं होस की आग भड़का कर और उसे दयवानह कर रहा था
आख़र वह बे बस हो कर टोट गई। अमित किसी भोके भीड़ये की तरह उस पर टोट पड़ा और उस के जिसम को नोचने लगा। वह उस के जिसम के एक एक अनग को नोच रहा था

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M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 11

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 11

सुबह के साथ बनद का आग़ाज़ हुआ था बनद बड़ी अजीब ढनग का था उस ने पहली बार उस तरह का बनद देखा था कारोबार तो सब बनद था लेकिन गांव का हर फ़र्द सड़क पर था सड़कों पर जगह जगह सीनकड़ों की तादाद मैं मैं लोग मजमा की शक्ल मैं खड़े थे। या बैठे थे। उस दिन की अख़बारात की सरख़यां पहार कर सनाई जा रही थीं । नीता क़िस्म के लोग फ़रक़ह परसती के ज़हर मैं अलझी तक़रीरीं कर रहे थे। टीली फ़ोन और मोबाल पर दूसरे शहरों से ख़बरीं मोसोल हो रही थी। टी वी पर उस बनद की ख़बरीं बताई जा रही थी। बार बार जलती टरीन के डबे जली हुई लाशीं ، मरने वालों के रिश्ता दारों के अशतााल अनगईज़ बीनात लीडरों के ज़हरीले अशतााल अनगईज़ तबसरे और जगह जगह बनद के उसरात का लायो टीली कासट। । । हाथों मैं ननगई तलवारीं । तरशोलमाथे पर भगवा कपड़ा बानधे अशतााल अनगईज़ नारे लगाते सड़कों से गज़रने वाली जलोस की तक़रीरीं ।
अचानक जलोस की नज़र सड़क के कनारे बने एक कीबन पर पड़ती है जिस पर लखा है फ़ीरोज़ अलीकटरक वरकस। जलोस उस पर टोट पड़ता है कीबन अलट दिया जाता है कीबन के चीज़ों को पीरों से कचला जाता है तोड़ा जाता है सड़क के वसत मैं आ कर उसे आग लगा दी जाती है
एक आटो रिकशा पर ज़ा मन फ़जल रबी लखा है उसे बीच सड़क पर अलट दिया जाता है उस पर पीटरोल छड़क कर उस पर आग लगा दी जाती है
एक गज़रती हुई जीप को रोका जाता है उस पर ۷۸۶ लखा है उस के डरायोर को जीप के नीचे अतार अ जाता है और पुर मजमा उस पर टोट पड़ता है वह अपने आप को बचाने की कोशिश करता है कुछ लोग जीप को अलट दीते हैं । और उस पर पीटरोल छड़क कर उस मैं आग लगा दीते हैं । जीप के ज़ख़मी डरायोर को उस जलती हुई जीप मैं डाल दिया जाता है
सीनकड़ों लोगों का टोलह बनद दोकानों के नाम देख देख कर अनीं तोड़ते फोड़ते हैं । उन का सामान लोटते हैं और सामान को सड़क के वसत मैं ला कर आग लगा दीते हैं । दोकानों पर पीटरोल छड़क कर उन पर आग लगाई जा रही है
यह तमाम मनाज़र टी वी पर दखाे जा है थे। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उन का काम मनाज़र को दखा कर एक तरह से इशारा दिया जा रहा है और लोग उस इशारे को समझ रहे थे। और फिर हर जगह उसी तरह के वाक़ाात दहराे जाने लगए। चोक पर जमा लोगों की भीड़ ने एक अशतााल अनगईज़ फ़लक शगाफ़ नारह लगाया।
हर हर महा दयो
जे बजरंग बली
जी शरी राम ‘‘
ओर दूसरे ही लमहह पुर मजमा चोक की दोकानों पर टोट पड़ा। कुछ लोग छोटी छोटी दोकानों पर टोट पडे तो बाक़ी बड़े मजमा ने सीफ़ होटल और अक़सी कमपयोटर अनसटी टयोट को नशानह बनाया। लोहे की सलाख़ों से सील सीफ़ होटल के शटरों को तोड़ा गया। और उन ही लोहे की सलाख़ों से होटल का सामान तोड़ा फोड़ा जाने ला। लकड़यों के सामान को सड़क के दरमयान ला कर आग लगाई जाने लगई। होटल मैं तील छड़क कर उसे आग लगादी गई। कुछ क़ीमती सामान लटीरों के हाथ लग गया वह उसे लोट कर अपने अपने घरों की तरफ़ ले जाने लगए। वह दुकान से जैसे ही चोक की तरफ़ आया था उस ने सब से पहले यह मनाज़र दीखे थे।
सीफ़ होटल तो जाल रही थी। अब अक़सी कमपयोटरस को तोड़ने की कोशिश की जा रही थी। उस के दिल मैं आया के वह आगे बड़ कर मजमा को ऐसा करने से रोके लेकिन हज़ारों अफ़राद पर मशतुमल मजमा को वह अकीला कैसे रोक सकता था
लोहे की सलाख़ों से शटर तोड़ दिए गए। थे। अब उन सलाख़ों से अन्दर के कानच और फ़रनीचर को तोड़ा जा रहा था कमपयोटर के मानीटर और सी पी यो सरों पर उठा कर ज़मीन पर पटख़ा जा रहा था और अनीं पीरों तले रोनदह जा रहा था लोहे की सलाख़ों से उन पर जरब लगा कर उन के टुकड़े किए जा रहे थे। एक। । । दो। । । तीन। । । चार। । । दस। । । बीस। । । पचीस। । । सारे कमपयोटर स तबाह कर दे गए थे। सारा सामान नीसत व नाबोद क्या जा चका था जावेद के आफ़स को तहस नहस क्या जा रहा था सामान जमा कर के सड़क के वसत मैं ले जएा जा रहा था और उन पर पीटरोल तील अनडील कर उस मैं आग लगाई जा रही थी। फिर पूरे कमपयोटर अनसटी टयोट के सामान पर तील छड़क कर उस मैं आग लगा दी गई।
अक़सी अनसटी टयोट जाल रहा था वह अनसटी टयोट जो अलम का घर था जहां गांव के बच्चे कमपयोटर का अलम सीखते थे। जो सारी दुनिया मैं बसे गांव के लोगों से राबतह का एक मर्कज़ था जहां अनटरनीट के ज़रयाे एमील और चीटनग के ज़रयाे लोग ग़ीर ममालक मैं आबाद अपने रिश्ता दारों अज़ीज़ों से पल भर मैं राबतह क़ाम कर के ख़यालात का तबादलह करते थे। उसी राबतह के मर्कज़ को जला कर ख़ाक कर दिया गया था कोई भी रोकने वाला नहीं था
दो तीन दनों तक पुर गांव पोलीस की छानी बन हुआ था लेकिन उस वक़्त कोई भी कानून का रखवाला सड़क पर दखाई नहीं दे रहा था जो मजमा को ऐसा करने से रोके। चोक की मसलमानों की छोटी बड़ी दोकानों को चन चन कर नशानह बनाया गया और अनीं नीसत व नाबोद कर के जला कर ख़ाक कर के मजमा अशतााल अनगईज़ नारे लगाता आगे बड़ा। उस का रख़ मसलमानों के मोहल्ले की तरफ़ था रासतह मैं जो भी मुसलमान दखाई दीता मजमा नारे लगाता उसपर टोट पड़ता। उसे तलवारों और तरशोल से छीद कर एक लमहे मैं ही लाश मैं तबदील कर दिया जाता था रासतह मैं जो अका दका मुसलमान के मकानात मलते मजमा उस पर पड़ता। दरवाज़े तोड़ कर उन के मकीनों को बाहर नकाला जाता और अनीं तरशोलों की नोक पर ले लिया जाता अोरतों लड़क्यों पर की वहशी टोट पड़ते। मासोम छोटे बच्चों को फुटबाल की तरह हुआ मैं अछाला जाता घरों को आग लगा दी जाती। और फिर उस आग मैं तरशोल से छलनी जिसमों को झोनक दिया जाता मासोम बच्चों को तरशोल की नोक पर रोक कर अनीं आग मैं अछाला दिया जाता था मजमा जैसे जैसे आगे बड़ रहा था अपने पीछे आग ख़ोन लाशों को छोड़ता आगे बड़ रहा था
मसलमानों के मोहल्ले के पास पहूंच कर मजमा रुक गया। नकड़ पर सौ के क़रीब मुसलमान हाथों मैं लाठयां लिए खड़े थे। उन के मदमक़ाबल ۲ हज़ार से ज़ाद का मजमा था उस को देख कर ही सब के हाथ पीर फूल गए। लेकिन सामना तो करना था दोनों तरफ़ से पथरा शुरू हो गया। सामने से चालीस पचास पत्थर आए तो इधर से सौ दो सौ पत्थर उन की तरफ़ बड़े। पथरा मैं की लोग ज़ख़मी हो कर मैदान छोड़ गए। बाक़ी पर मजमा उस तरह टोटा जैसे गध किसी लाश पर टोटते हैं । दो बदो मक़ाबले का नज़ारह ही नहीं था एक एक आदमी को बीस बीस पचीस पचीस आदमयों ने घीर रखा था और उस परचारों तरफ़ से लाठयां ، तलवारों और तरशोलों से हमलह हो रहा था थोड़ी देर मैं उस की लाश ज़मीन पर गरी तो उस के मरदह जिसम मैं तरशोलों और तलवारों को गाड़ कर फ़तह का जशन मनएा जाता थोड़ी देर बाद कोई भी मक़ाबलह करने वाला नकड़ पर नहीं बच्चा था तमाम मक़ाबलह करने वालों की या तो लाशीं वहां पडे थीं या फिर ज़ख़मी हो कर वह जा बच्चा कर भग गए थे।
अब मजमा पूरे मोहल्ले पर टोट पड़ा था एक एक घर पर सौ सौ से ज़ाद अफ़राद टोटो पड़े। दरवाज़े तोड़े जाते। मकान के मकीनों को मकान से बाहर खीनच नकाला जाता उन को तरशोलों से छलनी कर दिया जाता बच्चों को तरशोलों पर अछाला जाता अोरतों और लड़क्यों पर भोके भीड़ये की तरह टोट पड़ते।
चारों तरफ़ शोरशीतानी नारों की गोनज अोरतों की चीख़ व पकार बचों के रोने की आवाज़ ، मरने वालों की आख़री चीख़ीं गोनज रही थी। जो दरवाज़े नहीं टोट पाते। उन मकानों पर तील छड़क कर अनीं आग लगादी जाती। जवान अोरतों और बच्चों को सरे आम ननगा कर के उन से ज़ना क्या जाता मजमा वहशी बना। उस मन्ज़र से लतफ़ अनदोज़ हो कर शीतानी क़हक़हे लगाता। हामलह अोरतों के पीटों को चाक कर के उन से नौ ज़ाईदह बच्चों को नकाल कर आग मैं झोनक दिया जाता
सब घर कर रह गए थे। उन से बचना महाल था घरों मैं आग लगाई जा रही थी। जलते घरों मैं लोग जिन्दा जाल रहे थे। घट कर मर रहे थे। जो गोल जान बचाने के लिए जलते घरों से बाहर आने की कोशिश करते अनीं तरशोल की नोक से जलते घरों मैं वापिस धकीला जाता अजीब मन्ज़र था ऐसा मन्ज़र तो फिल्मों मैं भी आज तक दखाया नहीं गया था हलाको और चनगईज़ पर बनाई फिल्मों मैं भी उस तरह के मनाज़र दखाने की जरत दुनिया के किसी फ़लम डारीकटर ने नहीं की थी।
वह मनाज़र अपनी आँखों से पुर मजमा देख रहा था लेकिन किसी का दिल नहीं पघल रहा था नह किसी के चहरे पर अपने उन घनाने कामों की वजह से मज़मत की परछाई लहरा रही थीं । वहशत का ननगा नाच नाच कर वह एक रोहानी मसरत हाशिल कर रहे थे। जीसा अनीं अबादत कर के एक अज़ली सकोन मल रहा हो। उन के चहरों पर वहशयानह फ़ातह जजबा रक़स कर रहा था आधा मजमा घरों को जलाने और लोगों को लाशों मैं तबदील करने मैं मसरोफ़ था तो बाक़ी आधे मजमा ने मसजद पर धओा बोल दया।
मसजद के पेश अमाम और मोज़न की लाशीं बस से पहले गरीं और उन के खून से मसजद का फ़र्श सीराब होने लगा। उस के मसजद को तबाह क्या जाने लगा मसजद के नक़्शा व नगार तो मसख़ क्या जाने लगा। मसजद की एनट से एनट बजा दी गई। और उस के ममबर पर हनोमान जी की मोरती रख दी गई। किसी ने एक घनटा ला कर टोटी हुई मसजद मैं बानध दया। ज़ोर वर से घनटा बजएा जाने ला। और हनोमान चालीसा पड़ा जाने लगा और आरती गाई जाने लगई। और हनोमान की पोजा की जाने लगई।
उस के बाद एक हसह पीर बाबा की दरगाह की तरफ़ बड़ा। दरगाह वीरान थी। जो कोई भी दरगाह पर रहता था वह वहां से भग गया था मजमा ने अपने हाथों मैं पकड़े बीलचों कदालों से दरगाह को मसमार करना शुरू कर दिया जिस किसी मकान को मसमार क्या जाता है देखते ही देखते दरगाह मसमार कर दी गई। दरगाह मसमार कर के ज़मीन बन दी गई। जैसे वहां कभी दरगाह का नाम व निशान न रहा हो।
वह अपनी आँखों से यह हीबत नाक मनाज़र देख रहा था वह मजमा के साथ साथ था लेकिन एक तमाशाई की तरह। की मनाज़र तो एसे भी आए के उस की आँखों मैं उन मनाज़र को देखने की ताब न रही। उस ने अपनी आँखों बनद कर लीं या फिर वह वहां से वापिस जाने लगा। लेकिन मजमा मैं शामिल लोगों ने उसे रोक लिया
सरदार जी। । । इतनी जलदी घबरा गए। सख तो शीर होते हैं । अपने नामों के आगे शीर का नाम लगाते हैं । लेकिन तुम तो गईडर साबत हुए। हम जो कर रहे हैं तुम उसे देख नहीं पा रहे हो। । । ‘‘
अरे हम घास पता खाने वाली जनों ने कभी मास अपनी आँखों से नहीं देखा यह सब देख रहे हैं । और तुम तो अपनी करपान से एक झटके से बकरे का सर अलग करते हो। तुम नहीं यह सब देख पा रहे हो ‘‘
अन के अलओह की तरह के रकीक ताने। और कोई मौक़े होता तो वह गुस्से मैं अपनी करपान नकाल कर उन पर टोट पड़ता। लेकिन उस ने जबत से काम लिया यह मौक़े ऐसा नहीं था क जज़बात से काम लिया जाए। अगर उस ने जज़बात से काम लिया तो उस का अनजाम भी वही होने वाला था जो अब तक सीनकड़ों लोगों का हो चका था लेकिन कहां तक भागता। चारों तरफ़ वहशी फीले हुए थे। उस तरह की की शीतानी टोलयां शीतान को खुश करने के लिए शीतानी कामों मैं मसरोफ़ थी। हर टोली मर काट कर रही थी। लाशीं गरा रही थी। घरों को जला रही थी। लोट मर कर रही थी। आग मैं लाशीं गरा रही थी। घरों को जला रही थी। लोट मर कर रही थी। आग मैं लोगों को जिन्दा जला रही थी। अोरतों की उसमत दरी कर रही थीं । बोड़यों को ननगा कर के बे इज़्ज़त क्या जा रहा था
सारा गांव वहशी हो गया था वहशत का ननगा नाच नाचने वालों मैं अगर सारा गांव शामिल नहीं था तो सारा गांव तमाशाई तो बन हुआ था गांव के किसी भी फ़र्द मैं हिम्मत नहीं थी कि उन वहशयों को ऐसा करने से रोके। न किसी के दिल मैं ऐसा जजबा पीदा हो रहा था कि यह अनसानीत सोज़ वाक़ाात के सलसले को खतुम करने के लिए अड़ जाए।
सड़कों पर जगह जगह मसख़ शदह ज़ख़मी ख़ोरदह लाशीं पडे हुई थीं । जलते घरों से गोशत के जलने की बदबो आथ रही थी जो उस बात की सबोत था कि उस आग मैं अनसानी जिसम जाल रहे हैं । जब वह लाशों को ग़ोर से देखता तो उसे वह चहरे शनासा से लगते।
अरे यह लड़का तो रिकशा चलाता था । । यह तो सड़क डरायोर है अकसर गरीस या आल लीने के लिए मेरी दुकान पर आता था । । अरे यह तो उस दुकान का मालिक है । । अरे यह लड़का रोज़ानह मेरे सामने स्कूलजाता था । । उस बोड़े को अकसर मैं ने पीर बाबा के मज़ार पर बैठा हुआ देखा हूं । । । यह बोड़ी औरत तो गलयों मैं जामन और दूसरे दूसरे फल बीची करती थी। । । यह औरत तो पागल है पागलों की तरह सारे गांव मैं घोमती रहती थी।
जले हुए घर और दोकानीं भी अपनी कहानयां कहते थे। उस दुकान पर ताज़ह दोध मिलता था । । यह दुकान कराने की दुकान थी। । । यह उसटीशनरी की दुकान थी। । । यहां यह स्कूलकी कताबीं और कापयां मलती थी। । । उस चाे की होटल की चाे बड़ी मशहोर थी। । । लोग उस होटल की चाे पीने दूर दूर से आते थे।
लाशों और जले हुए घरों और दोकानों को देखते हुए उस पर एक बड़ी ही अजीब सी बे चैनी और वहशत छाई हुई थी। वह सिर्फ़ एक फ़र्द के बारे मैं जानना चाहता था जावेद। । । जावेद कहां है वह उस के बारे मैं जानना चाहता था उस वहशयानह तानडो मैं उसे जावेद कहीं दखाई नहीं दिया था क्या वह किसी जलते हुए घर मैं जाल कर खतुम हो गया या फिर किसी तरह अपनी जान बच्चा कर उस गांव से नकल भागने मैं कामयाब हो गया। लोगों की बातों से तो पता चाल रहा था बहुत कम लोग अपनी जानीं बच्चा कर भग पाे हैं ।
एक जीप का क़सह हर किसी की ज़बान पर था एक आदमी अपनी जीप मैं अपने पूरे खानदान को ले कर गांव से फ़रार होने मैं कामयाब हो गया। लेकिन दूसरे गांव क सरहद पर धर लिया गया। और वहां फिर भी वहशत का ननगा नाच नाचने वाली वहशयों ने उस के सारे खानदान को खतुम कर के जीप मैं आग लगा दी उसे ज़नद जला दया।
अगर जावेद किसी तरह गांव से फ़रार होने मैं कामयाब भी हुआ तो वह वहशयों से कहां कहां बच सके पायेगा। चारों तरफ़ तो वहशी फीले हुए थे। लेकिन उस की यह तमाम अमीदीं धरी की धरी रह गई। उसे सड़क के दरमयान एक लाश दखाई दीं । जो मुंह के बल पडे थी। उसे उस लाश के कपड़े कुछ शनासा से महसूस हुए उस ने जैसे ही उस लाश को सीधा क्या उस के मुंह से एक फ़लक शगाफ़ चीख़ नकल गई। जावेद भाई यह जावेद की लाश थी। उस का सारा जिसम तरशोलों से छलनी था और पूरे जिसम पर तलवार के घा थे। चहर पर करब के तासरात जैसे मरने से पहले उस ने कड़ा मक़ाबलह क्या हो और कड़ी अज़ीत सही हो। जिस के लिए वह अपनी दुकान से नकल कर उन वहशयों के साथ तमाशाई बन उन की वहशत का तमाशह देख रहा था उस आदमी की लाश उस के सामने थी। वह लाश के पास बैठ कर फोट फोट कर रोने लगा। आते जाते लोग उसे रोता देख कर खड़े हो जाते और कभी हैरत से लाश को तो कभी उस को देखने लगते।
पता नहीं कतनी देर तक वह जावेद की लाश के पास बैठा आनसो बहाता रहा। फिर आथ कर बोझल क़दमों से चप चाप अपनी दुकान की तरफ़ चाल दया।

