M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 4

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव
लेखकः-ःएम.मुबीन
Part 4
दूसरे दिन आंख जिल्द खल गई तो वह सिर्फ़ मधू की कशश थी। जिस की वजह से आंख जिल्द खल गई वरनह रात भर वह ठीक से सौ नहीं पएा था रात के पहले हसह मैं आंख लगई लेकिन भयानक ख़वाबों और ख़यालों ने उस किस नीनद का सलसलह मनक़ता कर दया।
उस ने ख़वाब मैं देखा सारा गांव जाल रहा है हज़ारों अफ़राद पर मशतुमल एक टोली है जो अशतााल अनगईज़ नारे लगाता हुआ आगे बड़ रहा है उस के हाथों मैं हथयार है टोलह घरों को आग लगाता है अपने हाथों की तरशोलों से मकानों के मकीनों के जिसमों को छीदता है और दहकती हुई आग मैं झोनक दीता है बच्चों को नीज़ों पर अछालता है हामलह अोरतों की पीट को चाक कर के उन से नौ ज़ाद बच्चे नकाल कर आग मैं झोनक दीता है
उस टोले ने आ कर उस की दुकान घीर ली। टोले एक चहरह बाहर आया। यह उस के पड़ोसी का था जिस की उसपीर पारटस की दुकान थी। जला डालो। । । जला डालो। । । वह हाथ उठा कर चीख़ा। और टोलह ख़ोफ़नाक दिल को दहलाने दीने वाली नारे लगता उस की दुकान की तरफ़ बड़ा। और उस की आंख खली गई थी। और उस के बओजोद लाख कोशिश के वह ठीक तरह से सौ नहीं सका। सोते जागने की कीफ़ीत मैं रात गज़र गई।
सवीरे ऐसा लगा कि अब गहरी नीनद आ जाएगईलेकिन मधू के तसोर ने उसे सोने नहीं दया। वह बरश करता ग्लेरी मैं आ कर खड़ा हुआ। पो फोट चकी थी। और धीरे धीरे चारों तरफ़ अजाला फील रहा था वह बस स्टाप को घोरने लगा। उसे गांव आई सड़क पर एक सएह सा रीनगता हुआ दखाई दिया और उस की दिल की धड़कनीं तीज़ हो गईं । धीरे धीरे उस साे के रनगईन ख़दोख़ाल वाक़ा होने लगए। वह मधू ही थी। हाथों मैं कताबों को दबाे वह बस स्टाप की तरफ़ बड़ रही थी।
बस स्टाप पर पहूंचने से क़बल लाशाोरी तोर पर उस ने उस की ग्लेरी पर नज़र डाली। ग्लेरी मैं उसे खड़ा देख कर वह ठटकी फिर उस ने होनटों पह एक दलकश मसकराहट रीनग गई। उसे लगा जैसे वह मसकराहट उस के दिल के तारों को छीड़ कर उस के वजोद मैं दलकश तरनगईं पीदा कर रही है मधू का उसे देख कर मसकराना उस बात की गवाही थ कि मधू के दिल मैं उस के लिए कोई लतीफ़ गोशह है अगर मधू के दिल मैं कोई जजबा नहीं होता तो उसे देख कर उस के चहरे पर कोई तासर नहीं अभरता। उस के मधू को हाथ बतएा।
मधू के चहरे पर शरम के तासरात उभरे ओ रास ने भी हाथ हला कर उस के हाथ हलाने का जवाब दया। मधू के जवाब को पा कर उस की हिम्मत बड़ी। उस ने मधू की तरफ़ फ़लानग किस अछाल दया। जवाब मैं मधू ने भी उस की जानब फ़लानग अछालना चाहा लेकिन उस के हाथ होनटों पर चपक से गए और शरमा के उस ने अपना सर झका लिया
वह ग्लेरी पर अपनी कहनी रख कर मधू को देखने लगा। मधू भी उसे शरमीली नगाहूं से मसलसल ताके जा रही थी। यह सलसलह उस वक़्त टोटा जब बस आ गई। मधू ने हाथ उठा कर उसे गड बाे कहा। और बस मैं जा कर बैठ गई। बस चली गई तो वह अन्दर आया। उसे कोई तयारी नहीं थी। वह सब तयारी कर चका था मधू का इन्तज़ार करने के लिए वह पहले से तयार हो जाता था उस के एक दोस्त ने कहा था बग़ीर तयार हुए सरदार जी दुनिया का सब से गंदा आदमी महसूस होता है इतना गंदा के अफ़रीक़ह के किसी क़बीले की औरत भी उस पर नज़र डालना पसन्द नहीं करे गई। ‘‘
