M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 1

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास

अलाव
लेखकः-ः
एम.मुबीन
सुबह जादू बिखेरती हुई नमोदार होती है हर फ़र्द के लिए उस मैं एक अलग तरह का जादू होता है और वह उस मैं अपने मक़्सद का जादू तलाश करता है महेनत कशों मज़दोरों नोकर पेशा तलबह ताजिर हर तबक़ह के लिए सुबह मैं एक अपना मनफ़रद जादू नहां होता है लेकिन सुबह कभी भी जिम्मी के लिए जादू सी महसूस नहीं होती थी। वह तो रात का राजा था उस का दिल चाहता था अगर उस की ज़ादगई मैं सिर्फ़ जिन्दगई भर की रात ही रहे तो भी यह उस के लिए खुशी की बात है वह उसी मैं खुश रहेगा और जशन मनाए गा। वह उस रात की सुबह का कभी इन्तज़ार नहीं करेगा। उसे कभी सुबह का इन्तज़ार नहीं होता था सुबह की आमद उस पर एक बेजारी से कैफ़ीत तारी करती थी। और उसे महसूस होता था सुबह नहीं आती है एक अफ़रीत आता है उस की ख़वाहशों अरमानों ، अहसासात चसती फिरती शगफ़तगई का खून चूसने के लिए। दिन के िनकलने पर उसे वही सारे काम करना पड़ेंगए जो उसे पसन्द नहीं है उसकी आज़ादी सलब हो जाएगई वह ग़लाम बन जाएगा और एक ग़लाम की तरह रात के आने तक वह काम करता रहेगा जो उस के ज़मह है दिन उस के लिए ग़लामी का पैग़ाम ले कर आता है तो रात उस की आज़ादी का सनदीश। बार बार वह उस दिन को कोसता था जब उस ने अपने चाचा के कहने पर पंजाब छोड़ने और उस छोटे से गांव मैं चाचा का कारोबार संभालने की हामी भरी थी। उस के हामी सुन कर तो उस के चाचा करतार सिंह के चहरे पर खुशी की लहर दौर गई थी। उस ने अपने चाचा के चहरे पर जो इतमीनान की लहर देखी थी वह लहर उस ने अपने बाप इक़बाल सिंह के चहरे पर उस दिन देखी थी जिस दिन उस की बड़ी बहन का बयाह हुआ था एक फ़रमान की अदाईगई के बाद दिल को क़लबी सकोन मिलता है और चहरे पर जो इतमिनान के तासरात अभरते वही तासरात करतार सिंह के चहरे पर थे। पुतरा। । । आज तो ने मेरी सब से बड़ी मुश्किल आसान कर दी। । । वरना मैं तो मायूस हो कर अपना सारा कारोबार घर बार फ़रोख़त कर के पंजाब का रख़ करने वाला था लेकिन अब जब तो ने वह कारोबार सनभालने की हामी भर ली है मैं सारी फ़करों से आज़ाद हो गया हूं । बीस साल से मैं ने जो कारोबार जमा रखा है वह आगे चलता रहेगा और किस के काम आए गा। किसी के क्यों मेरे अपने खून के ही काम आए गा। उस कारोबार की बदोलत मैं ने यहां पंजाब मैं इतनी ज़मीन जादाद बन ली है कि मुझे अब जिन्दगई भर कोई और काम करना नहीं पड़ेगा। लेकिन आज मैं अपना वह कारोबार तुमहारे हुआले करते हुए यह कहना चाहता हूं जिस तरह महनत से मैं ने ۲۰ साल तक कारोबार इतना धन कमएा है और उस क़ाबल हो गया कि मुझे अब किसी के सहारे की ज़रूरत नहीं है तो भी महनत से अपने कारोबार को फीला और उस से इतना पैसे कमा कर तो भी एक दिन आए गा वह सारा कारोबार किसी और के हुआले कर के अपने वतन अपने गांव आने के क़ाबल हो जाए। उस के उस फ़ीसले से सब से ज्यादा खुशी इक़बाल सिंह को हुई थी। वह जा कर करतार सिंह से लपट गया था करतारे। । । आज तो ने अपने बड़े भाई होने का हक़ अदा कर दया। मेरी सब से बड़ी फ़िक्र दूर कर दी। जिसमनदर को धन्दे से लगा दिया काम से लगा दया। मैं रात दिन उस की फ़िक्र