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M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 10

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Pat 10

रात बड़ी भयानक थी। सारे गांव को एक परहोल सनाटे ने अपनी लपीट मैं ले रखा था लेकिन ऐसा महसूस हो रहा था गांव के हर घर से एक शोर आथ रहा है सारे गांव पर वहशत तारी थी। ऐसा महसूस हो रहा था कि माहोल मैं बहुत कुछ खोल रहा है एक लओे की तरह। । । एक आतश फ़शां की तरह। । । पता नहीं कब यह फट पडे और फट कर बाहर आ जाए और अपने साथ अपने रास्ते मैं आने वाली हर शे को जला कर राख कर दे। उस की तपश हर कोई महसूस कर रहा था
उसे नीनद नहीं आ रही थी। आज दिन भर टी वी पर जो मनाज़र दखाे गए थे उसे लगा ज़हनों मैं ज़हर अनडीला जा रहा है अला की लकड़यों मैं तील डाला जा रहा है और अब अला पोरी तरह तयार है बस उसे आग बताने की देर है और ऐसी आग भड़े गई शायद भी बझ सके। उसे ऐसा महसूस हो रहा था यह गांव क्या। । । पुर गुजरात। । । पुर भारत। । । उस आग से नहीं बच सकता। वह अपने आप को भी उस माहोल मैं महफ़ोज़ है वह एक ग़ीर वाबसतह शख़स है दोनों फ़रक़ों से उस का कोई तालुक़ नहीं है इसलिए दोनों फ़रक़ों के लिए बे जरर है कोई उस की तरफ़ आंख उठा कर भी नहीं दीखे गा। उस का कोई दुश्मन नहीं है लेकिन एक दुश्मन है अमित भाई पटेल। और यह ऐसा दुश्मन है जो कुछ भी कर सकता है उसे ۱۰۰ आदमयों से जतना ख़तरह नहीं हो सकता था अमित से उसे ख़तरह महसूस हो रहा था व हालात का फ़ादह उठा कर उस से अपनी दशमनी का हसाब चका सकता है इसलिए उसे अपनी हफ़ाज़त का अनतज़ाम करना चाहये। अगर अमित उस पर हमलह करे तो उसे पुर यक़ीन था वह पाँच महनदरों से अकीला मक़ाबलह कर सकता है लेकिन उसे डर था । । अमित अकीला उस पर हमलह नहीं करेगा। वह अपने गरगों के साथ उस पर हमलह करेगा। ऐसी सूरत मैं खुद को बचाना उस के लिए मुश्किल हो जाएगा। अमित जिन जिन तनज़ीमों से वाबसतह था वह तमाम तनज़ीमैं एक पलीट फ़ारम पर जमा होगई थी और उन्हों ने उस क़त्ल आम के ख़लाफ़ भारत बनद का नारह लगाया था बी जे पीआ र एस एस वशो हनदो परीशद बजरंग दल शयो सीना सभी उस बनद मैं शामिल थीं । और यह ते था बनद कामयाब होने वाला है
आज भी दिन भर सारा कारोबार बनद ही रहा। कल तो मकमल तोर पर बनद रहेगा। उस बनद की सयासत से क्या हाशिल होने वाला है उस की कुछ समझ मैं नहीं आ रहा था उस ने अपने बचपन मैं पंजाब मैं उस तरह का बनद की बार दीखे थे। जब भी कोई आदमी दहशत गरदों के हाथों मारा जाता उस के ख़लाफ़ उसी तरह का बनद पकारे जाते थे। बनद नाकाम भी होते थे और कामयाब भी। लेकिन उन से हाशिल कुछ नहीं हो पाता था न मरने वालों को न मारने वालों को। इसलिए उसे बनद के नाम से नफिरत थी। बहुत दनों के बाद वह उसी तरह का बनद कल देखने वाला था वह जो एक ग़ीर वाबसतह शख़स था उस बनद से इतना ख़ोफ़ज़दह था जो लोग उस वाक़ाह से वाबसतह थे उन का क्या हाल हो गाास ख़याल के आते ही उस ने सोचा गांव के हालात का जाज़ह लिया जाए। रात के साड़े दस बजे रहे थे। अकीले उस तरह गांव मैं नकलने से उसे पहली बार ख़ोफ़ महसूस हो रहा था लेकिन हिम्मत कर के वह नकल पड़ा।
गांव पर सनाटा छएा हुआ था लेकिन जगह जगह दस दस बीस बीस को टोलयों मैं गोल बैठे थे। सलाह व मशोरह कर रहे थे। एक दूसरे से सरगोशयां कर रहे थे। उसे देख कर वह चौंक पड़े। मशकोक नज़रों से उसे देखने लगते फिर जब अनीं महसूस होता यह उन के लिए बे जरर आदमी है तो फिर अपने अपने कामों मैं मशग़ोल हो जाते। मनसोबों और सरगोशयों मैं ।
वह जावेद से मल कर उस की हालत जानना चाहता था मसलम महलों की सूरत हाल देखना चाहता था ۱۵،۲۰ हज़ार की आबादी मैं मसलम आबादी मुश्किल से ۵۰۰ के लग भग होती तक़रीबा ۵۰ ،۶۰ घर वह भी गांव एक कोने मैं । ज़ाहर सी बात है कि वह ख़ोफ़ व दहशत से समटे होते हो गए। महलह के नकड़ पर लोगों का एक हजोम पहरह दे रहा था उसे आता देख सब चौंक पडे और उन्हों ने उसे घीर लिया
अरे जिम्मी। । । तुम इतनी रात गए यहां कैसे आए जावेद उसे देख कर भीड़ को चीरता हुआ उस के पास आया।
आप की ओर आप के मोहल्ले की सूरत हाल का जाज़ह लीने आया हूं । । । जावेद भाई उस ने कहा।
अभी तो सब ठीक है लेकिन जो हालात है उस से ऐसा महसूस होता है कल कुछ भी ठीक नहीं हो गा। जावेद मएोसी से बोला।
क्या मतलबोह बोला आप के कहने का मतलब क्या हे
कल क्या हो सकता है कुछ अनदाज़ह नहीं लगाया जा सकता
अगर ख़तरह है तो आप लोग उस गांव को छोड़ दीं ‘‘
गांव छोड़ कर कहा जाईं । चारों तरफ़ ख़तरह मनडला रहा है मैं ने आस पास के तमाम शहरों की रपोरटीं जमा कर ली है हर जगह से एक ही जवाब मिलता है रहां भी वही माहोल है ख़तरह उन पर भी मनडला रहा है तो भला वह हमैं पनाह क्या दीं गए। हम लोग सीनकड़ों सालों से उस गांव मैं आबाद हैं । आज तक उस गांव की यह रोएत रही है कि सारा हिन्दोस्तान सलगता रहा लेकिन यहां कुछ नहीं हुआ। खुद करे यह रोएत क़ाम रहे। हम अपनी तोर पर अपनी हफ़ाज़त के लिए हमारे पास लकड़यां भी नहीं है कुछ दिन क़बल तलाशी के नाम पर वह भी पोलीस जबत कर के ले जाचकी है ‘‘ जावेद बोला।
उस ने तमाम लोगों की तरफ़ देखा। हर चहरे पर ख़ोफ़ लहरा रहा था आँखों मैं बे बसी छाई हुई थी। ख़तरों के ख़दशात से चहरह तना हुआ था
जावेद भाई दिन भर हम एक एक के चहरे को पड़ते रहे। कल तक जो हमारे यार थे आज उन की आनखीं भी बदली बदली हैं । हर कोई अमित के रंग मैं रंग गया और अमित की बोली बोलने लगा है यह आसार अछे नहीं हैं । एक आदमी बोला।
गज़शतह दनों उस गांव मैं वह स कुछ हुआ जो गज़शतह सौ सालों मैं नहीं हुआ था ऐसा लग रहा है जैसे यह सब पहले से ते था मनज़म तोर पर उस बात की पोरी तयारी की जा रही थी। दोसरा आदमी बोला।
तो हम क्या करीं ؟‘‘
हम हमलह नहीं कर सकते तो बचा भी नहीं कर सकते। बचा के लिए हमारे पास लाठयां भी तो नहीं है ‘‘
अललह बहुत बड़ा है वह सब ठीक कर दे गा। ‘‘
हमैं अललह पर भरोसह है लेकिन उस के बनदो पर नहीं । ‘‘
वह लोग आपस मैं बातीं कर रहे थे और वह तमाशाई बन चप चाप एक दूसरे के चहरों को देख रहा था
देखते होनी को कोई टाल सकता। अगर ओपर वाली ने यह हमारे मक़दर मैं लिख दिया है तो यह हो कर रहे अग दिल बरदाशतह होने की ज़रूरत नहीं है उस का सामना करने के लिए खुद को तयार करना चाहये। और अपने अन्दर उस तरह के हालात का मक़ाबलह करने की हिम्मत जमा करनी चाहये वरना वक़्त के आए गा हम कुछ भी नहीं कर पाईं गए। सिर्फ़ झोटे ख़ोफ़ की वजह से हमारी जानीं जाईं गई। जावेद हर किसी को दलासह दे रहा था
थोड़ी देर रुक क वह वहां से वापिस दुकान की तरफ़ चाल दया। उस बार लोटा तो चोक पर उसे की लोगों ने घीर लिया
क्यों सरदार जी कहां से आ रहे हो
मसलमानों के मोहल्ले से आ रहे होना
क्या चाल रहा वहां ؟‘‘
सना है वहां पाकिस्तान से हथयार आ गए हैं । पूरे मोहल्ले का बचह बचह महलक हथयारों से लीस है कल वह उस गांव पर हमलह कर दीं गए और उस गांव का एक आदमी को भी नहीं छोड़ीं गए। कसी ने कहां ।
अन के पास पाकिस्तान से हथयार कहां से आ सकते हैं । उन के पास तो अपनी हफ़ाज़त के लिए लाठयां भी नहीं है हथयार तो आप लोगों के पास है पाकिस्तान के हथयार का शोशह छोड़ कर आप लोगों को अपनी हफ़ाज़त के लिए मसलह कर दिया गया है यह तो वक़्त बताे गा आप उन हथयारों से अपनी हफ़ाज़त करीं गए या हमलह करीं गए वह बोला।
साला यह भी उन का तरफ़ दार लगता है कसी ने उस की बात सुन कर जाल कर कहा।
देखये वहां ऐसा कुछ नहीं है वह लोग तो खुद डरे सहमे हुए हैं । उस ने कहा और आगे बड़ गया।
वापस आ कर वह बसतर पर लीट गया। लेकिन नीनद उस की आँखों से कोसों दूर थी। ऐसी हालत मैं भला कसे नीनद आ सकती थी। उसे महसूस हो रहा था जैसे उस के चारों तरफ़ एक अला दहक रहा है गांव के चारों तरफ़ एक अला दहका हुआ है जिस की आग आगे बड़ रही है गांव को हर किसी को अपनी लपीट मैं लीने के लिए।

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M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 9