उसे वह बात याद थी। इसलिए वह अपने खुले बाल लनगई और बनयान मैं मधू के सामने जा कर उस का तसोर तोड़ना नहीं चाहता था इसलिए मधू के आने से क़बल ही वह अपने सरके बाल सनवार कर उस पर क़रीने से पगड़ी बानध लेता था और अच्चा सा डरीस तन ज़ीब कर लेता था ताके वह किसी दलीर महदी ‘‘ से कम दखाई न दे। खुश लबासी के माामलह मैं दलीर महदी उस का आईडील था वह दलीर महदी को सब से ज्यादा खुश लिबास सख मानता था जो अपनी खुश लिबास के वजह से हर किसी पर उसर छोड़ कर थोड़ी सी नक़्ल करने की कोशिश करता था
दिन बड़े इतमिनान से गज़रा। मामोल के मताबक़ धनदह चलता रहा। गाहक आते जाते रहे। लोग अपने अपने कामों मैं लगए रहे। का के वाक़ाात का किसी पर उसर नहीं था शाम के वक़्त उस ने रघो के हुआले दुकान कर के चोक की तरफ़ का रख़ क्या। वह जावेद के साबर की तरफ़ चाल दया। साबर मैं हसब मामोल भीड़ थी। की गाहक इन्तज़ार कर रहे थे। उन मैं की लड़कयां भी थीं । ۱۶ से ۲۲ साल की उमर लड़क्या। लड़के भी तक़रीबा उसी उमर के थे।
आये सरदार जी। । । ख़ीरीत जावेद ने उसे देख कर पोछा।
देखने आया हूं कल के माामले का क्या उसर हुआ है ‘‘
उसर तो कुछ भी नहीं पड़ा है सब कुछ मामोल के मताबक़ चाल रहा है ऐसा लग रहा है जैसे कुछ हुआ ही हैं । जावेद कहता उसे अपने आफ़स मैं ले गया। उस ने अपने लिए अनसटी टयोट मैं एक छोटासा आफ़स बन रखा था
तुमहारी साबर मैं लड़कयां तो बहुत आती हैं जावेद भाई। उस ने पोछा।
लड़कयां नहीं नोजवान लड़कयां कहये सरदार जी। जावेद ने मसकरा कर कहा।
दरासल यह चीज़ उस उमर के लोगों के हैं । चाहे वह लड़के हो या लड़कयां । लड़के ज्यादा तर चीटनग के लिए आते हैं । या फिर नयोड साट देखने के लिए। लड़कयां चीटनग के लिए आती है उन मैं ज्यादा तर लड़क्यों का नज़र यह होता है चीटनग के ज़रयाे वह ग़ीर ममालक मैं आबाद गुजराती लड़कों से दोसती करीं । और माामलह आगे बर्ह कर शादी तक पहनचा दे ताके उन के म बाप के सर से उन की शादी का तलवार की तरह लटका न रहे और वह उन के लिए अच्चा लड़का ढोनडने के लिए परीशान न रहे। मेरे साबर की वजह से की लड़क्यों की शादयां ग़ीर ममालक मैं हो चकी हैं और की लड़क्यों की शादयां ग़ीर ममालक मैं ते हो चकी हैं ।
वह कामयाब रही या नाकाम ؟‘‘
अब यह तो उन का मसलह है लोगों को भी महसूस हो गया है कि साबर के ज़रयाे लड़कयां जिल्द अच्चा जयोन साथी ढोनड कर सारे माामलात ते कर के उन के ज़हन से एक बोझ दूर कर देती हैं इसलिए वह अनीं साबर जाने से रोकते नहीं । रात के ۱۲ बजे तक यहां लड़क्यों की भीड़ होती हैं । ۱۵ कमपयोटर लगा चका हूं फिर भी कभी कोई कमपयोटर ख़ाली नहीं होता है अब भी ۱۵ कमपयोटरस की ज़रूरत है जावेद बोला।
अचानक उस का दिल धड़क उठा। उस के मधू को साबर मैं दाखिल होते देखा। यह उस ने जावेद की तरफ़ सवालीह नज़रों से देखा।
मधू ने अनदरोन भाई पटेल की लड़की है जावेद ने जवाब दया। यह भी साबर मैं बाक़ाादगई से आती है उस की भाभी से चीटनग वग़ीरह करती है ‘‘