मैं रहता था यह लड़का काम धनदा करेगा भी या फिर जिन्दगई भर आवारगयां करता रहेगा। की सालों से उसे समझा रहा था तो पड़ता लखता तो नहीं है पड़ने लखने के नाम पर क्यों अपना वक़्त और मेरे पैसे बर्बाद कर रहा है यह पड़ना लखना छोड़ कर कोई काम धनदह कर। मगर यह मानता ही नहीं था उसे पड़ने लखने के नाम पर आवारगयां करनी जो मलती थी। मगर तो ने उसे काम धनदा करने पर राजी कर के मेरी सब से बड़ी फ़िक्र दूर कर दी। घर से दूर रहेगा तो आवारगयां भी दूर हो जाए गई और धन्दे मैं भी दिल लगए गा। बाप और चाचा उस की हामी पर जशन मना रहे थे। लेकिन वह खुद एक तज़बज़ब मैं था उस की समझ मैं नहीं आ रहा था किस सहर के तहत उस ने अपना घर गांव वतन छोड़ कर अकीले काम करने के लिए हज़ारों मील दूर जाना क़ुबूल कर लिया था उस के दोसतों ने सना तो उस के उस फ़ीसले पर हैरत मैं पड़ गए। और वह भी पंजाब से हज़ारों मील दूर गुजरात। । । अपने चाचा का कारोबार सनभालने के लिए। हां । । । सहीह सना है उस ने जवाब दिया था ‘‘ ओे। । । तो वहां हमारे बन रह सके गा ؟‘‘ अब जिन्दगई तुम लोगों के साथ आवारगयां करते तो नहीं गज़र सकती है सोचता हूं वाह गरो ने एक मौक़े दिया कुछ करने का और कुछ कर दखाने का उसे क्यों गनवा दों । उन आवारगयों के सहारे तो जिन्दगई गज़रने से रही। रोज रोज पापा जी की बातीं सननी पड़ती हैं म की झड़कयां सहनी पड़ती हैं । बड़ी बहनीं जब भी आती हैं लकचर बघारती हैं । भाई बात बात पर ग़सह हो कर गालयां दीने लगता है बस अब यह सब बरदाशत नहीं होता। सोचता हो उस माहोल से कुछ दनों के लिए दूर चला जां । अगर वाह गरो ने उस धन्दे मैं रज़क़ लखा है और गुजरात का दानह हानी मेरी तक़देर मैं है तो मुझे जाना ही पड़ेगा। और जिस दिन वहां का दानह हानी आथ जाएगा मैं वापिस गांव आ जां गा। ‘‘ उस की उस बात से सब ख़ामोश हो गए थे। ओे जिसमनदर। । । हम तीरे दोस्त हैं दुश्मन नहीं । तीरी तरक़ी से हम खुश हूं गए। हम अपने मफ़ाद के लिए तीरी जिन्दगई बर्बाद नहीं होने दीं गए। आज तुझे कुछ करने का मौक़े मला है तो जा। कुछ कर दखा। हमारी दााईं तीरे साथ है दोसती तालक़ात अपनी कुछ दनों तक तीरी याद सताई तीरी कमी महसूस होगई फिर हम भी जिन्दगई की अलझनों मैं घर कर तुझे भूल कर अपने अपने काम धनदों मैं लग जाईं गए। ‘‘ जिम्मी। । । वहां जा कर हमैं भूल न जाना। ‘‘ अरे तो मैं हमीशह के लिए गांव छोड़ कर थोड़ी जा रहा हूं । साल चाय महीने मे बैसाखी पर आता रहूं गा। ‘‘ दोसतों और गांव को छोड़ना उसे भी अच्चा नहीं लग रहा था लेकिन उस ने गांव घर छोड़ने का अरादह कर लिया था फिर वह गांव छोड़ने वाला पहला फ़र्द नहीं था हर घर खानदान के की की अफ़राद गांव से बाहर थे। कोई ट्रक चलाता था जिस की वजह से महीनों घर गांव से दूर रहता था कोई फौज मैं था सिर्फ़ छटयों मैं घर आ पाता था कुछ ग़ीर ममालक मैं जा कर बस गए थे जिस की वजह से वह सिर्फ़ पाँच दस सालों मैं ही गांव आ पाते थे। नोकरी के सलसले मैं जो लोग मुल्क के मख़तलफ़ हसों मैं गए थे उन्हों ने अनही हसों को अपना वतन बन लिया था और गांव और गांव को भूल गए थे सिर्फ़ शादी बयाह मौत मटी के मौक़े पर गांव आते थे। उस के चाचा की तरह जिन लोगों ने दूसरे शहरों और रयासतों मैं धनदह शुरू