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 9

कभी कभी सुबह की पहली करन अपने साथ मनहोस वाक़ाात की मनादी ले कर आती हैं । उस दिन वह जलदी जागा लेकिन उसे माहोल कुछ बोझल बोझल सा लग रहा था उसे चारों तरफ़ वहशत सी छाती महसूस हो रही थी। मामोल के मताबक़ मधू आई। उस से कुछ देर उस ने बातीं कीं । और बस मैं बैठ कर चली गई। लेकिन उसे मधू के मिलने से कोई मसरत नहीं हुई। एक अजीब सी अदासी मैं उस ने खुद को लपटा हुआ महसूस क्या। ज़हन पर एक बोझ सा था बोझ तो दो दनों से उस के ज़हन पर था उस ने दो टोक अमित से कह दिया था वह मधू से प्यार करता है और करता रहेगा। वह उसे धमकी दे कर गया था उस से पहले मधू अमित को दो टोक कह चकी थी।
दो दनों तक अमित ने कुछ नहीं क्या था दिल मैं एक दहशत सी लगई थी। हर लमहह डर लगा रहता था कि अमित कोई अनतक़ा कारवाई करेगा। लेकिन अमित की तरफ़ से कोई कारवाई नहीं हुई थी। लेकिन उस बात परोह खुश फ़हमी मैं मबतला नहीं हो सकते थे कि अमित ने शकसत तसलीम कर ली है अब वह उन के रास्ते मैं नहीं आए गा।
ख़दशह तो दोनों को लगा हुआ था कि अमित इतनी जलदी अपनी शकसत तसलीम नहीं करेगा। उन पर कोई वार करने के लिए अपनी सारी ताक़त को यकजा कर रहा हो गा। न तो अमित उस के बाद उस के पास आया था न उस ने मधू को धमकाने की कोशिश की थी। उस के ख़ामोशी ने अनीं एक अजीब से अलझन मैं मबतला कर दिया था यह ख़ामोशी किसी तोफ़ान का पेश ख़ीमह महसूस हो रही थी। एसे मैं सुबह तो उदास वहशत नाक महसूस कर के वह डर गया। उस का दिल बार बार कहने लगा आज तो कोई बहुत ही अजीब बात होने वाली है उस के लिए कोई अजीब वहशत नाक और कोई बात क्या हो सकती थी। यही कि अमित अनतक़ामी कारवाई के तहत उन पर हमलह करेगा। यह हमलह किस रोप मैं हो सकता है अनीं उस बात का अनदाज़ह नहीं था और न वह उस सलसले मैं कोई अनदाज़ह लगा पा रहे थे।
वह दुकान मैं बैठा उस के बारे मैं सोच रहा था कि फ़ोन की घनटी बजी। जिम्मी टी वी पर नयोज़ देखी। ‘‘ दूसरी तरफ़ जावेद था
मेरे घर या दुकान मैं टी वी नहीं है ‘‘ उस ने जवाब दया।
ओहो जावेद की तशवीश आमीज़ आवाज़ सनाई दी। दहशत भरी ख़बर है ‘‘
कीसी बरी ख़बर ‘‘ जावेद की बात सुन कर उस का भी दिल धड़क उठा।
कार सयोक एोधया से वापिस आ रहे ۷۰ के क़रीब कार सयोकों को जिन्दा जला दिया गया है जिस टरीन साबरमती एकसपरीस से वह वापिस आ रहे थे। उन के डबह पर गोधरा के क़रीब हमलह कर के उन के डबों मैं आग लगा दी गई। जिस की वजह से वह डबह मैं ही जाल कर मर गए। ‘‘
ओ हो यह सुन कर उस का भी दिल धड़क उठा।
यह वाक़ाह गुजरात मैं हुआ है गुजरात जहां फ़रक़ह परसती उरूज पर है गोधरा यहां से क़रीब है टरीन आह्मद आबाद आने वाली थी। अब शाम को वह लाशों को ले कर आह्मद आबाद पहनचे गई। टी वी चैनल खुले अलफ़ाज़ मैं कह रहे हैं कि टरीन पर हमलह करने वाली और हमारे सयोकों को जिन्दा जलाने वाली मुसलमान थे। ‘‘
यह तो बहुत बरी बात है जावेद भाई। ‘‘
इतनी बरी कि उस का तसोर भी नहीं क्या जा सकता। टी वी चैनल पर बार बार जली हुई टरीन का डबह दखाया जा रहा है जली हुई लाशीं दखाई जा रही हैं । लीडरों के भड़काने वाली बयानात आ रहे हैं । उस का उसर सिर्फ़ गुजरात बलकह सारे हिन्दोस्तान पर पड़ेगा। आज या कल क्या हो गा खुद ही ख़ीर करे जावेद ने कहा।
आप क्या करीं गए
क्या करों कुछ समझ मैं नहीं आ रहा है मैं बाद मैं फ़ोन करता हूं । कह कर जावेद ने फ़ोन रख दया।
थोड़ी देर मैं जनगल की आग की तरह यह ख़बर सारे गांव मैं फील गई थी कि गोधरा मैं कार सयोकों को मसलमानों ने जिन्दा जला दया। राम भकतों पर बज़दलानह हमलह कर के अनीं जिन्दा जला दिया गया। मरने वालों मैं बच्चे भी थे और अोरतीं भी। पर कोई उस बात की मज़मत कर रहा था तो यह कुछ लोग उस ख़बर को सुन कर गुस्से मैं ओल फ़ोल बक रहे थे।
कार सयोकों पर हमलह करने वाली फ़रार हैं ‘‘
कार सयोकों का क़ातलों को बख़शा न जाए
ख़ोन का बदलह। । । ख़ोन
कार सयोक अमर हे
बदलह लिया जाए
गोधरा का बदलह लिया जाए ‘‘
पूरे गांव को गोधरा बन दिया जाए
अन के घरों और महलों को साबरमती एक परीस की बोगयां बनादी जाए
जे शरी राम ‘‘
जे बजरंग बली
क़बरसतान पहनचा दो
पाकसतान पहनचा दो
जिन्दा जलादो। । । छोड़ो नहीं । । । ‘‘
ख़ोन का बदलह। । । ख़ोन। । । आग का बदलह। । । आग ‘‘
हर किसी के मुंह बस यही बातीं थीं । दिल को दहला दीने वाले। । । नफिरत भरे नारे गांव की फ़जा मैं गोनज रहे थे। नोजवान लड़के हाथों मैं ननगई तलवारीं लिए तरशोल लिए माथे पर भगवा पटयां बानधे अशतााल अनगईज़ नारे लगाते फिर रहे थे।
तुमहारे क़ातलों को नहीं छोड़ीं गए ‘‘
एक बदले मैं दस को खतुम करीं गए
क़बरसतान बनादीं गए
जला कर राख कर दीं गए
देखते ही देखते सारे गांव का कारोबार बनद हो गया। लोग सड़कों पर आठ आठ दस दस के मजमवाह मैं जमा हो कर एक दूसरे से बातीं कर रहे थे। सब के चहरे गुस्से से तने हुए थे। उन की आँखों मैं नफिरत की आग भड़क रही थी। जो लोग शानत थे। लीडर क़िस्म के लोग अपनी ज़हरीली अशतााल अनगईज़ तक़रीरों से उन की खून को भी खोला रहे थे।
लोग टी वी से चपके थे। टी वी पर पल पल ने अनदाज़ की ख़बरीं दी जा रही थीं । हर बार एक नी ख़बर ने अनदाज़ मैं आ कर अशतााल फीलाती। बार बार टरीन के जले हुए डबों को खाया जा रहा था जली हुई लाशों को दखाया जा रहा था उस वारदात मैं जो लोग मारे गए उन के रिश्ता दारों से अनटर वयो लिया जा रहा था अनटर वयो दीने वाली अनटर वयो मैं अशतााल अनगईज़ बातीं करते। । । बदलह लीने की बातीं करतीं । । । खून का बदलह खून की बातीं । । । तबाह करने वालों को तबाह करने की बातीं । । । लीडर उन बातों को क़लाबे आसमानों से जोड़ते। उसे दहशत गरदी का वाक़ाह कहा जाता । । तो कभी फ़रक़ह परसती के ज़हर की दीन। । । कभी नफिरत की आग के अला का अनजाम। । । आर एस एस बजरंग दल वशो हनदो परीशद बी जे पी सारी तनज़ीमैं एक होगई थीं । सब एक आवाज़ मैं बात कर रहे थे। यह बस देख कर उस का कलीजह मुंह को आ रहा था वह बहुत पहले दुकान बनद कर चका था और दुकान बनद कर के गांव की सैर को नकला था गांव मैं जो मनाज़र वह अपनी आँखों से देख रहा था उसे महसूस कर रहा था दूर से एक बगोलह तेजी से गांव की तरफ़ बड़ रहा है अब उस बात का इन्तज़ार है कब वह गांव को अपनी लपीट मैं ले गा और किस तरह गांव को नीसत व नाबोद करेगा। गांव मैं मीटनगईं जा रही थीं । जलोस नकल रहे थे। जलोस के शरका नफिरत अनगईज़ अशतााल अनगईज़ फ़रक़ह परसती के ज़हर मैं नारे लगा रहे थे। अपने हाथों मैं पकड़ी तलवारीं और तरशोल को चमका रहे थे।
यह जलोस मैं अमित पेश पेश था वह ननगई तलवार हाथों मैं लिए उसे लहराता नफिरत अनगईज़ नारे लगाता लोगो को भड़का रहा था उस पर नज़र पड़ते ही वह कुछ ज्यादा ही ग़जबनाक हो जाता और अपने हाथों मैं पकड़ी तरशोल ، या तलवार को कुछ ज्यादा ही तेजी से लहराने लगता। जैसे उस से कह रहा हो। वक़्त आने पर तुम उस तलवार ، तरशोल का सब से पहला शकार होते।
उस से यह मनाज़र ज्यादा देर दीखे नहीं गए। वह वापिस घर आया। और पलनग पर लीट गया। और सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन दिन मैं भला नीनद आ सकती थी। जब सारे गांव को एक पर होल सनाटे ने अपनी लपीट मैं ले रखा और वह रह रह कर नफिरत अनगईज़ अशतााल अनगईज़ फ़रक़ह परसती के ज़हर मैं बझे नारे उस सनाटे के सीने को चीर रहे हो।
हर नारे चीख़ शोर के साथ उस के दिल की धड़कनीं तीज़ हो जाती थीं । नफिरत की आग का अला जाल चका था यह आग अब किस को जलाे गई क्या क्या ग़जब ढाे गई बस एक ही सवाल ज़हन मैं था

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M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 8

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 8

दूसरे दिन सवीरे किसी के दरवाज़ह खटखटाने पर आंख खली। कोन हो सकता है आनखीं मलते हुए उस ने सोचा। मधू ने उस से कहा था कि वह कुछ दिन उस से नहीं मले गई। और वह भी उस से दूर दूर रहे। इसलिए वह जिल्द नहीं जागा। उस ने ते क्या था कि वह सवीरे देर तक सोता रहेगा। लेकिन इतनी सवीरे कौन उसे जगाने आगयादरवाज़ह खोला तो उस का दिल धक से रह गया। दरवाज़े मैं मधू खड़ी थी।
मधू तुम वह हैरत से उसे देखने लगा।
हां मैं ‘‘ कहते हुए वह अन्दर आई और पलनग पर बैठ कर गहरी गहरी सानसीं लीने लगई।
लेकिन तुम ने तो कहा था आठ दस दिन तुम मुझ से नहीं मलो गई। मैं भी तुम से दूर दूर रहूं । ‘‘
हां मैं ने कहा था मगर अब मैं ने अपना अरादह बदल दिया है मैं किसी से नहीं डरती। मैं ने प्यार क्या है कोई पाप नहीं क्या मेरा प्यार सचा है तो मुझे दुनिया से डरने की ज़रूरत मधू बोली।
लेकिन अमित
मैं उस से भी नहीं डरती। अगर उस ने मुझ से अलझते की कोशिश की तो मैं उस को कचा चबा जां गई। ‘‘ मधू ने गुस्से से बोली।
मधू के तयोर देख करोह दिनग रह गया।
रात भर मैं ने उस बारे मैं सोचा और उस के बाद फैसला क्या है मुझे हमैं किसी से डरना नहीं चाहये। हम सब के सामने यह अालान करीं गए कि हम दोनों एक दूसरे को प्यार करते हैं और शादी करना चाहते हैं । देखते हैं दुनिया की कौन सी ताक़त हमैं प्यार करने से रोकती है और कौन हमारी शादी मैं टानग अड़ाने की कोशिश करता है ‘‘
मधू के तयोर देख कर कर उसे भी एक नया होसले मला। मधू एक लड़की हो कर इतना सब कुछ कर सकती है सारी दुनिया से टकराने को तयार है किसी से नहीं डरती। सब के सामने अपने प्यार का अालान कर ने को तयार है तो वह तो लड़का है उसे दुनिया से डरने की क्या ज़रूरत है मधू अगर उस का साथ दे ، उसे के साथ रहे तो वह सारी दुनिया से टकर ले सकता।
ठीक है मधू। । । अब हमैं किसी से नहीं डरीं गए। सारी दुनिया के सामने अपनी महबत का अालान कर दीं गए। दीखीं ज़मानह क्या करता। ‘‘
मुझे तुम से यही अमीद थी। । । जिम्मी। कह कर मधू उस आ कर लपट गई। और उस की चोड़ी छाती मैं सर रख कर फोट फोट कर रोने लगई। उस ने मधू को भीनच गया। और उस पशत और बालों मैं हाथ फीरने लगा।
ठीक है मधू। । । अगर तुम चाहती हो तो एक दो दिन मैं ही हम शादी कर लीं गए। शादी कर के उस गांव मैं रहीं गए। और दुनिया को बताईं गए कि प्यार करने वाली कतने खुश व ख़रम रहते हैं । प्यार करने वाली को दुनिया से डरना नहीं चाहये। प्यार करने वाली अगर अपने अरादों मैं अटल रहीं तो दुनिया की यह दयवार टोट सकती है अनीं दुनिया की कोई ताक़त एक दूसरे से जुदा नहीं कर सकती। दुनिया की कोई ताक़त अनीं मिलने से रोक नहीं सकती। ‘‘
पता नहीं कतनी देर तक वह एक दूसरे से लपटे एक दूसरे से बातीं करते रहे। बाहर बस का हारन सनाई दिया तो वह चोनके। मधू की बस आ गई थी।
मैं जाती हूं दोपहर मैं फिर आं गई। कहती मधू उस के मुंह को चोम कर तेजी से सीड़यों से नीचे अतर कर बस मैं जा बैठी। बस वाला शायद उस का इन्तज़ार कर रहा था उस के बस मैं बैठते ही बस चाल दी। जाते हुए मधू उसे हाथ दखाया। उस ने भी हथ हला कर फ़लानग किस मधू की तरफ़ अछाला।
देर तक वह जाती बस को देखता रहा। जब तक वह उस की आँखों से ओझल नहीं होगई। बस जब उस की आँखों से ओझल होगई तो वह अन्दर आया। उस के अनग अनग मैं मसरत ख़ोशी अनतशार की लहरीं दौर रही थी। उसे सारी दुनिया फ़ाख़ती महसूस हो रही थी। उसे सारी दुनिया रनगईन सजी हुई महसूस हो रही थी।
एक एक लमहह एक सदी सा महसूस हो रहा था मसरत नशे मैं डोबा हुआ लमहह जिस मैं वह डोबता जा रहा था कहां रात मैं उस ने अपने दिल पर जबर कर के फैसला कर लिया था अब वह मधू की तरफ़ आंख उठा कर भी नहीं दीखे गा। सारी दुनिया को यह बताने की कोशिश करेगा कि जैसे वह मधू को जानता ही नहीं । उस की जिन्दगई मैं मधू नाम की कोई लड़की नहीं है वह किसी मधू नाम की लड़की को नहीं जानता है
अपने दिल पर जबर कर के उस ने यह फैसला कर लिया था और अपने आप को उस के लिए तयार भी कर लिया था कि वह किस तरह हालात का मक़ाबलह करेगा। अपने दिल पर काबू रख कर मधू को कुछ दनों के लिए भोलने की कोशिश करेगा। और उस की पहली कोशिश की तोर पर वह देर तक गहरी नीनद भी सोया था लेकिन अचानक सुबह उस के लिए एक नी नवीद मसरत भरा पीग़ाम ले आई। अब जब मधू ने कह दिया है कि वह किसी से नहीं डरती वह उस से मलना नहीं छोड़े गई। तो फिर उसे डरने की क्या बात। । । वह उस से कह गई है कि दोपहर मैं जलदी आए गई। । । । वह उस के आने का इन्तज़ार करने लगा। उस ने ते क्या कि आज वह दोपहर का खाने अपने घर मैं मधू के साथ खाे गा और मधू के लिए अपने हाथों से खाना बनाे गा। उस के लिए ज़रा जलदी दुकान से आ जाएगा।
वह फिर तयार होने लगा। तयार हो कर दुकान मैं आया और दुकानदारी मैं लग गया। लेकिन ज़हन मधू मैं अटका रहा। मधू आज जलदी आने वाली है ओ र उस के घर आने वाली है आज वह साथ मैं दोपहर का खाना खाईं गए। और वह अपने हाथों से मधू के लिए दोपहर का खाना बनाे गा। दस बजे तक वह अपनी ख़यालों मैं अलझा रहा। अचानक उस के ख़यालों का सलसलह टोट गया। सामने अमित भाई खड़ा था
सवीरे मधू तुमहारे पास आई थी ‘‘ वह उसे क़हर आलोद नज़रों से देख रहा था
आई थी और आती रहे गई। वह उस की आँखों मैं देखते बोला। मधू को यहां आने से कोई नहीं रोक सकता। न मुझे दुनिया की कोई ताक़त मधू को मिलने से रोक सकती है ‘‘
मेरे मना करने के बओजोद तुम मधू से मले। ‘‘
मलों गा। । । क्या कर लो गए। वह अमित से अलझने के लिए पोरी तरह तयार हो गया।
अमित उसे क़हर आलोद नज़रों से देखता रहा। फिर उस के तयोर देख कर उस की आँखों मैं बे बसी के तासरात उभरे।
अमित से दशमनी बहुत महनगई पडे गई। कहता वह तेजी से पलटा और तीज़ तीज़ क़दमों से आगे बड़ गया।
देखता हूं दशमनी कसे महनगई पड़ती है उस ने हूंट चबा कर कहा और उस गाहक की तरफ़ मतोजह हुआ जो दोनों को हैरत से देख रहा था