जावेद की बात सुन कर उस ने इतमिनान की सानस लिया जावेद भाई कोई कमपयोटर ख़ाली नहीं है मधू जावेद के आफ़स मैं चली आई।
थोड़ा इन्तज़ार करना पड़ेगा। जावेद ने मसकरा कर जवाब दया।
कहां इन्तज़ार करों बैठने की भी जगह नहीं ؟‘‘ मधू अठला कर बोली।
अगर अातराज नहीं हो तो मेरा आफ़स हाजर है ‘‘ कहते मसकरा कर जावेद ने एक करसी की तरफ़ इशारा क्या। मधू मसकरा कर बैठ गई। उस का दिल धड़क उठा।
अन से मलो सरदार जिसमीनदर सिंह अरफ़ जिम्मी। जावेद ने उस की तरफ़ इशारा करते हुए मधू से कहा।
हां मैं अनीं जानती हूं । ‘‘ मधू ने मसकरा कर जवाब दया।
जानती हूं जावेद ने हैरत से दोनों की तरफ़ देखते हुए।
वह बस स्टाप के सामने उन की दुकान है ना गरो नानक उसपीर पारटस। मधू ने जवाब दया।
अछा अच्चा ओर तुम वहां से रोज़ानह आती जाती हो। जावेद ने कहा। जिम्मी यह मधू है मेरी कलास मीट। मैं शायद कल उस के बारे मैं तुम्हें बता चका हूं । जावेद बोला।
हां अनीं तो रोज ही देखता हूं । ‘‘ वह शरमीले लहजे मैं बोला।
इतने मैं जावेद को किसी लड़के ने आवाज़ दी। किसी कमपयोटर मैं कोई पराबलम आया था मैं अभी आया ‘‘ कह कर जावेद आथ कर आफ़स से चला गया। अब वह दोनों आफ़स मैं अकीले थे। कभी एक दूसरे की तरफ़ देखते दोनों की नज़रीं मलतीं तो मसकरा दीते या फिर घबरा कर दूसरी तरफ़ देखने लगते।
आप रोज कालेज जाती हैं मधू से बात करने के लिए उस ने पोछा।
कालेज तो रोज ही जाना पड़ता है मधू ने मसकरा कर जवाब दया। मधू का जवाब सुन कर वह झीनप गया।
कालेज जाते हुए कभी मेरे ग़रीब ख़ाने पर भी आ जएा कीजये। सवीरे आप बस स्टाप पर खड़ी हो कर बस का इन्तज़ार करती हैं अच्चा नहीं लगता। अगर मेरे ग़रीब ख़ाने पर आईं तो मैं आप को नाशतह या चाे तो दे सकता हूं । ‘‘ वह बोला।
आप के घर मैं कौन कौन हैं मधू ने पोछा।
जी कोई नहीं मैं ही अकीला हूं ‘‘
ओ मधू ने अपने हूंट सकोड़े।
आप खाना क्या खाते हैं ؟‘‘
मैं । । । मैं खुद खाना बनाता हूं । ‘‘
आप को खाना बनाना आता है मधू का चहरह चमकने लगा।
हालात इन्सान को यह रंग मैं ढाल दीते हैं । ‘‘
आप को आलो के पराठे बनाने आते हैं । ‘‘
हां बन सकता हूं ‘‘
मुझे पनजाबी आलो के पराठे बहुत पसन्द है ‘‘
तो फिर कल ग़रीब ख़ाने पर आये आप के लिए आलो के पराठे तयार हूं गए। उस ने कहा।
उस दरमयान जावेद अन्दर आया। मधू चार नमबर कमपयोटर ख़ाली हो रहा है तुम वहां पर बैठ सकती हो। ‘‘
शकरीह कह कर मधू आथ कर चली गई। मधू के जाते ही उस का चहरह अतर गया।
क्या बात है सरदार जी जावेद ने छीड़ते हुए कहा। मीरा जिल्द आना अच्चा नहीं लगा। उस ने कोई जवाब दया। अछा समझ गया दिल का माामलह है । । कहते हुए वह उसे छीड़ने लगा।
आफ़स के कानच से बाहर वह कमपयोटर पर बैठी मधू को देख रहा था मधू मास और की बोरड से खीलने मैं मसरोफ़ थी। कभी वह सर उठा कर उसे देख लीती। दोनों की नज़रीं मलतीं तो वह मसकरा देती। उस की मसकराहट से उस के अन्दर जैसे जलतरंग सी बजने लगती। एक फ़ोन आया तो जावेद फ़ोन पर बात करने लगा।
मैं अभी आया कह करोह उठा और मधू के पास जा कर खड़ा हो गया। मधू कुछ टाप कर रही थी। उस तरह किसी के कमपयोटर के पास जा कर खड़ा हो जाना उस की तनहाई मैं रख़नह डालना साबर कीफ़े के आदाब के ख़लाफ़ था लेकिन मधू ने कोई अातराज नहीं क्या।