कर लिया था वह लोग भी गांव के महमान की तरह आते थे। कल से उस का शमार भी उन लोगों मैं हो गा। वीसे भी गांव मैं उस के लिए कोई दलचसपी नहीं रह गई थी। पड़ाई के नाम पर वह पाँच सालों से एफ़ वाे आरट का तालब अलम था उस के पता और घर वालों को पुर यक़ीन था रह कभी गरीजवीशन पुर नहीं कर पायेगा। उस का कालेज गांव से दस कलोमीटर दूर था रोज़ानह सवीरे वह कालेज जाता कभी दोपहर तक गांव वापिस आ जाता तो कभी शाम को वापिस आता। कभी दिल आया तो जाता ही नहीं । दोसतों के साथ आवारह गरदी करता। एक दोस्त जगईरे की होटल थी। तमाम दोस्त उस होटल मैं बैठा करते थे। जगईरे के छोटे मोटे कामों मैं हाथ बटाते थे। या फिर पुर दिन वहां बैठ कर गपीं हानकते रहते या शरारतीं करते रहते थे। आए दिन उन की शरारतों की शकएतीं उन के घर को पहोनचती रहती थी। शरारतीं मासोम होती तो लोग नज़र अनदाज़ भी कर दीते लेकिन अब वह बच्चे नहीं रहे थे बड़े हो गए थे जिस की वजह से उन शरारतों का अनदाज़ भी बदल गया था वह गांव की लड़क्यों को छीड़ते रहते थे। कभी माामलह नोक छोनक तक होता तो कभी छीड़ छाड़ तक। । । कभी माामलह दिल का होता। । । तो कभी इज़्ज़त का। तमाम दोसतों का किसी न किसी से दिल लगा था लेकिन सिर्फ़ उस का दिल किसी पर नहीं आया था उस से दिल लगाने वाली की थीं । लेकिन स की नज़र मैं उन के उस जज़बे की कोई अहमीत नहीं थी। दोसतों के दलों का माामलह दलों से बड़ कर जिसमों तक पहोनच गया था और वहां से आगे बड़ कर शादी के बनधन तक। कुछ माामले दरमयान मैं अधोरे रह गए थे। लड़क्यों की कहीं और शादयां होगई थी। और पंजाब की रोएती रोमानी दासतानों मैं कुछ और दासतानों का अफ़सानह हो गया था अब वह टोटे हुए दिल उन की याद मैं आहीं भरते और शराब से अपना घाम ग़लत करते थे। उस तरह घाम ग़लत करते करते उन्हों ने बाक़ी दोसतों को भी शराब का अादी बन दिया था उन मैं एक वह भी था वह शराब का अादी तो नहीं हुआ था लेकिन राब पीने लग गया था और अकसर दोसतों का साथ दीने के ले उन के साथ शराब पीता था ज़ाहर सी बात है उस का शराब पीना घर वालों के ले तशवीश की बात तो हुई। इसलिए वह सनजीदगई से सोचने लगए थे कि उस से क़बल कि जिसमनदर सिंह शराब का अादी बन कर अपनी जिन्दगई तबाह कर ले। इसलिए यह लत छड़ाने का कोई तरीक़ह सोचना चाहये। आसान रासतह यह था कि उस की पड़ाई छड़ा कर उसे किसी काम से लगा दिया जाए। लेकिन उसे किस काम पर लगाया जाए। किसी की समझ मैं नहीं आता था कालेज पड़ता लड़का खीतों मैं सौ काम नहीं कर सकता। वरनह खीतों मैं तो हमीशह आदमयों की कमी रहती थी। अचानक उस की चाची का अनतक़ाल हो गया। और उस के चाचा करतार सिंह गांव आगया। करतार सिंह बीस साल क़बल कारोबार के सलसले मैं गांव से गया था उस ने गुजरात के एक छोटे से गांव नोटया मैं मोटर साईकल कार टरीकटर के परज़ों की दुकान डाली थी। उस गांव और आस पास के दीहातों मैं उस नवाईत की कोई दुकान नहीं थी। इसलिए उस की दुकान व कारोबार चाल नकला और उस ने बीस सालों मैं बहुत पैसे कमएा। वह साल मैं एक आध माह के लिए गांव आता था तो दुकान नोकरों के भरोसे छोड़ आता था उस का कारोबार फलता फोलता गया। आस पास और की दकानीं खल गई। लेकिन करतार सिंह के कारोबार पर कोई उसर नहीं पड़ा कयोनकह उस ने