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M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 7

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 7

दूसरे दिन वह मधू का बे चैनी से इन्तज़ार कर रहा था लेकिन वह काफ़ी ताख़ीर से आई। वह चाहता था मधू कुछ पहले आए ताके वह उस से पूछ सके के कल कोई गड़बड़ तो नहीं हुई। लेकिन दूर से ही मधू ने इशारा कर दिया कि वह ग्लेरी मैं खड़ा न रहे अन्दर चला जाए। बाक़ी बातीं वह फ़ोन पर बता दे गई। मधू के उस इशारे से उस ने अनदाज़ह लगाया कुछ तो भी गड़बड़ है या गड़बड़ होनी है इसलिए वह फौरन अन्दर चला गया। लेकिन उस का दिल न माना। वह खड़की की दराज़ से छुप कर मधू को देखने लगा। मधू बस स्टाप आ कर खड़ी होगई। वह बहुत घबराई हुई थी। बार बार चौंक कर चारों तरफ़ देखने लगती। जैसे उसे किसी का डर हो। उस ने अनदाज़ह लगाया शायद मधू की निगरानी की जा रही है उसी लिए वह इतनी घबराई हुई है इतने मैं बस आ गई और वह बस मैं जा बैठी और बस चली गई।
जलदी से तयार हो कर वह दुकान मैं आया। उसे मधू के फ़ोन का इन्तज़ार था उसे पुरा यक़ीन था मधू उसे फ़ोन करेगीऔर सारी बातीं बताे गई। उसे मधू के फ़ोन का ज्यादा देर इन्तज़ार नहीं करना पड़ा। शायद मधू ने शहर पहूंचते ही उसे फ़ोन लगाया था
जिम्मी। । । बहुत गड़बड़ होगई है वह हरामी अमित ने ऐसी आग लगाई है कि मैं बता नहीं सकती। उस ने न सिर्फ़ मेरे घर वालों बलकह मोहल्ले और बिरादरी के चंद बड़े लोगों के सामने मुझ पर यह इलज़ाम लगाया है कि मेरे तुम से नाजाज़ तालुक़ात हैं । ‘‘
यह सुन कर उस गुस्से से उस के कान की रगें फूल गईं । मैं ने सब के सामने उन बातों से अनकार िक्या है वह सबोत पेश नहीं कर सका इसलिए सब के सामने उसे ज़लत उठानी पडे। इसलिए वह तलमलएा हुआ है उस ने चीलनज क्या है कि वह हम दोनों को रंगए हाथों पकड़ कर घसीटता हुआ ला कर सब के सामने खड़ा कर देगा। बिरादरी वालों ने कहा है कि उस बात का फैसला वह उस वक़्त करीं गए। लेकिन मेरे म बाप बहुत दुखी हैं । वह बार बार मुझ से कह हैं बीटी तुम ऐसा कोई काम मत करो जिस से बरादरी मैं हमारी पगड़ी अछले। कह कर मधू ख़ामोश होगई।
फिर क्या क्या जाएकाफ़ी देर की ख़ामोशी के बाद उस ने पोछा।
सोचती हूं दो चार दिन हम एक दूसरे से दूर ही रहीं तो बहुतर है फ़ोन पर बातीं कर लिया करीं गए। ‘‘
ठीक है वह बोला। अगर तुम यह मना सब समझती हो तो यह भी कर लीं गए। उस ने कहा दूसरी तरफ़ से मधू ने फ़ोन रख दया।
वह रसयोर रख कर सोचने लगा। एक दिन माामलह यहां तक पहूंचना ही था अगर अमित दरमयान मैं नहीं आता तो शायद उस माामले को यहां तक बरसों लग जाते। लेकिन अमित की वजह से यह माामलह बगड़ गया। अब क्या क्या जाए उस की समझ मैं नहीं आ रहा था वह कोई एक फैसला नहीं करपा रहा था उस वक़्त हालत एसे थे न तो वह मधू को छोड़ कर सकता थ और न अपना सकता था मधू उस की रोह की गहरायों मैं उस हद्द तक बस गई थी कि वह मधू के बग़ीर एक लमहह भी नहीं रह सकता था मधू की भी यह हालत है दोनों के सामने एक ही रासतह। वह गांव छोड़ दीं । कहीं बहुत दूर चले जाईं जहां वह आराम से रह सके। उन के दरमयान कोई दयवार न हो। लेकिन उस का दिल उस के लिए तयार नहीं था
नी जगह जाने के बाद रोज़गार का सब से बड़ा मसलह उस के सामने हो गा। वह ऐसी हालत मैं मशकलात से अपना पीट भर सकता है तो भला मधू का पीट किस तरह पाक सकता है उस क़िस्म का अहम फैसला जज़बात मैं नहीं करना चाहये बहुत सोच समझ कर करना चाहये। ताके आगे कोई तकलीफ़ न हो। देर तक वह उन ही ख़यालों मैं अलझा रहा। जब दिल घबरा गया तो उस रघो से कहा। मैं अभी चोक से आया। ओर टहलता हुआ जावेद के साबर कीफ़े की तरफ़ चाल दया।
आये सरदार जी। क्या बात है ؟ आप उस वक़्त यहां ؟ कुछ बझे बझे से दखाई दे रहे हैं की ग़ुल हुए
ओर की ग़ुल होगई। । । वह लमबी सानस ले कर बोला वही दिल दा माामलह ‘‘
दल दा माामलह। । । की के साथ ؟ ‘‘ उस ने पोछा।
वह। । । मधू के साथ। ‘‘
ओे। । । तो तुम ने मधू के साथ दिल दा माामलह फ़ट क्या ! इतनी जलदी और अब तक मैं नौ बताया भी नहीं । ‘‘
ओर अब बता रहा हूं ना। ‘‘
माालह की हे
अमित भाई पटेल। ‘‘
उस ने एक लफ़्ज़ कहा जसे सुन कर जावेद के चहरे के तासरात भी बदल गए।
मैं यह कहूं गा जिम्मी। । । तुम ने गलत जगह दिल लगाया है जावेद के चहरे पर सनजीदगई के तासरात थे तुम ने नोटया किसी और लड़की से दिल लगाया होता तो उस माामले मैं मैं तुमहारी पोरी पोरी मदद करता। लेकिन मधू के माामलह ऐसा है एक अख़धे के चनगल से मधू को छड़ाना है तुझे पता है । । अमित भाई मधू पर मरता है ओ र मधू उसे घास नहीं डालती है लेकिन उस के बओजोद वह मधू को अपनी मलकीत समझता है और उस के मलकीत की तरफ़ आंख उठाने का मतलब हुआ। । । । । । जावेद रुक गया।
वह बहुत द यर तक उस माामले पर बातीं कर ते रहे। उस ने अपनी और मधू के तालक़ात की सारी बातीं जावेद को बता दीं । सब सनने के बाद जावेद अगर तुम दोनों को उस गांव मैं नहीं रहना है तो उस गांव से भग जा। सारी दुनिया सामने है जो दो महबत करने वाली दलों को पनाह दीने के लिए तयार है लेकिन अगर तुम दोनों को उस गांव मैं रहना है तो फिर एक दूसरे को भूल जा। । । ‘‘
हमैं तो उस गांव मैं रहना है और एक दूसरे को भूल न भी नहीं है ‘‘
मसलहत के तहत समझोतह कर के भी तो इन्सान जी सकता है उस वक़्त जो हालात है उस की बनयाद पर तुम दोनों एक समझोतह कर लो। हम दोनों एक दूसरे को भोलीं गए नहीं । । । एक दूसरे को पहले की तरह चाहते रहीं गए लेकिन एक दूसरे से दूर रहीं गए। । । एक दूसरे से मलीं गए नहीं । । । एक दूसरे की तरफ़ दीखीं गए भी नहीं । ‘‘
मुझे अमित का डर नहीं है अपने हाथों से एक झटके मैं मैं उस की गर्दन तोड़ सकता हूं । लेकिन मुझे डर मधू उस के खानदान उस की बरादरी का है मैं अमित से नहीं डरता। ‘‘
ताक़त की बनयाद पर कोई भी अमित से नहीं डरता है लेकिन उस के शीतानी मनसोबों से ख़ोफ़ खाते हैं । वह जो सामने लड़का बैठा है न वह भी अमित की जान ले सकता है मर मर कर उसे अध मरा कर सकता है लेकिन सीफ़ अलदीन भाई का देखा उस ने क्या हाल क्या। ‘‘
बहुत देर तक व उस माामले मैं बातीं करते रहे। फिर वह यह कह कर आथ गया। देखते हैं हालात का ओनट क्या करोट लेता है उस वक़्त हालात के मताबक़ सोचीं गए क्या करना है ‘‘ अमित किस लिए दुकान पर आया था और उसे क्यों पूछ रहा थाोह दोनों एक दूसरे के रक़ीब थे। अमित उस से अपनी राह से हट जाने के बारे मैं कहने आया हो गा। अच्चा हुआ उस और अमित से सामना नहीं हुआ। वरनह अमित अगर उस से कोई अलटी सीधी बात करता तो उसे खुद पर काबू रखना मुश्किल हो जाता
दिन भर उन ही ख़यालात मैं गज़र गया। मधू का लज से आई और बन उस की तरफ़ दीखे घर चली गई। घर जा कर उस ने उसे फ़ोन क्या तो उस ने मधू को बता दिया अमित आया था उस से मिलने मगर वह मला नहीं ।
मधू ने उसे मशोरह दिया कि जीतना ममकन हो सके अमित से कतराने की कोशिश करो। वह कोई शीर बबर नहीं है जो उसे खाजा ए गा। लेकिन हालात और मसलहत का तक़ाजह यह है कि नज़र अनदाज़ करे। जिल्द कोई न कोई रासतह नकल आए गा। ‘‘
रात मैं अमित फिर आ धमका। ओर सरदार जी कैसे हो अख़बारात पड़ते हो या नहीं ؟ देखा मेरी ताक़त का अनदाज़ह ؟ सीफ़ अलदीन को तबाह व बर्बाद कर दया। जिन्दगई भर वह अब जील की सलाख़ों से बाहर नकल नहीं पायेगा। उस पर इतने अलज़ामात लगा दिए गए हैं कि वह खुद को बीगनाह साबत करते करते उस की उमर खतुम हो जाए गई। वह मुझ से टुकड़ा रहा था । । अमित भाई से। अमित भाई की ताक़त का उसे अनदाज़ह नहीं था बी जे पी वशो हनदो परीशद आर एस एस ، बजरंग दिल यह सब अमित की ताक़त है उन से टकर लीने से मरकज़ी हकोमत भी घबराती है तो भला एक मामोली मुसलमान की ओक़ात क्या ؟ ‘‘
वह रुक कर उस की आँखों मैं देखने लगा।
सीफ़ अलदीन के तो बहुत सारे हमएती थे गांव के चार पाँच सौ मुसलमान उस के साथ थे। की कानगरीसी मसलम लीडर उस के साथ थे फिर भी क्या वह जील जाने बच सका ؟ नहीं बच सका। और तुम तो उस गांव मैं अकीले हो तुमहारी मदद करने तो पंजाब से भी कोई नहीं आने वाला ؟ फिरकस बनयाद पर तुम अमित भाई से टकर लीने चले हो
तुम कहना क्या चाहते हो। । । ؟‘‘ उसे जोश आगया।
एक ही बात। । । मधू का ख़याल अपने दिल से नकाल दो। मधू सिर्फ़ अमित की है और किसी की हो नहीं सकती। कोई उस के बारे मैं सोचने की जरत भी नहीं कर सकता। । । नोजवान हो अकीले हो। । । जवानी मैं किसी न किसी सहारे की ज़रूरत पड़ती है मुझे भी उस बात का अहसास है लेकिन उस सहारे को मधू और उस की जवानी मैं क्यों ढोनढते हो अगर तुम्हें और कोई चाहये तो गांव की जिस लड़की की तरफ़ इशारा कर दो गए उसे ला कर तुमहारे क़दमों मैं डाल दों गा। मुझे पता है तुमहारे चाचा ने उस गांव मैं बहुत मज़ह क्या है मज़ह करने पर मुझे कोई अातराज नहीं है तुम सारे गांव की लड़क्यों के साथ अोरतों के साथ मज़े करो। मुझे कोई अातराज नहीं हो गा। लेकिन मधू की तरफ़ आंख उठा कर भी मत देखना कयोनकह मधू सिर्फ़ मेरी है यह मेरी वारननग है अगर तुम और मधू मुझे साथ साथ दखाई दिए तो मुझ से बुरा कोई नहीं हो गा। कहता वह चला गया।
उस रात वह रात भर नहीं सौ सका। उस का दिल चाह रहा था वह अपने दोनों हाथों से अमित का लगा घोनट कर हमीशह के लिए उस का क़सह ही खतुम कर दे। लेकिन उसे उस तरह मधू नहीं मिलने लगए। उसे जील हो जाए गई। और जब वह जील से बाहर आए गा तो मधू उस का इन्तज़ार करते करते जब पराई हो जाए गई। किसी और की हो जाए गई।
उसे मधू पर ग़सह आ रहा था वह उस की जिन्दगई मैं क्यों आई वह अपनी जिन्दगई मैं बहुत खुश था प्यार की कोनपल उस के दिल मैं नहीं फोटी थी। लेकिन अपने प्यार की चनगारयों से मधू ने उस के वजोद को अला मैं तबदील कर दया। और अब वह उसी अला की आग मैं दहक रहा है उस आग की तपश से मधू भी अछोती नहीं है उस की जिन्दगई भी उस की तपश मैं जहनम बन रही है मधू की महबत प्यार का अला एक ऐसा अला जैसे वह चाह कर भी बझा नहीं सकता। और अब उस अला को रोशन रखने के लिए उसे अपनी जान की बाज़ी लगानी है

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M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 6