मेरे भाई का ए मील आया है उस के ए मील का जवाब दे रही हूं । मेरा भाई अमरीकह मैं है मेरी भाभी भी अमरीकह मैं है अकसर या तो हमारी फ़ोन पर बातीं हो जाती हैं या फिर ए मील से। कभी कभी चीटनग के ज़रयाे भी हम एक दूसरे से बातीं करते हैं । ‘‘ मधू उसे बताने लगई।
यह क्या गोरख धनदह है उसके समझ मैं नहीं आ रहा था लेकिन उस वक़्त उसे शदत से अहसास होने लगा उसे भी यह सीखना चाहये। कम से कम वह उस तरह मधू के सामने अपना कमपयोटर शनासा होने का इज़हार तो कर सकता है
उस वक़्त कीफ़े मैं एक नोजवान दाखिल हुआ। वह साबर कीफ़े मैं एक एक लड़की पर नज़र डालता सीधा मधू के पास आया। उस ने उसे ना पसनदीदह नज़रों से उसे देखा और उसे बाज़ो हटा कर मधू के पास खड़ा हो गया और उस से गुजराती मैं मैं कुछ कहने लगा। मधू भी उस का जवाब गुजराती मैं दीने लगई। मधू के चहरे पर आए नागवारी के तासरात उस बात का इज़हार कर रहे थे कि उसे उस नोजवान का उस तरह आ कर उस से बातीं करना पसन्द नहीं आया है दोनों कभी कभी ओनचे लहजे मैं बातीं करने लगते। साबर मैं बैठे दूसरे लोग चौंक कर अनीं घोरने लगते उन के उस अनदाज़ से उस ने अनदाज़ह लगाया जैसे वह किसी बात पर बहस कर रहे हैं या झगड़ रहे हैं ।
थोड़ी देर बाद जावेद आथ कर वहां आया और वह भी गफ़तगो या झगड़े मैं शामिल हो गया। दोनों मैं बहस होती रही फिर वह नोजवान चला गया। तो जावेद ने उसे अपने पीछे आने का इशारा क्या। को न था यह जावेद के आफ़स मैं पहूंच कर उस ने पोछा।
अमित रओ जी पटेल ‘‘ जावेद ने जवाब दया। एक बड़े बाप का बगड़ा हुआ बीटा है सयासी लीडर है गुण्डा और बदमााश भी है कह कर वह रुक गया। और सब से बड़ी बात यह है कि मधू पर अाशक़ है
यह सुन कर उस के दिल को एक धका सा लगा।
ओर दूसरी बात यह है कि मधू उस को ज़रा भी घास नहीं डालती है ‘‘
जावेद की दूसरी बात सुन कर उसे कुछ इतमिनान हुआ। उस ने एक दो घण्टे साबर कीफ़े मैं गज़ारे। उस दौरान कभी चोर नज़रों से कभी दीदह दलीरी से मधू की तरफ़ देखता रहा। कभी मधू के पास जा कर उस का क़रीब से जाज़ह लेता रहा। जाते वक़्त वह धीरे से बोला सवीरे मैं तुमहारे आलो के पराठे तयार रखों गा। नाशते मैं मेरे आलो के पराठे खाे बन कालेज नहीं जाना। ‘‘
उस के बात का मधू ने कोई जवाब नहीं दया। सिर्फ़ धीरे से मसकराई। वह उस को मधू की हां समझ गया।
उस रात वह बहुत खुश था उस ने मधू को न सिर्फ़ काफ़ी क़रीब से देखा था बलकह बहुत देर तक बातीं भी थीं और कल मधू उस के घर नाशते पर आने वाली थी। उस से बड़ कर खुशी की बात और क्या हो सकती थी। लेकिन एक और बात थी जो कील की तरह उस के सीने मैं चभ रही थी। अमित पटेल। । । मधू का अाशक़ गांव का रीस है बड़े बाप का बगड़ा हुआ बीटा हे सयासी लीडर हेगुण्डा है ، बदमााश है और मधू पर अाशक़ है
वह अपना मवाज़नह अमित से करने लगा। तो उसे मएोसी होती आख़र उस ने सर झटक दिया और सौ गया। सवीरे उसे जिल्द अठना था मधू के लिए पराठे बनाने थे। आलो के पराठे उस ने आज तक नहीं बनाे थे। लेकिन पराठे बनते दीखे थे। जगईर के होटल मैं वह छोटे मोटे काम करता था इसलिए खाना बनाना सीख गया था