होल सील मैं उन दकानों को कल परज़े सपलाई करना शुरू कर दिए थे। जिस की वजह से उस के ज़मीन और जाएदाद मैं अजाफ़ह होता गया उस के बच्चे अछे उस कोलों मैं पड़ते कालेज मैं पहूंच गए। बटयां शादी के लाक़ हो गईं और अनीं अछे घरों से रशते आने लगए। अचानक तवील बीमारी के बाद करतार सिंह की घर वाली और उस की चाची का अनतक़ाल हो गया जिस की वजह से करतार सिंह टोट गया। अभी तक गांव मैं घर को उस की चाची ने संभाल रखा था लेकिन चाची के अनतक़ाल के बाद घर सनभालने वाला कोई नहीं रहा तो करतार सिंह को फ़िक्र दामन गईर होने लगई। घर मैं जवान लड़कयां और लड़के थे। उन पर नज़र रखने वाला घर मैं कोई बड़ा आदमी बे हद्द जरोरी था यों तो उस का बाप इक़बाल सिंह अपने बच्चों के तरह भाई के बच्चों का ख़याल रखता था उस के होते हुए करतार सिंह को उस सलसले मैं किसी तरह फ़िक्र करने की कोई ज़रूरत नहीं थी। लेकिन करतार सिंह बाप था उस का दिल नहीं माना। उस ने ते कर लिया था कि अब वह वापिस गुजरात नहीं जाएगा। अपना सारा कारोबार किसी को दे दे गा या फ़रोख़त कर दे गा और गांव मैं रह कर अपने बच्चों की देख भाल करेगा। लड़क्यों की शादयां करेगा और लड़कों को नोकरी या काम धनदों से लगाे गा। कारोबार फ़रोख़त करने से पहले उस के ज़हन मैं उस का ख़याल आया। उस के लड़के अभी कारोबार सनभालने के लाक़ नहीं है अगर वह कारोबार फ़रोख़त कर दीता है उस कारोबार से उस का रिश्ता ही टोट जाएगा। अगर अपनी दुकान किसी को दे दीता है तो पाँच दस साल बाद उस के लड़के कारोबार सनभालने के क़ाबल हो जाईं गए तो वह अपना कारोबार दुकान उस से वापिस ले कर अपने लड़कों के हुआले कर सकता है उस ख़याल के आते ही उस की नज़र उस पर पडे। और उस ने उस के सामने अपनी सारी सोरत हाल रख दी। जिम्मी बीटे। । । मैं चाहता हूं तुम मेरी वह दुकान सनभालो। मुझे तुम उस का एक पैसे भी मत दो। लेकिन पाचन दस साल बाद जब मेरे बच्चे उस क़ाबल हो जाईं कि वह दुकान संभाल सकीं तो तुम मुझे वह दुकान वापिस दे दो। ‘‘ उस ने बन सोचे समुझे हामी भर ली। उसे लगा उस के हाथ एक मौक़े लगा है उसे गनवाना नहीं चाहये। एक महीने बाद उस के चाचा करतार सिंह उसे ले कर नोटया आया। उस ने दुकान के नोकरों और गांव वालों से उस का ताारफ़ करएा। यह मेरा भतीजह जिसमनदर सिंह है सब उसे जिम्मी कहते हैं । आज के बाद यही मेरी दुकान और कारोबार दीखे गा। ‘‘ एक आठ दस साल का लड़का राजो और एक ۴۰،۴۵ साल का आदमी रघो। रघो पुराना नोकर था लेकिन अब उस का दिल उस काम मैं नहीं लगता था वह यह नोकरी छोड़ कर अपना खुद का कोई ज़ाती कारोबार शुरू करने का सोच रहा था ۱۰ साल का राजो नया नया था वह सिर्फ़ सामान दे सकता था और गाहक से उस सामान की बताई क़ीमत वसोल कर सकता था दूसरे लफ़ज़ों मैं दुकान की सारी ज़मह दारी उस पर थी। करतार सिंह ने उसे मशोरह दिया था फ़ली ल वह सिर्फ़ दुकान पर तोजह दे होल सील पर धयान न दे। धीरे धीरे जब वह दुकान अछी तरह सनभालने लगए तो उस के बाद होल सील पर तोजह दीना। उस का चाचा नोटया मैं आठ दनों तक उस के साथ रहा। और दुकान दारी के सारे गुर बता गया। माल कहां से ख़रीदा जाए किसी क़ीमत पर फ़रोख़त क्या जाए कौन मसतक़ल गराहक है उस की दुकान का नाम गरो नानक आटो पारट था