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव
लेखकः-ःएम.मुबीन
Part 6
दूसरे दिन सीफ़ अलदीन की गरफ़तारी की ख़बरीं नमएां अनदाज़ मैं थीं ख़बरीं कुछ उस अनदाज़ से शाा हुई थीं कि जो पड़ता था दिनग रह जाता था
नोटया गांव से पाकिस्तानी एजनट गरफ़तार। । । पाकिस्तान के ख़फ़ीह एजनसी आई एस आई के सब से ख़तरनाक एजनट सीफ़ अलदीन को पोलीस ने उस के ۱۰ साथयों के साथ गरफ़तार क्या। । । बी जे पी और बजरंग दिल के सदर पर क़ातलानह हमलह करने वाली पाकिस्तानी एजनट की गरफ़तारी। । । गरफ़तार शदह पाकिस्तानी एजनट की सालों से पाकिस्तान की ख़फ़ीह एजनसी के लिए काम कर रहा है और मुल्क दुश्मन सरगरमयों मैं मलोस है उस ने ममबी के तरज़ पर गुजरात के मख़तलफ़ शहरों मैं बम धमाके करने की मनसोबह बन रखा था उस के अलओह मुल्क की फ़ोजी नवाईत की तनसीबात को नशानह बनाने का पलान बनाया था ममकन है तलाश मैं उस के होटल से ख़तरनाक हथयार और गोलह बारोद बरआमद हो। । । सीफ़ अलदीन ने नोटया गांव को मुल्क दुश्मन सरगरमयों का अडा बन रखा था उसके और भी साथी उस वक़्त गांव मैं मौजूद है अगर उन की गरफ़तारी जिल्द अमल मैं नहीं आई तो यह मुल्क के लिए ख़तरह साबत हो सकती है ममकन है नोटया के घरों की तलाशी की जाए तो उन घरों से महलक हथयार बरआमद हो। सीफ़ अलदीन और उस के साथयों पर पोटा लगा कर उस पर खली अदालत मैं मक़दमह चलएा जाए। ‘‘
उस के हाथों ज़ख़मी होने वाली गांव के हर दिल अज़ीज़ लीडर बी जे पी के रहनमा और बजरंग दिल के सदर अमित भाई पटेल की हालत बुद सतोर तशवीशनाक है डाकटरों ने अब भी अनीं ख़तरे से बाहर क़रार नहीं दिया है ‘‘
उसे तो गुजराती पड़नी नहीं आती थी लेकिन लोग आ कर उसे अख़बारात की ख़बरीं सनाते थे ओ र उस की दुकान पर खड़े हो कर तबसरह करते थे। जहां तक वह सीफ़ अलदीन को जानता था वह एक सीधा साधा अ नसान था उस का पालीटकस गुण्डा गरदी या मुल्क दुश्मन सरगरमयों से दूर का भी वासतह नहीं था लेकिन तमाम अहम गुजराती अख़बारात ने उस के ख़लाफ़ एक से अलज़ामात लगा कर उसे मुल्क का सब से बड़ा दुश्मन और गुण्डा क़रार दे दिया था और जिस अमित की हालत तशवीशनाक बताई गई थी वह दिनदनाता गांव मैं घोम रहा था उसलीत तो वह और नोटया गांव के लोग जानते थे। जो लोग अख़बारात मैं यह ख़बरीं पड़ीं गए वह तो सच समझीं गए और सीफ़ अलदीन को पाकिस्तानी एजनट मलक दुश्मन बहुत बड़ा गुण्डा ही समझीं गए। जो नोटया गांव मैं मुल्क दुश्मन सरगरमयां चला रहा था बातों मैं कतनी सचाई है वह जानता था । । हर कोई जानता था लेकिन कौन उस के ख़लाफ़ आवाज़ उठा कर सचाई बयान कर सकता था
उसे पंजाब मैं दहशत गरदी का ज़मानह याद आया। उसी तरह की ख़बरीं उस वक़्त भी अख़बारात की ज़ीनत बन करती थी। पोलीस ने ज़ाती दशमनी से किसी मासोम को गोली मर दी भी तो उस मासोम को बहुत बड़ा दहशत गरद क़रार दिया जाता था और अख़बारात मैं एक बे गनाह कीपोलीस के हाथों मौत की ख़बर के बजाए एक दहशत गरद के अनकानटर की ख़बरीं आती थीं । दो पड़ोसी अगर लड़ते तो उस मैं एक को दहशत गरद क़रार दे कर उसे अख़बारों की सरख़यों की ज़ीनत बनादया जाता था गांव मैं एक मामोली वाक़ाह होता तो उसे दहशत गरदी की अीनक से देख कर उसे मुल्क का सब से बड़ा वाक़ाह बन दिया जाता था
उसे लगा दहशत गरदी की ज़हनीत हर जगह काम कर रही है जो कुछ पंजाब मैं हुआ था अब गुजरात मैं हो रहा है खलाड़ी रही है । । मैदान बदल गए हैं । । । खील वही है । । खील के टारगेट बदल गए हैं ।
सवीरे मधू कालेज जाते हुए उस से मल कर गई थी। एक दो बार उस का फ़ोन आया था उस न कह दिया था कि गांव मैं है कोई वाक़ाह हुआ है सब अपने अपने कामों मैं लगए हैं । ۱۰ बजे पोलीस की बहुत बड़ी गांव पहनची। और उस ने पूरे मसलम मोहल्ले को घीर लिया और हर घर की तलाशी लीने लगई। उसे पता चला कि जावेद के अनसटी टयोट की भी तलाशी की जा रही है तो वह वहां पहूंच गया।
आप शौक़ से पूरे अनसटी टयोट की तलाशी लीजये अनसपकटर साहब । जावेद एक अनसपकटर से कह रहा था यह तालीम का घर है यहां बच्चों को तालीम दी जाती है मास पकड़ना सखाया जाता है बनदोक़ या पसतोल पकड़ना नहीं । ‘‘
हम समझते हैं मसटर जावेद लेकिन हम मजबोर हैं । अख़बारात ने उस वाक़ाह को इतना अछाला है और ऐसी ऐसी ख़बरीं छाप दी हैं कि हम पर ओपर से दबा आया है कि हम बता नहीं सकते। हमैं यह सब करना पड़ेगा। अनसपकटर ने जवाब दया। ‘‘
दो तीन घण्टे मैं ख़ानह तलाशी खतुम होगई। पोलीस को घरों से छरी चाक़ो ، लकड़यां लाठयां जो कुछ मला जबत कर के ले गए। और साथ मैं ۱۰ ،۱۲ लोगों को भी गरफ़तार कर के ले गई।
जावेद भाई यह क्या हो रहा है ‘‘ उस ने पोछा।
वही जो सारी दुनिया मैं हो रहा है दहशत गरदी के नाम पर दहशत गरदी। झोटे परचार के सहारे दहशत गरदी फीलाई जा रही है और मासोम लोगों को नशानह बनाया जा रहा है ‘‘ जावेद मएोसी भरे लहजे मैं बोला। अनसानों के जिम्मीर मरदह हो गए हैं । सचाई एमानदरए अख़लास यह किसी को फ़रक़ह परसती के अला मैं जला कर ख़ाक कर दिया गया है और उस अला से जो शाले भड़क रहे हैं जो आग दहक रही है वह माहोल मैं फ़रक़ह परसती नफ़रत हसद बग़ज कीनह की गरमी फीला रही है ‘‘
जावेद भाई जो अला जलएा गया है अगर उस की आग पर काबू नहीं पएा गया तो यह आग न सिर्फ़ हमारे गांव को बलकह आस पास के सारे इलाके को जला कर ख़ाक कर दीं गए। ‘‘
’’ न हम ने वह अला भड़ का या है और न हम मैं उसे बझाने की ताक़त है उसे भड़कएा है क़रफ़ह परसत क़ोमों ने क़रफ़ह परसत सयासत दानों ने और वह उस आग मैं मासोमों ، बे गनाहूं को झोनक कर अपने मफ़ाद की रोटयां सीकीं गए। जावेद मएोसी से बोला।
जावेद के पास से वह हो चला आया। और दुकान पर बैठ कर मधू के फ़ोन का इन्तज़ार करने लगा। मधू आए तो उस ने आँखों से घर चलने के लिए कहा। वह अपने कमरे मैं आया। मधू उस से गांव की हालत पूछने लगई। उस ने सारी तफ़सीलात बताई।
’’ हां मैं ने भी अख़बारात की ख़बरीं पडे हैं । और मैं खुद हीरान हूं कि उस माामले को किस तरह रंग दिया गया है वह कमीनह अमित इतना ज़लील हो गा मैं ने सोचा भी नहीं था वह अपने अना के लिए हज़ारों बे गनाहूं को अज़ीत दीना अपनी चाहता है समझता है मधू दाँत पीस कर बोली।
एक दो बातीं कर के वह चली गई। यह कह कर अगर गांव मैं ऐसी वीसी बात हुई तो उसे ख़बर करे गई। उस के जाने के बाद जब वह दुकान पर आया तो रघो ने उसे टोका। क्यों सीठ जी माामलह पट गया ‘‘
कीसा माामलह ؟‘‘
दल का माामलह। । । लगए रहो। । । परदीस मैं दिल बहलाने के लिए कोई ज़रयाह भी तो चाहये आप भी आख़र अपने चाचा के भतीजे हैं । आप के चाचा भी आप की तरह रनगईले थे। ‘‘
रनगईले वह रघो को घोर ने लगा।
अरे भाई आदमी घर बार बयवी बच्चों से हज़ारों मील दूर महीनों तक रहता है तो जिन्दा रहने के लिए रनगईला बन कर रहेगा या सनयासी बन कर। । । आ के चाचा ने भी की अोरतों से दिल का माामलह जमा रखा था ‘‘
की अोरतों से ؟‘‘ वह हैरत से रघो को देखने लगा।
अं उन का माामलह की अोरतों से था वह उन अोरतों से अपनी ज़रूरत पोरी करता था और वह अोरतीं उस से अपनी जिसमानी होस। ‘‘
यह बातीं सुन कर वह सोच मैं पड़ गया। आज उसे अपने चाचा का एक नया रोप मालूम पड़ा था लेकिन उसे अपने चाचा से कोई शकएत नहीं थी। बीचारा सालों तक चाची से दूर रहता था दिल बहलाने के लिए अपनी ज़रूरत पोरी करने के लिए माामलों मैं अलझे गा नहीं तो और क्या करेगा। लेकिन उस का माामलह थोड़ा मख़तलफ़ था उस के और मधू के तालक़ात को चाचा का सा माामलह नहीं कहा जा सकता था वह मधू को अपने दिल की गहराई से चाहता था मधू भी उसे अपने दिल की गहराई से चाहती थी। उस के ज़हन मैं जनसी तालक़ात के ख़याल भी नहीं आया था अभी तक तो उस ने मधू को छवा भी नहीं था न मधू किसी ग़लत नीत से उस के क़रीब आई थी। एक दयवानगई थी। दोनों का दिल चाहता था बस वह एक दूसरे से बातीं करते रहे। एक दूसरे के पास बैठे एक दूसरे को देखते रहे। वह जिन्दगई भर के लिए एक दूसरे के हो जाना चाहते थे। लेकिन दोनों का माामलह बड़ा टीड़ा था उसे पता था अगर उन के तालक़ात का अलम मधू के घर वालों को हुआ तो आग लग जाए गई। अगर अमित को मालूम हुआ तो उस के टुकड़े टुकड़े करने के दरपे हो जाएगा।
वह मधू को चाहता था मधू को अपनी मलकीत समझता था और उस की मलकीत पर कोई हक़ जताे। उसे लग रहा था एक दूसरे को पाने के लिए अनीं की एसे क़दम उठाने पड़ीं गए जो उन के लिए कानटों भरा रासतह साबत हो सकते हैं । अनगारों से भरी राहूं पर चलना हो गा। वह तो उन सब बातों के लिए तयारथा। लेकिन क्या मधू उन तकलीफ़ों को सहह पाे गई। उस ने उस सलसले मैं मधू से बात नहीं की थी। उस का एक दिल कहता उसे मधू से उस सलसले मैं साफ़ साफ़ बात कर लीनी चाहये। तो दूसरा दिल कहता उसे उस सलसले मैं मधू से बात करने की कोई ज़रूरत नहीं । सचे अाशक़ प्यार करने वाली ज़मानह का सामना करते हुए हर क़िस्म का अमतहान दीने तयार रहते हैं । उसे पवार यक़ीन था मधू उस की तरह हर अमतहान मैं पोरी उतरे गई।