सवीरे वह जिल्द जाग गया। रात मैं ही उस ने आलो छील रखे थे। आलो को भोनने के लिए उस से कड़ाई मैं डाल दया। और पराठे बनाने मैं लग गया। उसी दौरान वह अछी तरह तयार भी हो गया था नहा धोकर उस ने खुशबो अपने जिसम पर मली और सब से अच्चा डरीस पहना। वह आज दलीर महदी की से कम दखाई नहीं दीना चाहये।
आलो के पराठे चाे अचारचटनी पापड़ नाशते मैं पता नहीं उस ने क्या क्या चीज़ीं तयार करीं । अब सिर्फ़ मधू की आमद का इन्तज़ार था वह ग्लेरी मैं खड़ा हो कर मधू का इन्तज़ार करने लगा। मधू वक़्त से पहले आ गई। उस ने मधू को ओपर आने का इशारा क्या तो वह ओपर आ गई। उस ने मधू के सामने एक बड़ी सी रकाबी मैं सारा नाशतह परोस दया।
वा। । । इतने पराठे। । । इतने पराठे तो मैं तीन दनों तक ख सकती हूं । ‘‘
तीन दनों के लिए नहीं यह सिर्फ़ आज के लिए है ‘‘ उस ने मधू से कहा तो मधू मज़े लेकर आलो के पराठे खाने लगई।
मधू पराठे खाती जाती और उन की लज़त और बनाने वाली की तारीफ़ करती जाती। वह अपने बनाे आलो के पराठों की तारीफ़ सुन कर खुशी से फोला नहीं समा रहा था मधू ने सिर्फ़ दो पराठे खाे और चार पराठे अपने टफ़न मैं डाल दिए।
ठीक है अपनी सहीलयों को उसली पंजाब के यह पराठे खलां गई और उन से कहूं गई यह एक उसली पनजाबी ने बनाे हैं । ‘‘
उसी दौरान बस आ गई तो मधू जिल्द य से अतर कर बस मैं जा बैठी। जाते हुए वह उस से कह गई। । । जिम्मी जी। । । आज आप ने पंजाब के पराठे नाशतह मैं खलाे। कल मैं आप को नाशते मैं गुजरात का खमन खलां गई। नाशतह मत बनाे गा मैं नाशतह ले कर आं गई। ‘‘
वह उस तसोर से झोम उठा के कल भी मधू उस के घर आए गई। आज का दिन उस की जिन्दगई का यादगार दिन था उसे इतनी खुशी मल थी कि वह उस खुशी का तसोर भी नहीं कर सकता था उस का प्यार उस की मधू उस के घर आई थी। उस बड़ कर खुशी उस से और क्या हो सकती है कहा तो वह सोचता था कि वह तो कभी मधू से बात भी नहीं कर पायेगा। सिर्फ़ दूर से ज़ादगई भर देखता रहेगा। और सिर्फ़ दो दनों मैं फ़ासले इतने समट गए है कि वह तो उन के बारे मैं सोच भी नहीं सकता था उसे लगा अब मनज़ल दूर नहीं । उस ने मधू के सामने अपने प्यार का इज़हार नहीं क्या है लेकिन अब प्यार का इज़हार कोई मुश्किल काम नहीं है अब वह तनहाई से मधू के सामने अपने प्यार का इज़हार कर सकता है इज़हार के की ज़राा है
अब वह मधू से बन झजक खल कर बात कर सकता है उसके पास मधू का टीली फ़ोन नमबर है मधू के पास उस का टीली फ़ोन नमबर है उसे मधू के कालेज का नाम और पता भी मालूम है वह चाहे तो मधू से उस के कालेज मैं भी जा कर मल सकता है और कल तो मधू उस के घर दोबारा आ रही है उस के लिए नाशतह ले कर। वह खुशी से झोम रहा था लेकिन एक चहरह जो बार बार उस की आँखों के सामने घोम जाता था अमित पटेल का चहरह। अमित पटेल का चहरह अपनी आँखों के सामने देख कर वह सहम जाता था और आँखों के सामने अनधीरा सा छा ने लगता था ओ उस अनधीरे मैं उसे मधू की सूरत डोबती महसूस होती थी।
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M.Mubin
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