दुकान के उतराफ़ एक दो मकीनक ने अपनी दोकानीं खोल रखी थी। एक बड़े से बकस मैं वह रोज़ानह अपना सामान ले कर आते और उस से अपना काम करते थे। वह लोग उस के लिए इसलिए मफ़ीद थे कयोनकह वह सामान उस की दुकान से ही ख़रीदते थे। अकसर किसी को अपनी सवारी का कोई पारट होता था तो वह उस की दुकान से पारट ख़रीद कर उन के पास पहूंच जाता वह लोग उस पारट को तबदील कर दीते थे। उस की दुकान मैं डयोटी सवीरे आठ बजे से रात के आठ बजे तक थी। दोपहर मैं वह एक आध घण्टे के लिए खाना खाने के लिए किसी होटल धाबे पर जाता या अपने कमरे मैं जा कर खुद ही अपने हाथों से खाना बनाता। उस वक़्त भी दुकान बनद नहीं होती थी। नोकर दुकान देखते थे। नोकर भी खाना खाने के लिए एक डीड़ घण्टे के लिए अपने घर जाते थे उस वक़्त वह दुकान देखता था दुकान दो मनज़लह थी। नीचे दुकान ओपर रहाश के लिए दो कमरे जहां उस का चाचा रहता था दुकान के पीछे भी एक कमरह था जसे गोदाम के तोर पर इस्तेमाल क्या जाता था उस मैं ज़ाद माल रखा जाता था या फिर बीकार माल। दिन भर तो दुकानदारी मैं गज़र जाती थी। मगर उस के रात काटनी मुश्किल हो जाती थी। शुरू शुरू मैं उस के लिए रात काटना बहुत मुश्किल महसूस होता था कयोनकह उस का न तो कोई दोस्त था न ही कोई शनासा जिस के साथ वह बातीं करीं । दुकान बनद कर के वह खाना खाता और फिर अपने कमरे मैं क़ीद हो कर बसतर पर लीट कर सोने की कोशिश करता। नीनद भला इतनी जलदी और इतनी आसानी से कहां आती। गांव मैं उसे दो दो तीन तीन बजे तक जागने की अादत थी। इसलिए एक दो बजे से क़बल उसे नीनद नहीं आती थी। उस बे ख़वाबी से कभी वह इतना परीशान हो जाता कि उस का दिल चाहता वह यह काम धनदह दुकानदारी छोड़ कर वापिस गांव भग जाए। गांव मैं वह देर से सोता था तो देर से जागता था जब कालेज जाना नहीं होता था या छटयों मैं वह ۱۲ बजे से पहले बसतर नहीं छोड़ता था लेकिन यहां पर वह रात मैं दो बजे सौ या सौ तीन बजे रात मैं दुकान खोलने के लिए सवीरे सात बजे जागना पड़ता था इसलिए उसे सुबह की आमद पसन्द नहीं थी। सुबह आती तो उस की आँखों मैं नीनद भरी होती थी। जिसम बोझल सा होता था जिसम का एक एक हसह रात की बे ख़वाबी की वजह से टोटता महसूस होता था दिल तो चा रहा होता था कि वह और चार पाँच घण्टे सवे लेकिन दुकान खोलने के लिए जागना जरोरी था ज़रा सी ताख़ीर हो जाती तो रघो और राजो आ कर घर दसतक दीते। इसलिए बादल नाख़वासतह उसे जागना पड़ता। रात मैं यार दोसतों की सहबतों महफ़लों की बातीं याद आती। जब गांव और दोसतों की यादीं ज्यादा ही मग़मोम कर दीतीं तो वह शराब पी लेता था शराब पीने से उसे सकोन मल जाता था और नीनद भी आ जाती थी। लेकिन अकीले उसे शराब पीने मैं मज़ह नहीं आता था यार दोसतों के साथ मल बैठ कर हनसी मज़ाक़ करते हुए शराब पीने का मज़ह ही कुछ और होता है की बार उस ने कोशिश की कि रघो उस का साथ दे लेकिन रघो उस का साथ नहीं दीता था जिम्मी सीठ। । । तुम तनख़वाह इतनी कम दीते हो कि उस मैं मेरे घर वालों का पीट मुश्किल से भर पाता है शराब की लत लगा कर क्या मैं अनीं भोका मारों ؟ माना आज तुम मुझे मफ़त की पला रहे हो। । । लेकिन अादत लग जाने के बाद तो मुझे अपने पीसों की पीनी पडे गई तब क्या हो गातुमहारे चाचा भी मुझ से यही उसरार करते थे। तब भी मैं ने उस लत को गले नहीं लगाया तो आज क्यों लगांव ؟