दूसरे दिन जब मधू कालेज जाने लगई तो वह भी उस के साथ बस मैं बैठ कर शहर आया। आज वह मधू से दिल खोल कर सारी बातीं कर लेना चाहता था उस के अरादों को समझ कर उस के जज़बात ، अहसासात की क़दर करते हुए मधू ने उस दिन कालेज जाने का अरादह तरक कर दया।
क्या बात है आज उस तरह मेरे साथ शहर क्यों चले आए ؟‘‘ मधू ने पोछा।
मधू की ऐसी बातीं हैं जनीं सोच सोच कर मैं सारी रात नहीं सौ सका। ‘‘
ऐसी कौन सी बातीं थे जनों ने हमारे सयां की नीनद हराम कर दी। मधू ने उसे छीड़ा।
मज़ाक़ मत अड़ा। । । मैं सनजीदह हूं । । । सौ फ़ीसद सनजीदह तुम भी सनजीदह हो जा। यह हमारी जिन्दगई का सवाल है ‘‘
उसे सनजीदह देख कर मधू भी सनजीदह होगई। तुम मुझ से प्यार करती हो उस ने पोछा।
यह भी कोई पूछने वाली बात है ‘‘
मैं भी तुम से प्यार करता हूं तुमहारे अलओह मेरे लिए दुनिया की किसी भी ग़ीर औरत का तसोर भी हराम है ‘‘
मैं भी सिर्फ़ तुम्हें ओरतुम्हें चाहती हूं । अब तो मैं किसी ग़ीर आदमी के बारे मैं सोच भी नहीं सकती। ‘‘
जिन्दगई भर मेरी बन कर रहोगई ؟‘‘
मैं तो चाहती हूं के मौत के बाद भी तुमहारे साथ रहूं । सातों जनम तक तुमहारे साथ रहूं । ‘‘
मुझ से शादी करो गई
यह भी कोई पूछने वाली बात। ‘‘
क्या तुमहारे घर बरादरी वाली हमारी शादी के लिए तयार हो जाईं गए। ‘‘
यह ज़रा टीड़ा मसलह है मधू सनजीदह होगई। मेरे घर वाली उस शादी के लिए कभी तयार नहीं हूं गए। और बरादरी वालों को अगर हमारे तालक़ात का पता चला तो वह ऐसी आग लगाईं गए कि उस मैं हमारा खानदान का सब कुछ जाल कर ख़ाक हो जाएगा। ‘‘
मेरे घर वालों को हमारी शादी पर कोई अातराज नहीं हो गा। वह खुशी खुशी हर उस लड़की को अपनी बहो क़ुबूल करीं मैं जसे पसन्द करों । अगर मैं कहूं तो वह तुमहारे घर बारात भी ले कर जा सकते हैं । ‘‘ वह बोला।
जिम्मी। । । यही तो मसलह है मेरे घर तुमहारी बारात नहीं आ सकती हमारी शादी मनडप मैं नहीं हो सकती। ‘‘
अगर मनडप मैं हो सकती तो किस तरह होगई। ‘‘
हम दोनों बालग़ हैं । अपनी मरजी के मख़तार हैं । हम अपनी पसन्द के मताबक़ शादी कर सकते हैं । हम कोर्ट मैं शादी करीं गए। घर वाली बरादरी वाली नहीं मानीं तो कहीं भग जाईं गए। और वहां पर शादी कर के अपना नया जयोन शुरू करीं गए। ‘‘
तुम किस हद्द तक अपनी उस बात पर क़ाम रहोगई मधू । ‘‘
जिम्मी। । । मेरा अमतहान मत लो। अगर तुम चाहो तो उस वक़्त अपना घर वतन छोड़ कर तुमहारे साथ जहां तुम कहो चाल सकती हूं । मधू ने अातमाद से कहा।
मधू की बात सुन कर वह सोच मैं पड़ गया। काफ़ी देर चप रहा फिर बोला। मधू। । । तुम अपने घर वालों को हमारी शादी के लिए राजी नहीं कर सकती। मैं नहीं चाहता कि कोई तजाद बड़े। ‘‘
जिम्मी। । । मेरे घर वाली हमारी शादी के लिए मुश्किल से राजी हूं गए। अगर मेरी महबत मैं मेरी खुशी के लिए वह राजी हो भी गए तो हमारी बरादरी वाली राजी नहीं हूं गए। गांव वाली राजी नहीं हूं गए। और वह कमीनह। । । अमित अगर अनीं हमारे तालक़ात की भनक भी लग गई तो वह ऐसी आग लगाे गा कि मैं बता नहीं सकती। हमारी शादी उस गांव मैं मनडप मैं होनी मुश्किल है अगर तुम मुझ से शादी करना चाहते हो तो मुझे उस गांव से दूर ले चलो। हम कोर्ट मैं शादी कर लीं गए। । । किसी मनदर मैं शादी कर लीं गए। । । किसी गरदवारे मैं शादी कर लीं गए। । । या मुझे तुमहारे गांव ले कर चलो। । । वहां अपने किसी दोस्त अपने किसी रिश्ता दार के घर मुझे रख दीना और वहां अपनी बारात ले कर आ जाना। कहते हुए मधू की आँखों मैं आनसो आ गए।
उस ने अपने हाथों से उस के आनसो पोनछे। मधू तुम जीसा चाहोगई मैं वीसा ही करों गा। लेकिन मैं चाहता हूं कि हमारी वजह से कोई फ़तनह फ़साद न पीदा हो जाए। हमारे प्यार की वजह से तुमहारे घर वालों को नीचे देखना न पड़े। उन की बदनामी की बनयाद पर हम अपने प्यार का महल तामीर कर सकते। बस उसी लिए मैं चाहता हूं कि कवी। । । कोई ऐसा रासतह नकल जाए जिस से बख़ोबी अनजाम को पहूंच जाए। वह ख़ला मैं घोरता बोला।
बहुत बहस सोच ग़ोर व ख़ोज के बाद भी कोई मनासब रासतह नकल नहीं सका जो दोनों और हर किसी के लिए क़ाबल क़ुबूल हो। उसे लग रहा था जिस वक़्त उस के दिल मैं मधू के लिए महबत कोनपल फोटी भी उस वक़्त उस की जिन्दगई मैं अनगारों की फ़सल की बोयाई शुरू होगई थी। अब वह फ़सल तयार हो रही है अब अनीं उस फ़सल के अनगारे ही काटने है फिर वह अपने ज़हन को यकसो करने के लिए गांव के हालात पर बातीं करने लगए। मधू उसे ऐसी बातीं बताने लगईं जो उसे मालूम नहीं थीं । उस का कहना था झोट का इतना ज़ोर दार परोपीगनडा क्या गया है कि हर कोई मसलमानों से नफिरत करने लगा है मसलमानों को अपना दुश्मन समझने लगा है और उसे महसूस हो रहा है मुसलमान उस की जान के दुश्मन है वह कभी भी उस की जान ले सकती है इसलिए बहुतरी उस मैं है कि वह अपनी जान की दफ़ाा के लिए खुद आगे बड़ कर मसलमानों की जान ले ले। या उन के सरों पर जो मसलमानों के ख़तरे की तलवार लटक रही है उस से नजात पाना है तो सारे मसलमानों को उस गांव बदर कर दिया जाए। अमित भाई जीसा नीता उन के दौल और पारटयां ही उन की सची रहनमा है और वही उन को उस मसीबत से बच्चा सकते हैं । इसलिए ज़रूरत उस बात की है कि सब मुत्तहिद हो जाईं ओ रान का साथ दीं । वरनह उस गांव मैं भी वही कुछ हो सकता है जो आठ दस साल क़बल ममबी मैं हो चका है । । बम फटीं गए और सारा गांव तबाह हो जाएगा। मसलमानों ने उस को बर्बाद करने की तयारी कर ली है
यह बातीं और भी ज़हनी तना मैं मबतला करने वाली थी। बहुतर यही था कि उन बातों को छोड़ कर अपने बारे मैं सोचा जाए। अपने प्यार के बारे मैं सोचा जाएगा। शाम तक वह इधर उधर भटकते रहे और फिर गांव की बस मैं बैठ कर वापिस गांव की तरफ़ चाल दिए। पूरे रास्ते दोनों ख़ामोश रहे। बस मैं दोनों का कोई शनासा नहीं था इसलिए दोनों एक ही सीट पर बैठे रहे। मधू उस की कानधे पर सर रखे पता नहीं क्या सोचती रही। बस स्टाप आया तो वह दोनों बस से नीचे उतरे। पहले मधू उतरी नीचे उतरते ही उस की चहरे का रंग बदल गया और वह डर कर पीछे हट गई। सामने अमित खड़ा था फिर शायद उसे अपनी ग़लती का अहसास हुआ। उसे अमित से उस तरह डर कर उसे अपने कमज़ोर और ग़लती का अहसास नहीं कराना चाहये। इसलिए उस ने बे नयाज़ी से एक नज़र उस पर डाली और आगे बड़ गई। उस के पीछे जिम्मी उतरा। अमित पर नज़र पड़ते ही वह भी िठठक गया। उस ने ख़वाब मैं भी नहीं सोचा था कि अपने सामने वह अमित को पायेगा।
क्या बात है सरदार जी। । । कहां से आ रहे हो अमित उसे चभती हुई नज़रों से देखता बोला। सवीरे जाते हो शाम को वापिस आते हो। मधू के साथ जाते हो। । । मधू के साथ वापिस आते हो। ‘‘
अमित की यह बात सुन कर उस का दिल कानप उठा। ऐसी बात नहीं है वह थोक नगल कर बोला।
अगर ऐसी बात नहीं है तो ठीक है मुझे पता चला के तुम मधू मैं कुछ ज्यादा ही दलचसपी ले रहे हो। । । अगर यह सच है तो यह अछी बात नहीं है मधू मेरी है और सिर्फ़ मेरी रहे गई। अगर कोई उस की तरफ़ आंख भी उठाे तोमैं उस की आंख नकाल दों गा। उस को कोई छोने की कोशिश करे तो तो उस के हाथ काट दों गा। और उस हद्द से आगे बड़ने की कोश करे तो उसे अपनी नफिरत और गुस्से के अला मैं जला कर ख़ाक कर दों गा। । । समुझे। धनदह करने आते हो। धनदह करो और दो पैसे कमा। ईश्क करने की कोशिश करो गए तो धन्दे से भी जा गए और जान से भी। ‘‘
जी। । । पता नहीं कहां से बुज़दली उस की रग रग मैं समा गई थी। वह उस से ज्यादा कुछ कह न सका। इतना कह कर अमित तेजी से मुड़ा और गांव की तरफ़ जाने वाली सड़क पर आगे बड़ गया। वह अपनी दुकान मैं आ कर सर पकड़ कर बैठ गया। तो अमित को पता चाल गया। या अमित ने देख लिया जान लिया कि उस का और मधू का क्या रिश्ता है उस को अमित क्या आँखों मैं नफिरत के शाले भड़कते नज़र आए। जो ऐसा महसूस हो रहा था एक अलाव की शक्ल अख़तयार कर रहे हैं । और कुछ बुद नमा चहरे उसे और मधू को पकड़ कर उस अला मैं धकील रहे हैं । दोनों उन की गरफ़त से आज़ाद होने के लिए कसमसा रहे हैं । मगर अनीं अपने पर जलते अलाव की लपटीं महसूस हो रही हैं ।
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M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 5

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 5

वह दिन भी उस के लिए बैसाखी से कम न था जो खुशी एक को बैसाखी के दिन महसूस होती है उसे उसी दिन महसूस हो रही थी। मधू उस के घर आई थी और उस के नाशतह के लिए खमन बन कर लाई थी। एक गुजराती खाना था जो आम तोर पर नाशतह मैं खाया जाता था उस से क़बल उस ने वह नहीं खाया था खाना बड़ा लज़ीज़ था उस पर चटनियों की आमीज़श उस के ज़ाक़ह को दोबाला कर देती थी। जाते हुए उस से कह गई के आज उस के कालेज मैं दो ही पीरीड है अगर वह चाहे तो शहर आ सकता है उस ने फौरन हामी भर ली और कह दिया उस वक़्त वह कालेज के गेईट के बाहर इन्तज़ार करेगा।
मधू बस मैं बैठ कर चली गई। लेकिन उस के दिल को चैन नहीं था दो घण्टे बाद ही मिलने का वादह था इसलिए उस का किसी काम मैं दिल नहीं लग रहा था रघो और राजो आए तो उस ने उन से कह दिया वह एक काम से शहर जा रहा है शाम को आए गा वह दुकान देख ले। और फौरन सामने खड़ी बस मैं बैठ कर शहर को चाल दया। आधे घण्टे मैं वह शहर मैं था और अभी पूरे एक घण्टे उसे मधू का इन्तज़ार करना था शहर उस के लिए नया था कोई शनासा भी नहीं था जिस के पास जा कर वक़्त गज़ारा जाए। मधू ने कालेज का पता बता दिया था बस स्टाप से थोड़ी देर पैदल चलने के बाद मधू का कालेज आ जाता था वह कालेज पर पहूंच कर कालेज के गेट के बाहर मधू का इन्तज़ार करने लगा।
आते जाते लोग उसे बड़ी अजीब नज़रों देखते और आगे बड़ जाते थे। पहले उस की समझ मैं उन लोगों की नज़रों का मतलब नहीं आया फिर वह खुद अपने आप पर नज़र पडे। उस की हालत शहर मैं हाथी की सी है जिस तरह अगर हाथी शहर मैं आ जाए तो शहर वालों के लिए वह अजूबा होता है वह भी शहर वालो के लिए अजूबा था उस वक़्त शहर मैं शायद अकलोता सिख था इसलिए लोग उसे हैरत से देख रहे थे। उसे लगा उसे अपनी शनाख़त छुपाना सब से मुश्किल काम है वह लाखों मैं पहचाना जाता सकता है और कोई भी उसे जानने दूर ही से उसे देख कर कह सकता है यह जिसमीनदर सिंह अरफ़ जिम्मी है नोटया गांव के। गुरु नानक स्पेयर पाट्स का मालक। ‘‘ और आज उस ने मधू के साथ शहर की सैर करने का मनसोबह बनाया है मधू को शहर मैं शायद ही पहचानी जाए। लेकिन उसे पहचान लेना आसान सा काम है फिर अगर किसी सरदार के साथ कोई लड़की हो तो वह लोग हर किसी की तोजह का मर्कज़ बन सकते हैं । ख़सोसी तोर पर अगर वह लड़की गुजराती हो तो। फिर उस ने अपना सर झटक दया। अब उन बातों से क्या डरना। जब प्यार क्या तो डरना क्या। जो हो गा देखा जाएगा।
वक़त मक़रर पर मधू बाहर आ गई। वह मधू का हाथ पकड़ कर तेजी से एक रिकशा मैं बैठ गया और रिकशा वाली से चलने के लिए कहा। अगर कालेज का कोई लड़का लड़की मधू को उस के साथ देख लेता तो सारे कालेज मैं फ़सानह बन जाता मधू एक सरदार जी के साथ कहीं गई है कालेज से दूर पहूंच कर वह रिकशा से उतरे। और उन्हों ने शहर की सैर शुरू की। मधू शहर की एक एक चीज़ के बारे मैं उसे बताने लगई दोपहर का खाना उन्हों एक अछी होटल मैं खाया। खाना खाते हुए वह मधू से पूछ बैठा। यह अमित पटेल कौन हे ‘‘
अमित ‘‘ उस का नाम सुन कर मधू ने अपने हूंट भीनचे। तुम ने उस का नाम क्यों लिया मैं उस का नाम को सुनना भी पसन्द करती हूं । ‘‘
मैनू पता तो चले कि वह कौन सी हसती है ‘‘
एक गुण्डा मवाली है मुझ से ईश्क करता है ‘‘
ओर तुम उस ने मधू की आँखों मैं देखा।
मैं उस के मुंह पर थोकना भी पसन्द नहीं करती। ‘‘
वजह
कह दिया न वह एक गुण्डा बदमााश है मुझे ज़रा भी पसन्द नहीं । मेरी बरादरी का है तो क्या हुआ वह मुझे अपनी जागईर समझता है मुझे रिश्ता भी लगाया था मेरे घर वाली राजी हो गए थे मगर मैं ने साफ़ कह दिया कि अमित से शादी करने के बजाए मैं कनवारी रहना पसन्द करों गई। उस पर उस ने चीलनज क्या कि एक दिन वह मुझे शादी के लिए राजी कर ले गा। तब से आए दिन आ कर मुझ पर अपना हक़ जताता रहता है ‘‘
हूं ‘‘ अमित की कहानी सुन कर उस ने एक ठनडी सानस ली। तो वह मेरा रक़ीब है
रक़ीब ؟ मधू हनस पडे वह किस तरह ؟‘‘
वह तुम्हें प्यार करता है और मैं भी तुम्हें प्यार करता हूं । ‘‘
वह क्या मुझे प्यार करेगा। मेरे जिसम को पाना चाहता है एक बार अगर उस ने मेरा जिसम पा लिया तो मेरी तरफ़ आंख उठा कर भी नहीं दीखे गा। किसी दूसरी लड़की पर डोरे डालने लगए गा। इसलिए मैं उस से शादी करना नहीं चाहती। लेकिन तुम कब से मुझ से पऱयार करने लगए ؟ ‘‘
जब पहली बार देखा था ‘‘
क्या पहली बार देखने से ही प्यार हो जाता है ‘‘
सचा प्यार तो पहली नज़र से ही शुरू हो जाता है ‘‘
अच्छा। । । और प्यार। । । वह उस की आँखों मैं झानकने लगई।
यह प्यार क्या होता हे
यह ऐसा जजबा है जो लफ़ज़ों मैं बयान नहीं क्या जा सकता वह बोला।
लेकिन उस प्यार की कोई तो निशानी तो होगई। ‘‘
उस वक़्त हम आमने सामने बैठे एक दूसरे की आँखों मैं देख कर खुश हो रहे हैं । एक रोहानी मसरत हाशिल कर रहे हैं यह भी प्यार की एक निशानी है वह बोला।
उस की बात सुन कर मधू के चहरे पर सुरख़ी छा गई। क्या तुम मुझे उसी तरह प्यार करते रहोगए। ‘‘
हां उसी तरह। और तुम ؟‘‘
मैं भी तुम्हें उस तरह प्यार करती रहूं गई। ‘‘
तो उस का मतलब है तुम भी मुझ से प्यार करती हो। ‘‘
क्यों तुम्हें कोई शक हे मधू के चहरे पर गुस्से के तासरात उभरे। अमित जैसे की लड़के मेरे पीछे पडे हैं लेकिन मैं किसी को घास नहीं डालती। बस तुम पर दिल आगया जब तुम्हें देखा तो तुम दिल मैं अतर गए। आते जाते देखती रही। और मेरी रोह मैं अतर गए। ‘‘
ओे बले बले वह खुशी से नाचने लगए।
अरे यह क्या तमाशह है यह होटल है घर नहीं । मधू ने उसे प्यार से डानटा तो उस ने खुद पर काबू क्या।
सारी सारी यह कह कर वह चोर नज़रों से चारों तरफ़ देखने लगा। सच मच हर किसी की नगाह उस पर मरकोज़ थी। इसलिए ज्यादा देर तक वहां बैठना उन्हों ने मनासब नहीं समझा। उस ने होटल का बल अदा क्या और जलदी से होटल के वीटर आ गए। उस के बाद दोबारा उन की तफ़रीह शुरू होगई जो शाम पाँच बजे तक जारी रही।
शाम पाँच बजे की बस से वह वापिस गांव आ गए। मधू अपने घर चली गई। वह आ कर दुकान पर बैठ गया। रघो सब ठीक तो हे उस ने रघो से पोछा।
सब ठीक है सीठ। अमित और सीफ़ होटल वाली की खूब मर पीट हुई।
मार पीट हुई क्यों ؟‘‘
अरे वह तो की दनों से लग रहा था कि दोनों मैं जम कर मर पीट होगई। जब से सीफ़ होटल खली है आस पास का तमाम छोटे बड़े होटलों का धनदह खतुम हो गया है सीफ़ होटल मैं कोलड डरनक जोस ठनडा वग़ीरह बहुत अमदह और ससते दामों मैं मिलता है इसलिए हर कोई उसी होटल मैं जाता है यह बात तमाम होटल वालों की नज़र मैं खटक रही थी। अमित की भी एक होटल है वह तो बालकल होगई थी। इसलिए अमित और ज्यादा खाे बैठा था मौक़े की ताक मैं था कब उसे मौक़े मले और वह सीफ़ होटल के ख़लाफ़ कोई कारवाई करे। आज पोरी तयारी से साफ़ट डरनक पीने के लिए वह सीफ़ होटल कीं लिया साफ़ट डरनक पी क बल के लिए उस ने वीटर से झगड़ा क्या और उस के मुंह मैं मर दया। होटल के मालिक सीफ़ अलदीन ने उसे वीटर पर हाथ उठाने से रोका तो वह सीफ़ अलदीन पर टोट पड़ा। सीफ़ अलदीन मजबूत आदम है उस ने जम कर अमित की पटाई कर दी। उस पर अमित के आदमी होटल मैं घस कर तोड़ फोड़ करने लगए। जवाब मैं होटल के वीटरों ने उन की पटाई कर दी। सीफ़ अलदीन ने अमित को इतना मारा के बड़ी मुश्किल से जान बच्चा कर वह भागा और पोलीस थाने पहनचा। पोलीस आई और सीफ़ अलदीन और उस के साथयों को पकड़ कर ले गई। होटल बनद है और अभी तक पोलीस उसटीशन मैं हनगामह चाल रहा है दोनों तरफ़ के लीडर माामले को समझाने की कोशिश कर रहे हैं । लेकिन अमित माामलह बर्ह रहा है ‘‘
रघो की बात सुन वह सोच मैं डोब गया। कुछ सोच कर उस ने जावेद को फ़ोन लगाया। जावेद भाई मैं ज़रा शहर गया था सना है गांव मैं कोई हनगामह हुआ है ‘‘
हां अमित ने हनगामह खड़ा क्या था होटल मैं तोड़ फोड़ मार पीट हुई है माामलह पोलीस उसटीशन मैं है दीखीं क्या होता है जावेद ने जवाब दया।
कवी गड़ बड़ तो नहीं । ‘‘
गड़बड़ तो नहीं है लेकिन माामलह अमित का है वह माामले को क्या रंग दे गा उस बारे मैं कहा नहीं जा सकता है जावेद बोला। वीसे गांव वालों को उस माामले मैं कोई दलचसपी नहीं है कारोबारी दशमनी है ‘‘
जावेद की बात सुन कर वह सोच मैं डोब गया। उसे लगा गांव मैं एक अला जाल रहा है और अमित जैसे लोग उस अला को जलाने के लिए नफिरत दशमनी फ़रक़ह परसती की लकड़यां लाला कर डाल रहे हैं । ताके अला की आग और तेजी से भड़के।
दूसरे दिन माामलह ने ऐसी नवाईत अख़तयार कर ली जिस के बारे मैं सोचा भी नहीं जा सकता था अमित का तालुक़ जिस पारटी से था उस पारटी ने अपने लीडर पर हुए शरमनाक क़ातलानह हमले के ख़लाफ़ गांव का कारोबार बनद रखे की अपील की थी। सवीरे से ही पारटी के वरकर आ कर दोकानीं बनद करा रहे थे। उस ने जब दुकान खोली तो वह वरकर उस के पास भी आए।
सरदार जी दुकान बनद कीजये
क्यों भाई ‘‘
हमारे लीडर अमित पटेल पर एक ग़नडे पाकसतानी एजनट गईनग के सरग़नह सीफ़ अलदीन ने हमलह क्या है ، उसे बड़ी तरह ज़ख़मी क्या है उस गुण्डा गरदी के ख़लाफ़ अहतजाज करने के लिए हम ने यह बनद रखा है हमारा मतालबह है सीफ़ अलदीन और उस के साथयों को पोटा के तहत गरफ़तार क्या जाले। उस के होटल को जराम पेशह अफ़राद का अडा है उसे बनद क्या जाए। सीफ़ अलदीन का तालुक़ पाकिस्तानी एजनसी आई एस आई से है उस की जानच की जाए और गांव मैं उस से तालुक़ रखने वाली दूसरे लोगों को भी बे नक़ाब क्या जाए। ‘‘
अन की बातीं सुन कर उस ने अपना सर पकड़ लिया हर कोई जानता था माामलह क्या है कतनी नवाईत का है लेकिन उस को ऐसा रंग दिया जाएगा कोई उस के। बारे मैं सोच भी नहीं सकता था रघो ने उसे मशोरह दया।
सीठ जी। । । दुकान बनद रखी जाए तो बहुतर है अमित ने ग़नडे पाल रखे हैं । दुकान खली रखने पर हो सकता है वह कोई गड़ बड़ करे। ‘‘
उस ने दुकान बनद कर दी। माामलह का जाज़ह लीने के लिए चोक की तरफ़ आया तो उसे सारा माहोल बदला हुआ दखाई दया। एक भी दुकान चालो नहीं थी। सड़कों पर सनाटा था जगह जगह अमित भाई पटेल पर होने हुए शरमनाक क़ातलानह हमले के ख़लाफ़ बोरड लगए थे। और बनद का नारह लखा था
अख़बारात आ गए थे। अख़बारात ने उस ख़बर को नमएां अनदाज़ मैं छापा था अख़बारों मैं लखा था सीफ़ अलदीन एक गुण्डा है की तरह के ग़ीर क़ानोनी धनदों और जराम मैं मलोस है लेकिन उस का रसोख़ इतना है कि आज तक पोलीस उस पर हाथ नहीं डाल सकी। उस का तालुक़ पाकिस्तानी ख़फ़ीह एजनसी से है जिस से वह मुल्क दुश्मन सरगरमयों मैं भी मलोस है पोलीस एसे गनाह गार के ख़लाफ़ कारवाई नहीं कर रही है
गांव वाली तो सब जानते थे कि हक़ीक़त क्या है लेकिन अख़बारात की उस तरह की ख़बरों का उसर पूरे इलाके पर पड़ा। उस तरह की ख़बरीं पहार के आस पास के लोग सोचने लगए कि जरोर नोटया मैं कोई बड़ा वाक़ाह हुआ है रयासत के अहम लीडरान गांव आए और वह भी अमित की हमएत मैं आवाज़ उठाने लगए।
रात का माामलह खतुम हो गया था पोलीस ने मर पीट का कीस अमित और सीफ़ दोनों के आदमयों को जमानत पर छोड़ दिया था लेकिन माामलह ऐसा रख़ अख़तयार करेगा कोई सोच भी नहीं सकता था वह जावेद कमपयोटर उसनटी टयोट के पास आया तो जावेद और बनद कराने वालों मैं हजत चाल रही थी।
देखये। । । आप का अहतजाज अपनी जगह पर है लेकिन उस उसनटी टयोट को बनद करा कर आप को क्या मले गा यहां बच्चे तालीम हाशिल करते हैं । एक दिन बनद से उन की तालीम का नुक़सान हो गा। ‘‘
अरे बड़ा आया तालीम के नुक़सान पर मातुम करने वाला। बनद करता है या पत्थर बाज़ी शुरू करीं । लगता है यह भी सीफ़ अलदीन का साथी है उस साले का नाम भी आ य एस आई के एजनटों मैं डालो। ‘‘
अब माामले की नज़ाकत को जावेद समझ गया। न चाहते हुए भी उस ने कह दया। ठीक है मैं आज अनसटी टयोट बनद रखता हूं । ‘‘
जे शरी राम। जे बजरंग बली ‘‘ के नारे लगाते वह लोग आगे बड़ गए।
जावेद भाई यह क्या तमाशह है वह जावेद से बोला।
सरदार जी। । । कभी आप के पंजाब मैं जो कुछ होता था आज सारे गुजरात मैं हो रहा है कभी पूरे पंजाब पर दहशत गरदों का सकह चलता था आज सारे गुजरात पर फ़रक़ह परसतों का सकह चलता है कयोनकह हकोमत उन की है पोलीस उन की हे मीडया उन की है वह चाहे तो झोट का सच और सच का झोट क़रार दे दीते हैं । अब सीफ़ भाई का माामलह ले लो। सारा गांव उसे जानता है सीधा साधा आदमी है उस का किसी से कोई लेना दीना नहीं है लेकिन कारोबारी रक़ाबत ने उसे गईनग उसटार मलक दशमनी सरगरमयों मैं मलोस गुण्डा क़रार दे दिया है कौन उस की बे गनाही की गवाही दीने जाएगा। दूसरे शहरों मैं की बड़े बड़े लीडर आ गए। एक बड़ा सा जलोस नकाला गया जिस मैं मसलमानों के ख़लाफ़ सीफ़ अलदीन के ख़लाफ़ और पोलीस के ख़लाफ़ नारे लगाे गए। और पोलीस से मतालबह क्या गया कि फौरन सीफ़ अलदीन को पोटा के तहत गरफ़तार क्या जाए। ‘‘
एक बड़ा सा जलसह हुआ। जिस मैं मसलमानों के ख़लाफ़ खूब ज़हर अगला गया। अनीं मुल्क का दुश्मन क़रार दिया गया। उन को उस मुल्क से मुल्क बदर करने का अज़म क्या गया अालान क्या गया कि मसलमानों का बाईकाट क्या जाए। उन के साथ कोई भी कारोबारी तालुक़ न रखा जाए। उन की दोकानों से न सामान ख़रीदा जाए और न अनीं सामान दिया जाए। उन को न नोकरयां दी जाए और न वह लोग धरना दे कर सड़क पर बैठ गए। और रासतह रोक दया। पोलीस के अाली अफ़सरान भी आ गए। उन्हों ने समझएा पोलीस ने माामलह दरज कर लिया है तहक़ीक़ात की जा रही है गनाह गार के साथ सख़ती से नपटा जाएगा और उस के ख़लाफ़ सख्त कारवाई की जाए गई। आप माहोल ख़वाब न करीं । माामले और न बगाड़ीं । उस की आनच आस पास के गांव मैं भी फील सकती है ‘‘
लेकिन कोई सनने कोतयार नहीं था मजबोरा पोलीस कमशनर ने हकम दिया कि सीफ़ अलदीन और उस तमाम साथयों को गरफ़तार कर लिया जाए।
होटल बनद कर दी गई और उस पर सील लगा दिया गया। पोलीस की उस कारवाई पर जलोस ने फ़ातहानह नारे लगाे और खुशयां मनाई।
हम से जो टकराे गा मटी मैं मल जाएगा
पाकसतान पहनचा दीं गए क़बरसतान पहनचा दीं गए
अमित भाई आगे बड़ो। । । हम तुमहारे साथ हैं ‘‘
जे शरी राम। । । जे बजरंग बली। । । जे भवानी ‘‘
शाम होने से क़बल सारा तमाशह खतुम हो गया। धीरे धीरे दोकानीं खलने लगईं । और जिन्दगई मामोल पर आने लगईं । लोग जो ख़ोफ़ से अपने घरों मैं दबक कर बैठ गए थे। घर के बाहर आने लगए और सड़कों पर जिन्दगई के आसार नमएां हो गए। लोग जगह जगह भीड़ की शक्ल मैं जमा होते और दिन भर के वाक़ाात पर गफ़तगो करने लगते। उसे हैरत उस बात पर थी कि सीफ़ अलदीन को गांव के बचह बचह जानता था वह उसी गांव मैं पला था उस की शराफ़त एमानदारी और भाई चारगई की मिसाल सारा गांव दीता था लेकिन वही गांव वाली उसी सीफ़ अलदीन की बारे मैं तरह तरह की बातीं कर रहे थे।
सीफ़ अलदीन तो बड़ा गुण्डा नकला
अरे सिर्फ़ गुण्डा नहीं मुल्क दुश्मन भी ‘‘
वह पाकिस्तान का एजनट हो गा कोई सोच भी नहीं सकता था ‘‘
कसी भी मुसलमान पर भरोसह नहीं क्या जा सकता पर मुसलमान पाकिस्तान का एजनट है अनडया का दशमन। । । मुल्क का ग़दार ‘‘
अछा हुआ अमित भाई ने उसे पकड़वा दया। वरना किसी दिन हमारे पूरे गांव को अड़ा दीता। ‘‘
अमित भाई की पहूंच बहुत है वह तो कहता है कि उस गांव मैं और भी पाकिस्तानी के एजनट हैं । ‘‘ वह यह बातीं सनता तो उस की आँखों के सामने अनधीरा सा छाने लगता। उसे लग रहा था । । अला रोशनी के लिए क्या फिर तापने के लिए जलएा जाता है लेकिन उस गांव मैं जो अला जलएा जएा रहा है और उस मैं जिस तरह की नफिरत ज़हर भरी लकड़यों का इस्तेमाल क्या जा रहा है ऐसा लगता है सारे गांव को उस मैं भसम करने के लिए उस अला को जलएा जा रहा है