‘‘ राजो छोटा लड़का था उसे शराब की पेश कश नहीं कर सकता था एक मकीनक से उस की पहचान होगई थी। वह शराब का अादी था उस के लिए शराब भी ला कर दीता था और उस के साथ शराब थी पीता था लेकिन उस के साथ अपने तालक़ात सिर्फ़ शराब ला कर दीने और कभी कभी साथ शराब पीने की हद्द तक ही महदोद रखा था उस मायार का आदमी नहीं था कि उस के हलक़ह अहबाब मैं शामिल क्या जाए। उस के हलक़ह अहबाब मैं की लोग शामिल हो गए थे। उस का चाचा जाते हुए उसे कुछ ऐसी बातीं भी बता गया था जिन से वह महतात रहने लगा था उस के चाचा ने कहा था । । । जिम्मी। । । उन गुजराती लोगों से होशयार रहना। मैं बीस साल से उस गांव मैं हूं । उन के दरमयान धनदह कर रहा हूं लेकिन मुझे पता है वह लोग मुझे पसन्द नहीं करते हैं । मजबोरी की तोर पर मुझे झील रहे हैं या अनीं महसूस होता है कि वह मेरा कुछ नहीं बगाड़ सकते। उन के लिए पैसे और धनदह ही सब कुछ है पैसे और धन्दे के लिए यह कुछ भी कर सकते हैं । किसी भी हद्द तक गर सकते हैं । पहले जब उस गांव मैं मेरी वाहद दुकान उसपीर पारट की दुकान थी इसलिए यह मुझे बरदाशत कर लीते थे। लेकिन अब जबकह की उसपीर पारट की दोकानीं हैं और वह गुजरातयों की हैं । वह मुझ से जलते हैं । उस मैं वह तमाम दुकान दार चाहते हैं मैं यह दुकान बनद कर के चला जां । आते दिन ज़ात और बरादरी के नाम पर मेरे गाहक तोड़ने की कोशिश करते हैं । उस मैं वह कुछ कुछ हद्द तक कामयाब भी होते हैं । लेकिन इतने नहीं कि मुझे धनदह बनद करना पड़े। वह तुम पर कोई भी झोटा अलज़ाम लगा कर हमलह कर सकते हैं । इसलिए उस बारे मैं महतात रहना। तब से वह बहुत महतात रहता है उस ने महसूस क्या था लोगों की आँखों मैं उस के लिए अछे जज़बात नहीं होते हैं । वह उसे नापसनद यदह नज़रों से ही देखते हैं । उस की वजह क्या हो सकती है उस सलसले मैं उसी ने अपने एक मुसलमान दोस्त जावेद से सवाल क्या था । । यह लोग तुम्हें पसन्द नहीं करते तुम उस बात का मातुम कर रहे हो। ‘‘ अरे अभी तुम्हें उस गांव मैं आए दिन कतने हुए हैं ؟ मुश्किल से एक माह तब भी तुम्हें नापसनद करते हैं । हम लोग तो सदयों से उस गांव मैं रह रहे हैं । उस के बओजोद वह हम लोगों को पसन्द नहीं करते हैं । और चाहते हैं कि हम यहां पर कोई काम धनदह न करीं । यह गांव छोड़ कर चले जाईं । आए दिन कोई न कोई नया फ़तनह उठाते रहते हैं और आजकल तो कुछ ज्यादा ही। । । ‘‘ जावेद की बात सुन कर वह बहुत कुछ सोचने पर मजबोर हो गया। जावेद की पीदाश उसी गांव मैं हुई थी। वह यहां पला बर्ह था उस गांव मैं उस ने तालीम मकमल की थी पर अाली तालीम हाशिल करने ममबी मैं उस ने अपने एक रिश्ता दार के पास ममबी गया था ममबी मैं उस ने कमपयोटर की अाली तालीम हाशिल की। उस की क़ाबलीत के बनयाद पर उसे ममबी मैं अछे जाब के आफ़र आए लेकिन उस ने वहां नोकरी करना मनासब नहीं समझा। उस का एक ही मक़्सद था मैं ने जो तालीम हाशिल की है मैं अपने अलम तालीम रोशनी से अपने गांव वालों को फ़ीज याब करों गा। और वह गांव वापिस आगया। उस ने कमपयोटर की एक छोटी सी दुकान खोली और वहां पर गांव के बच्चों को कमपयोटर की तालीम दीने लगा। उस वक़्त