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M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 4

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव
लेखकः-ःएम.मुबीन
Part 4
दूसरे दिन आंख जिल्द खल गई तो वह सिर्फ़ मधू की कशश थी। जिस की वजह से आंख जिल्द खल गई वरनह रात भर वह ठीक से सौ नहीं पएा था रात के पहले हसह मैं आंख लगई लेकिन भयानक ख़वाबों और ख़यालों ने उस किस नीनद का सलसलह मनक़ता कर दया।
उस ने ख़वाब मैं देखा सारा गांव जाल रहा है हज़ारों अफ़राद पर मशतुमल एक टोली है जो अशतााल अनगईज़ नारे लगाता हुआ आगे बड़ रहा है उस के हाथों मैं हथयार है टोलह घरों को आग लगाता है अपने हाथों की तरशोलों से मकानों के मकीनों के जिसमों को छीदता है और दहकती हुई आग मैं झोनक दीता है बच्चों को नीज़ों पर अछालता है हामलह अोरतों की पीट को चाक कर के उन से नौ ज़ाद बच्चे नकाल कर आग मैं झोनक दीता है
उस टोले ने आ कर उस की दुकान घीर ली। टोले एक चहरह बाहर आया। यह उस के पड़ोसी का था जिस की उसपीर पारटस की दुकान थी। जला डालो। । । जला डालो। । । वह हाथ उठा कर चीख़ा। और टोलह ख़ोफ़नाक दिल को दहलाने दीने वाली नारे लगता उस की दुकान की तरफ़ बड़ा। और उस की आंख खली गई थी। और उस के बओजोद लाख कोशिश के वह ठीक तरह से सौ नहीं सका। सोते जागने की कीफ़ीत मैं रात गज़र गई।
सवीरे ऐसा लगा कि अब गहरी नीनद आ जाएगईलेकिन मधू के तसोर ने उसे सोने नहीं दया। वह बरश करता ग्लेरी मैं आ कर खड़ा हुआ। पो फोट चकी थी। और धीरे धीरे चारों तरफ़ अजाला फील रहा था वह बस स्टाप को घोरने लगा। उसे गांव आई सड़क पर एक सएह सा रीनगता हुआ दखाई दिया और उस की दिल की धड़कनीं तीज़ हो गईं । धीरे धीरे उस साे के रनगईन ख़दोख़ाल वाक़ा होने लगए। वह मधू ही थी। हाथों मैं कताबों को दबाे वह बस स्टाप की तरफ़ बड़ रही थी।
बस स्टाप पर पहूंचने से क़बल लाशाोरी तोर पर उस ने उस की ग्लेरी पर नज़र डाली। ग्लेरी मैं उसे खड़ा देख कर वह ठटकी फिर उस ने होनटों पह एक दलकश मसकराहट रीनग गई। उसे लगा जैसे वह मसकराहट उस के दिल के तारों को छीड़ कर उस के वजोद मैं दलकश तरनगईं पीदा कर रही है मधू का उसे देख कर मसकराना उस बात की गवाही थ कि मधू के दिल मैं उस के लिए कोई लतीफ़ गोशह है अगर मधू के दिल मैं कोई जजबा नहीं होता तो उसे देख कर उस के चहरे पर कोई तासर नहीं अभरता। उस के मधू को हाथ बतएा।
मधू के चहरे पर शरम के तासरात उभरे ओ रास ने भी हाथ हला कर उस के हाथ हलाने का जवाब दया। मधू के जवाब को पा कर उस की हिम्मत बड़ी। उस ने मधू की तरफ़ फ़लानग किस अछाल दया। जवाब मैं मधू ने भी उस की जानब फ़लानग अछालना चाहा लेकिन उस के हाथ होनटों पर चपक से गए और शरमा के उस ने अपना सर झका लिया
वह ग्लेरी पर अपनी कहनी रख कर मधू को देखने लगा। मधू भी उसे शरमीली नगाहूं से मसलसल ताके जा रही थी। यह सलसलह उस वक़्त टोटा जब बस आ गई। मधू ने हाथ उठा कर उसे गड बाे कहा। और बस मैं जा कर बैठ गई। बस चली गई तो वह अन्दर आया। उसे कोई तयारी नहीं थी। वह सब तयारी कर चका था मधू का इन्तज़ार करने के लिए वह पहले से तयार हो जाता था उस के एक दोस्त ने कहा था बग़ीर तयार हुए सरदार जी दुनिया का सब से गंदा आदमी महसूस होता है इतना गंदा के अफ़रीक़ह के किसी क़बीले की औरत भी उस पर नज़र डालना पसन्द नहीं करे गई। ‘‘
उसे वह बात याद थी। इसलिए वह अपने खुले बाल लनगई और बनयान मैं मधू के सामने जा कर उस का तसोर तोड़ना नहीं चाहता था इसलिए मधू के आने से क़बल ही वह अपने सरके बाल सनवार कर उस पर क़रीने से पगड़ी बानध लेता था और अच्चा सा डरीस तन ज़ीब कर लेता था ताके वह किसी दलीर महदी ‘‘ से कम दखाई न दे। खुश लबासी के माामलह मैं दलीर महदी उस का आईडील था वह दलीर महदी को सब से ज्यादा खुश लिबास सख मानता था जो अपनी खुश लिबास के वजह से हर किसी पर उसर छोड़ कर थोड़ी सी नक़्ल करने की कोशिश करता था
दिन बड़े इतमिनान से गज़रा। मामोल के मताबक़ धनदह चलता रहा। गाहक आते जाते रहे। लोग अपने अपने कामों मैं लगए रहे। का के वाक़ाात का किसी पर उसर नहीं था शाम के वक़्त उस ने रघो के हुआले दुकान कर के चोक की तरफ़ का रख़ क्या। वह जावेद के साबर की तरफ़ चाल दया। साबर मैं हसब मामोल भीड़ थी। की गाहक इन्तज़ार कर रहे थे। उन मैं की लड़कयां भी थीं । ۱۶ से ۲۲ साल की उमर लड़क्या। लड़के भी तक़रीबा उसी उमर के थे।
आये सरदार जी। । । ख़ीरीत जावेद ने उसे देख कर पोछा।
देखने आया हूं कल के माामले का क्या उसर हुआ है ‘‘
उसर तो कुछ भी नहीं पड़ा है सब कुछ मामोल के मताबक़ चाल रहा है ऐसा लग रहा है जैसे कुछ हुआ ही हैं । जावेद कहता उसे अपने आफ़स मैं ले गया। उस ने अपने लिए अनसटी टयोट मैं एक छोटासा आफ़स बन रखा था
तुमहारी साबर मैं लड़कयां तो बहुत आती हैं जावेद भाई। उस ने पोछा।
लड़कयां नहीं नोजवान लड़कयां कहये सरदार जी। जावेद ने मसकरा कर कहा।
दरासल यह चीज़ उस उमर के लोगों के हैं । चाहे वह लड़के हो या लड़कयां । लड़के ज्यादा तर चीटनग के लिए आते हैं । या फिर नयोड साट देखने के लिए। लड़कयां चीटनग के लिए आती है उन मैं ज्यादा तर लड़क्यों का नज़र यह होता है चीटनग के ज़रयाे वह ग़ीर ममालक मैं आबाद गुजराती लड़कों से दोसती करीं । और माामलह आगे बर्ह कर शादी तक पहनचा दे ताके उन के म बाप के सर से उन की शादी का तलवार की तरह लटका न रहे और वह उन के लिए अच्चा लड़का ढोनडने के लिए परीशान न रहे। मेरे साबर की वजह से की लड़क्यों की शादयां ग़ीर ममालक मैं हो चकी हैं और की लड़क्यों की शादयां ग़ीर ममालक मैं ते हो चकी हैं ।
वह कामयाब रही या नाकाम ؟‘‘
अब यह तो उन का मसलह है लोगों को भी महसूस हो गया है कि साबर के ज़रयाे लड़कयां जिल्द अच्चा जयोन साथी ढोनड कर सारे माामलात ते कर के उन के ज़हन से एक बोझ दूर कर देती हैं इसलिए वह अनीं साबर जाने से रोकते नहीं । रात के ۱۲ बजे तक यहां लड़क्यों की भीड़ होती हैं । ۱۵ कमपयोटर लगा चका हूं फिर भी कभी कोई कमपयोटर ख़ाली नहीं होता है अब भी ۱۵ कमपयोटरस की ज़रूरत है जावेद बोला।
अचानक उस का दिल धड़क उठा। उस के मधू को साबर मैं दाखिल होते देखा। यह उस ने जावेद की तरफ़ सवालीह नज़रों से देखा।
मधू ने अनदरोन भाई पटेल की लड़की है जावेद ने जवाब दया। यह भी साबर मैं बाक़ाादगई से आती है उस की भाभी से चीटनग वग़ीरह करती है ‘‘
जावेद की बात सुन कर उस ने इतमिनान की सानस लिया जावेद भाई कोई कमपयोटर ख़ाली नहीं है मधू जावेद के आफ़स मैं चली आई।
थोड़ा इन्तज़ार करना पड़ेगा। जावेद ने मसकरा कर जवाब दया।
कहां इन्तज़ार करों बैठने की भी जगह नहीं ؟‘‘ मधू अठला कर बोली।
अगर अातराज नहीं हो तो मेरा आफ़स हाजर है ‘‘ कहते मसकरा कर जावेद ने एक करसी की तरफ़ इशारा क्या। मधू मसकरा कर बैठ गई। उस का दिल धड़क उठा।
अन से मलो सरदार जिसमीनदर सिंह अरफ़ जिम्मी। जावेद ने उस की तरफ़ इशारा करते हुए मधू से कहा।
हां मैं अनीं जानती हूं । ‘‘ मधू ने मसकरा कर जवाब दया।
जानती हूं जावेद ने हैरत से दोनों की तरफ़ देखते हुए।
वह बस स्टाप के सामने उन की दुकान है ना गरो नानक उसपीर पारटस। मधू ने जवाब दया।
अछा अच्चा ओर तुम वहां से रोज़ानह आती जाती हो। जावेद ने कहा। जिम्मी यह मधू है मेरी कलास मीट। मैं शायद कल उस के बारे मैं तुम्हें बता चका हूं । जावेद बोला।
हां अनीं तो रोज ही देखता हूं । ‘‘ वह शरमीले लहजे मैं बोला।
इतने मैं जावेद को किसी लड़के ने आवाज़ दी। किसी कमपयोटर मैं कोई पराबलम आया था मैं अभी आया ‘‘ कह कर जावेद आथ कर आफ़स से चला गया। अब वह दोनों आफ़स मैं अकीले थे। कभी एक दूसरे की तरफ़ देखते दोनों की नज़रीं मलतीं तो मसकरा दीते या फिर घबरा कर दूसरी तरफ़ देखने लगते।
आप रोज कालेज जाती हैं मधू से बात करने के लिए उस ने पोछा।
कालेज तो रोज ही जाना पड़ता है मधू ने मसकरा कर जवाब दया। मधू का जवाब सुन कर वह झीनप गया।
कालेज जाते हुए कभी मेरे ग़रीब ख़ाने पर भी आ जएा कीजये। सवीरे आप बस स्टाप पर खड़ी हो कर बस का इन्तज़ार करती हैं अच्चा नहीं लगता। अगर मेरे ग़रीब ख़ाने पर आईं तो मैं आप को नाशतह या चाे तो दे सकता हूं । ‘‘ वह बोला।
आप के घर मैं कौन कौन हैं मधू ने पोछा।
जी कोई नहीं मैं ही अकीला हूं ‘‘
ओ मधू ने अपने हूंट सकोड़े।
आप खाना क्या खाते हैं ؟‘‘
मैं । । । मैं खुद खाना बनाता हूं । ‘‘
आप को खाना बनाना आता है मधू का चहरह चमकने लगा।
हालात इन्सान को यह रंग मैं ढाल दीते हैं । ‘‘
आप को आलो के पराठे बनाने आते हैं । ‘‘
हां बन सकता हूं ‘‘
मुझे पनजाबी आलो के पराठे बहुत पसन्द है ‘‘
तो फिर कल ग़रीब ख़ाने पर आये आप के लिए आलो के पराठे तयार हूं गए। उस ने कहा।
उस दरमयान जावेद अन्दर आया। मधू चार नमबर कमपयोटर ख़ाली हो रहा है तुम वहां पर बैठ सकती हो। ‘‘
शकरीह कह कर मधू आथ कर चली गई। मधू के जाते ही उस का चहरह अतर गया।
क्या बात है सरदार जी जावेद ने छीड़ते हुए कहा। मीरा जिल्द आना अच्चा नहीं लगा। उस ने कोई जवाब दया। अछा समझ गया दिल का माामलह है । । कहते हुए वह उसे छीड़ने लगा।
आफ़स के कानच से बाहर वह कमपयोटर पर बैठी मधू को देख रहा था मधू मास और की बोरड से खीलने मैं मसरोफ़ थी। कभी वह सर उठा कर उसे देख लीती। दोनों की नज़रीं मलतीं तो वह मसकरा देती। उस की मसकराहट से उस के अन्दर जैसे जलतरंग सी बजने लगती। एक फ़ोन आया तो जावेद फ़ोन पर बात करने लगा।
मैं अभी आया कह करोह उठा और मधू के पास जा कर खड़ा हो गया। मधू कुछ टाप कर रही थी। उस तरह किसी के कमपयोटर के पास जा कर खड़ा हो जाना उस की तनहाई मैं रख़नह डालना साबर कीफ़े के आदाब के ख़लाफ़ था लेकिन मधू ने कोई अातराज नहीं क्या।
मेरे भाई का ए मील आया है उस के ए मील का जवाब दे रही हूं । मेरा भाई अमरीकह मैं है मेरी भाभी भी अमरीकह मैं है अकसर या तो हमारी फ़ोन पर बातीं हो जाती हैं या फिर ए मील से। कभी कभी चीटनग के ज़रयाे भी हम एक दूसरे से बातीं करते हैं । ‘‘ मधू उसे बताने लगई।
यह क्या गोरख धनदह है उसके समझ मैं नहीं आ रहा था लेकिन उस वक़्त उसे शदत से अहसास होने लगा उसे भी यह सीखना चाहये। कम से कम वह उस तरह मधू के सामने अपना कमपयोटर शनासा होने का इज़हार तो कर सकता है
उस वक़्त कीफ़े मैं एक नोजवान दाखिल हुआ। वह साबर कीफ़े मैं एक एक लड़की पर नज़र डालता सीधा मधू के पास आया। उस ने उसे ना पसनदीदह नज़रों से उसे देखा और उसे बाज़ो हटा कर मधू के पास खड़ा हो गया और उस से गुजराती मैं मैं कुछ कहने लगा। मधू भी उस का जवाब गुजराती मैं दीने लगई। मधू के चहरे पर आए नागवारी के तासरात उस बात का इज़हार कर रहे थे कि उसे उस नोजवान का उस तरह आ कर उस से बातीं करना पसन्द नहीं आया है दोनों कभी कभी ओनचे लहजे मैं बातीं करने लगते। साबर मैं बैठे दूसरे लोग चौंक कर अनीं घोरने लगते उन के उस अनदाज़ से उस ने अनदाज़ह लगाया जैसे वह किसी बात पर बहस कर रहे हैं या झगड़ रहे हैं ।
थोड़ी देर बाद जावेद आथ कर वहां आया और वह भी गफ़तगो या झगड़े मैं शामिल हो गया। दोनों मैं बहस होती रही फिर वह नोजवान चला गया। तो जावेद ने उसे अपने पीछे आने का इशारा क्या। को न था यह जावेद के आफ़स मैं पहूंच कर उस ने पोछा।
अमित रओ जी पटेल ‘‘ जावेद ने जवाब दया। एक बड़े बाप का बगड़ा हुआ बीटा है सयासी लीडर है गुण्डा और बदमााश भी है कह कर वह रुक गया। और सब से बड़ी बात यह है कि मधू पर अाशक़ है
यह सुन कर उस के दिल को एक धका सा लगा।
ओर दूसरी बात यह है कि मधू उस को ज़रा भी घास नहीं डालती है ‘‘
जावेद की दूसरी बात सुन कर उसे कुछ इतमिनान हुआ। उस ने एक दो घण्टे साबर कीफ़े मैं गज़ारे। उस दौरान कभी चोर नज़रों से कभी दीदह दलीरी से मधू की तरफ़ देखता रहा। कभी मधू के पास जा कर उस का क़रीब से जाज़ह लेता रहा। जाते वक़्त वह धीरे से बोला सवीरे मैं तुमहारे आलो के पराठे तयार रखों गा। नाशते मैं मेरे आलो के पराठे खाे बन कालेज नहीं जाना। ‘‘
उस के बात का मधू ने कोई जवाब नहीं दया। सिर्फ़ धीरे से मसकराई। वह उस को मधू की हां समझ गया।
उस रात वह बहुत खुश था उस ने मधू को न सिर्फ़ काफ़ी क़रीब से देखा था बलकह बहुत देर तक बातीं भी थीं और कल मधू उस के घर नाशते पर आने वाली थी। उस से बड़ कर खुशी की बात और क्या हो सकती थी। लेकिन एक और बात थी जो कील की तरह उस के सीने मैं चभ रही थी। अमित पटेल। । । मधू का अाशक़ गांव का रीस है बड़े बाप का बगड़ा हुआ बीटा हे सयासी लीडर हेगुण्डा है ، बदमााश है और मधू पर अाशक़ है
वह अपना मवाज़नह अमित से करने लगा। तो उसे मएोसी होती आख़र उस ने सर झटक दिया और सौ गया। सवीरे उसे जिल्द अठना था मधू के लिए पराठे बनाने थे। आलो के पराठे उस ने आज तक नहीं बनाे थे। लेकिन पराठे बनते दीखे थे। जगईर के होटल मैं वह छोटे मोटे काम करता था इसलिए खाना बनाना सीख गया था
सवीरे वह जिल्द जाग गया। रात मैं ही उस ने आलो छील रखे थे। आलो को भोनने के लिए उस से कड़ाई मैं डाल दया। और पराठे बनाने मैं लग गया। उसी दौरान वह अछी तरह तयार भी हो गया था नहा धोकर उस ने खुशबो अपने जिसम पर मली और सब से अच्चा डरीस पहना। वह आज दलीर महदी की से कम दखाई नहीं दीना चाहये।
आलो के पराठे चाे अचारचटनी पापड़ नाशते मैं पता नहीं उस ने क्या क्या चीज़ीं तयार करीं । अब सिर्फ़ मधू की आमद का इन्तज़ार था वह ग्लेरी मैं खड़ा हो कर मधू का इन्तज़ार करने लगा। मधू वक़्त से पहले आ गई। उस ने मधू को ओपर आने का इशारा क्या तो वह ओपर आ गई। उस ने मधू के सामने एक बड़ी सी रकाबी मैं सारा नाशतह परोस दया।
वा। । । इतने पराठे। । । इतने पराठे तो मैं तीन दनों तक ख सकती हूं । ‘‘
तीन दनों के लिए नहीं यह सिर्फ़ आज के लिए है ‘‘ उस ने मधू से कहा तो मधू मज़े लेकर आलो के पराठे खाने लगई।
मधू पराठे खाती जाती और उन की लज़त और बनाने वाली की तारीफ़ करती जाती। वह अपने बनाे आलो के पराठों की तारीफ़ सुन कर खुशी से फोला नहीं समा रहा था मधू ने सिर्फ़ दो पराठे खाे और चार पराठे अपने टफ़न मैं डाल दिए।
ठीक है अपनी सहीलयों को उसली पंजाब के यह पराठे खलां गई और उन से कहूं गई यह एक उसली पनजाबी ने बनाे हैं । ‘‘
उसी दौरान बस आ गई तो मधू जिल्द य से अतर कर बस मैं जा बैठी। जाते हुए वह उस से कह गई। । । जिम्मी जी। । । आज आप ने पंजाब के पराठे नाशतह मैं खलाे। कल मैं आप को नाशते मैं गुजरात का खमन खलां गई। नाशतह मत बनाे गा मैं नाशतह ले कर आं गई। ‘‘
वह उस तसोर से झोम उठा के कल भी मधू उस के घर आए गई। आज का दिन उस की जिन्दगई का यादगार दिन था उसे इतनी खुशी मल थी कि वह उस खुशी का तसोर भी नहीं कर सकता था उस का प्यार उस की मधू उस के घर आई थी। उस बड़ कर खुशी उस से और क्या हो सकती है कहा तो वह सोचता था कि वह तो कभी मधू से बात भी नहीं कर पायेगा। सिर्फ़ दूर से ज़ादगई भर देखता रहेगा। और सिर्फ़ दो दनों मैं फ़ासले इतने समट गए है कि वह तो उन के बारे मैं सोच भी नहीं सकता था उसे लगा अब मनज़ल दूर नहीं । उस ने मधू के सामने अपने प्यार का इज़हार नहीं क्या है लेकिन अब प्यार का इज़हार कोई मुश्किल काम नहीं है अब वह तनहाई से मधू के सामने अपने प्यार का इज़हार कर सकता है इज़हार के की ज़राा है
अब वह मधू से बन झजक खल कर बात कर सकता है उसके पास मधू का टीली फ़ोन नमबर है मधू के पास उस का टीली फ़ोन नमबर है उसे मधू के कालेज का नाम और पता भी मालूम है वह चाहे तो मधू से उस के कालेज मैं भी जा कर मल सकता है और कल तो मधू उस के घर दोबारा आ रही है उस के लिए नाशतह ले कर। वह खुशी से झोम रहा था लेकिन एक चहरह जो बार बार उस की आँखों के सामने घोम जाता था अमित पटेल का चहरह। अमित पटेल का चहरह अपनी आँखों के सामने देख कर वह सहम जाता था और आँखों के सामने अनधीरा सा छा ने लगता था ओ उस अनधीरे मैं उसे मधू की सूरत डोबती महसूस होती थी।
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