गांव मैं कोई भी कमपयोटर से आशना नहीं था कमपयोटर का ज़मानह था कमपयोटर की तालीम की अहमीत का अहसास हर किसी को था इसलिए हर कोई उस तालीम की तोफ़ माल होने लगा। और जावेद के पास कमपयोटर की तालीम हाशिल करने वाली तलबा की तादाद मैं दिन बह दिन अजाफ़ह होने लगा। सवीरे आठ बजे से रात के ۱۲ बजे तक बच्चे जावेद के पास कमपयोटर सीखने के ले आते। एक साल मैं ही जावेद की छोटी सी कमपयोटर सखाने की कलास एक बड़े से कमपयोटर अनसटी टयोट मैं तबदील होगई। गांव के वसत मैं एक शानदार नजी इमारत मैं जावेद का शुरू करदह अक़सी कमपयोटर उस इलाके का सब से बड़ा कमपयोटर उसनटी टयोट बन गया। जहां बच्चों को कमपयोटर की जदीद तालीम दी जाती थी। कमपयोटर फ़रोख़त और दरसत किए जाते थे। और साबर कीफ़े था जो गांव के वाहद साबर कीफ़े था जिस मैं हमीशह भीड़ लगई रहती थी। जावेद के जज़बे की किसी ने भी क़दर नहीं की बलकह उसे भी तजारती नक़तह नज़र से देख कर उस मैं तजारती रक़ाबतों का अनसर तलाश क्या गया। मनाफ़ा बख़श धनदह है सिर्फ़ यह सोच कर एक दो और कमपयोटर की तालीम दीने वाली कलासस शुरू होगई। यह और बात थी कि अनीं वह कामयाबी नहीं मल सकी। लेकिन उस तरह जावेद और अक़सी कमपयोटर के तजारती रक़ीब तो पीदा हो गए थे। जावेद की बातों ने उसे बहुत कुछ सोचने पर मजबोर कर दिया था उसे लगा कि उसे भी उन तमाम बातों का सामना करना पड़ेगा। अगर ऐसा हुआ तो उस के लिए यह राह इतनी आसान नहीं है जतनी वह सोच रहा है उस के लिए शुरू शुरू मैं की मसाल थे। सब से बड़ा मसलह ज़बान का था उसे पनजाबी आती थी। हनदी बोल लेता था लेकिन वहां के लोग गुजराती के अलओह कुछ बोलते और समझते ही नहीं थे। उस का चाचा इतने अरसे तक वहां रहने की वजह से गुजराती सीख गया था इसलिए उस का काम चाल जाता था लेकिन उसे रघो या राजो का सहारा लेना पड़ता था वीसे उसे पुर अातमाद था कि वह कुछ अरसे मैं काम चला गुजराती सीख जाएगा। लेकिन ज़बान की अजनबीत का अहसास उसे कुछ कहने लगा। उसे लगा उस ज़बान की अजनबीत की वजह से वह वहां अछे दोस्त नहीं बन पायेगा। कयोनकह वह रवानी से जज़बात अहसासात का इज़हार नहीं कर सके गा। न सामने वाली के जज़बात अहसासात को समझ सके गा। दोस्त वही बन सकता है जिस के सामने रवानी से अपने अहसासात का इज़हार ममकन है या जिस के जिस अहसासात को समझा जा सका। उस वजह से इतने दनों मैं सिर्फ़ जावेद ही उस का दोस्त बन सका। लेकिन जावेद के पास अनता वक़्त नहीं था कि ह उस के पास आ कर बैठे। उसे रात मैं वक़्त मिलता तो वह जावेद के साबर पहोनच जाता था लेकिन वहां भी जावेद से फ़रसत से बात चीत नहीं हो पाती थी। जावेद कमपयोटरस के पीछे हीरान होता। और वह तमाशाई बन जावेद को कमपयोटरों से अलझा देखता। जावेद ने एक दो बार उस से कहा भी था । । । कमपयोटर सीख जा एक बार अनटरनीट की लत लग गई तो तुम भी मेरे रंग मैं रंग जा गए। लेकिन बओजोद बार बार कोशिश कि वह मास हाथों मैं पकड़ना सीख नहीं सका तो उसकरीन पर अभरने वाली अनगरीज़ी तहरीरों को क्या पड़ता और समझता। वीसे भी अनगरीज़ी उस की कमज़ोरी थी। जावेद इसलिए उस का दोस्त बन कि उन के दरमयान ज़बान की अजनबीत नहीं थी। वह रवानी से जावेद के साथ गफ़तगो कर सकता था और जावेद उस की पनजाबी भी समझ लेता था और उस का साथ दीने के लिए या मज़ाक़ अड़ाने के लिए पनजाबी लहजे मैं गफ़तगो भी करता था वह जावेद की इसलिए क़दर करता था कि जावेद इतना मसरोफ़ रहता था लेकिन उस के लिए वक़्त जरोर नकालता था जावेद से उस की पहचान उस की अपनी दुकान पर होती थी। जावेद अपनी मोटर साईकल कीलिए कोई परज़ह ख़रीदने उस की दुकान पर आया था तो रघो ने उसे बताया कि यह पुराना गाहक है तो उस ने उस से खुद को मताारफ़ करएा। चलो अच्चा हुआ सरदार जी। । । आप आ गए। । । पूरे गांव मैं एक नोजवान सरदार तो है वरना गांव वाली आप के बोड़े चाचा को देख देख कर सरदार जी लोगों के बारे मैं ग़लत नज़रयात क़ाम करने लगए थे। ‘‘ उस के बाद जावेद जब भी उस के दुकान के सामने से गज़रता उसे हाथ दखाता गज़रता था अगर फ़रसत मैं रहता होता तो रुक कर ख़ीर ख़ीरीत पूछ लेता। जावेद उस के दिल पर एक गहरा नक़्शा छोड़ गया था उसे ऐसा महसूस होता था जैसे उस के गांव मैं कोई यार जावेद की शक्ल मैं उस के पास आगया है उस का मानना था वाह गरो हर काम आसान करता है सवीरे जलदी अठना उस के लिए सब से मुश्किल काम था लेकिन उस काम मैं भी आसानी पीदा होगई थी जब से उस ने मधू को देखा। मधू गांव की लड़की थी। शहर कालेज पड़ती थी रोज़ानह सवीरे चाय सात बजे की बस से शहर जाती थी। कालेज से कभी एक बजे वापिस आती तो कभी ۴ बजे तो कभी शाम को। शहर जाने वाली बस का स्टाप उस की दुकान के सामने था अकसर सवीरे बस के इन्तज़ार मैं मधू उस की दुकान के सामने खड़ी होती थी। वापसी मैं भी उस की दुकान के सामने ही आ कर रकती थी और बस से अतर कर मधू ग़ीर अरादी तोर पर एक नज़र उस की दुकान की तरफ़ डालती आगे बड़ जाती। मधू ने उस के ज़हन और उस की जिन्दगई मैं हलचल मचा दी थी। अब तक उस ने हज़ारों लाखों खूबसूरत से खूबसूरत लड़कयां देखी थीं की तो उस पर मरती थीं । पंजाब के दीहातों का बे बाक हसन तो क़से कहानयों मैं आज भी जिन्दा है लेकिन अब तक कोई भी ऐसा चहरह नहीं मला जो उस के दिल व दमाग़ मैं हलचल मचा दे। लेकिन मधू पर नज़र पड़ते ही उस के दिल व दमाग़ ही नहीं जिन्दगई मैं भी हलचल मच गई। उस ने कालेज से आते हुए मधू को की बार देखा तो पता लगाया कि यह कालेज कब जाती है तो उसे पता चला जब वह सोया हुआ होता है तब वह कालेज जाती है सवीरे चाय सात बजे। और बस के इन्तज़ार मैं बहुत देर तक ठीक उस की दुकान के सामने बने बस स्टाप पर खड़ी रहती है यह सुन कर उस की बीताबी बड़ गई। कालेज से वापिस आती मधू सिर्फ़ चंद मनटों तक उस की आँखों के सामने होती थी तो उस पर एक नशह तारी हो जाता था जो घनटों नहीं अतरता था सवीरे तो वह मधू को घनटों देख सकता है यह सोच कर उस ने ते कर लिया अब वह अपनी अादत के ख़लाफ़ सवीरे जिल्द जाग जएा करेगा। सुबह जो एक जादू बखीरती नमोदार होती है हर फ़र्द के लिए उस मैं एक अलग तरह का जादू होता है और वह उस मैं अपन मक़्सद का जादू तलाश करता है लेकिन सुबह कभी भी जिम्मी के लिए जादू जगाती महसूस नहीं होती थी। अब वही सुबह उस के लिए एक जादू बखीरती नमोदार होती है उस सुबह मैं उस के लिए एक अलग तरह का जादू नशह कशश होती है मधू के दीदार की कशश। । । मधू के दीदार का नशह। । । मधू के दीदार का जादू। । ।
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