M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 11

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 11

सुबह के साथ बनद का आग़ाज़ हुआ था बनद बड़ी अजीब ढनग का था उस ने पहली बार उस तरह का बनद देखा था कारोबार तो सब बनद था लेकिन गांव का हर फ़र्द सड़क पर था सड़कों पर जगह जगह सीनकड़ों की तादाद मैं मैं लोग मजमा की शक्ल मैं खड़े थे। या बैठे थे। उस दिन की अख़बारात की सरख़यां पहार कर सनाई जा रही थीं । नीता क़िस्म के लोग फ़रक़ह परसती के ज़हर मैं अलझी तक़रीरीं कर रहे थे। टीली फ़ोन और मोबाल पर दूसरे शहरों से ख़बरीं मोसोल हो रही थी। टी वी पर उस बनद की ख़बरीं बताई जा रही थी। बार बार जलती टरीन के डबे जली हुई लाशीं ، मरने वालों के रिश्ता दारों के अशतााल अनगईज़ बीनात लीडरों के ज़हरीले अशतााल अनगईज़ तबसरे और जगह जगह बनद के उसरात का लायो टीली कासट। । । हाथों मैं ननगई तलवारीं । तरशोलमाथे पर भगवा कपड़ा बानधे अशतााल अनगईज़ नारे लगाते सड़कों से गज़रने वाली जलोस की तक़रीरीं ।
अचानक जलोस की नज़र सड़क के कनारे बने एक कीबन पर पड़ती है जिस पर लखा है फ़ीरोज़ अलीकटरक वरकस। जलोस उस पर टोट पड़ता है कीबन अलट दिया जाता है कीबन के चीज़ों को पीरों से कचला जाता है तोड़ा जाता है सड़क के वसत मैं आ कर उसे आग लगा दी जाती है
एक आटो रिकशा पर ज़ा मन फ़जल रबी लखा है उसे बीच सड़क पर अलट दिया जाता है उस पर पीटरोल छड़क कर उस पर आग लगा दी जाती है
एक गज़रती हुई जीप को रोका जाता है उस पर ۷۸۶ लखा है उस के डरायोर को जीप के नीचे अतार अ जाता है और पुर मजमा उस पर टोट पड़ता है वह अपने आप को बचाने की कोशिश करता है कुछ लोग जीप को अलट दीते हैं । और उस पर पीटरोल छड़क कर उस मैं आग लगा दीते हैं । जीप के ज़ख़मी डरायोर को उस जलती हुई जीप मैं डाल दिया जाता है
सीनकड़ों लोगों का टोलह बनद दोकानों के नाम देख देख कर अनीं तोड़ते फोड़ते हैं । उन का सामान लोटते हैं और सामान को सड़क के वसत मैं ला कर आग लगा दीते हैं । दोकानों पर पीटरोल छड़क कर उन पर आग लगाई जा रही है
यह तमाम मनाज़र टी वी पर दखाे जा है थे। ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उन का काम मनाज़र को दखा कर एक तरह से इशारा दिया जा रहा है और लोग उस इशारे को समझ रहे थे। और फिर हर जगह उसी तरह के वाक़ाात दहराे जाने लगए। चोक पर जमा लोगों की भीड़ ने एक अशतााल अनगईज़ फ़लक शगाफ़ नारह लगाया।
हर हर महा दयो
जे बजरंग बली
जी शरी राम ‘‘
ओर दूसरे ही लमहह पुर मजमा चोक की दोकानों पर टोट पड़ा। कुछ लोग छोटी छोटी दोकानों पर टोट पडे तो बाक़ी बड़े मजमा ने सीफ़ होटल और अक़सी कमपयोटर अनसटी टयोट को नशानह बनाया। लोहे की सलाख़ों से सील सीफ़ होटल के शटरों को तोड़ा गया। और उन ही लोहे की सलाख़ों से होटल का सामान तोड़ा फोड़ा जाने ला। लकड़यों के सामान को सड़क के दरमयान ला कर आग लगाई जाने लगई। होटल मैं तील छड़क कर उसे आग लगादी गई। कुछ क़ीमती सामान लटीरों के हाथ लग गया वह उसे लोट कर अपने अपने घरों की तरफ़ ले जाने लगए। वह दुकान से जैसे ही चोक की तरफ़ आया था उस ने सब से पहले यह मनाज़र दीखे थे।
सीफ़ होटल तो जाल रही थी। अब अक़सी कमपयोटरस को तोड़ने की कोशिश की जा रही थी। उस के दिल मैं आया के वह आगे बड़ कर मजमा को ऐसा करने से रोके लेकिन हज़ारों अफ़राद पर मशतुमल मजमा को वह अकीला कैसे रोक सकता था
लोहे की सलाख़ों से शटर तोड़ दिए गए। थे। अब उन सलाख़ों से अन्दर के कानच और फ़रनीचर को तोड़ा जा रहा था कमपयोटर के मानीटर और सी पी यो सरों पर उठा कर ज़मीन पर पटख़ा जा रहा था और अनीं पीरों तले रोनदह जा रहा था लोहे की सलाख़ों से उन पर जरब लगा कर उन के टुकड़े किए जा रहे थे। एक। । । दो। । । तीन। । । चार। । । दस। । । बीस। । । पचीस। । । सारे कमपयोटर स तबाह कर दे गए थे। सारा सामान नीसत व नाबोद क्या जा चका था जावेद के आफ़स को तहस नहस क्या जा रहा था सामान जमा कर के सड़क के वसत मैं ले जएा जा रहा था और उन पर पीटरोल तील अनडील कर उस मैं आग लगाई जा रही थी। फिर पूरे कमपयोटर अनसटी टयोट के सामान पर तील छड़क कर उस मैं आग लगा दी गई।
अक़सी अनसटी टयोट जाल रहा था वह अनसटी टयोट जो अलम का घर था जहां गांव के बच्चे कमपयोटर का अलम सीखते थे। जो सारी दुनिया मैं बसे गांव के लोगों से राबतह का एक मर्कज़ था जहां अनटरनीट के ज़रयाे एमील और चीटनग के ज़रयाे लोग ग़ीर ममालक मैं आबाद अपने रिश्ता दारों अज़ीज़ों से पल भर मैं राबतह क़ाम कर के ख़यालात का तबादलह करते थे। उसी राबतह के मर्कज़ को जला कर ख़ाक कर दिया गया था कोई भी रोकने वाला नहीं था
दो तीन दनों तक पुर गांव पोलीस की छानी बन हुआ था लेकिन उस वक़्त कोई भी कानून का रखवाला सड़क पर दखाई नहीं दे रहा था जो मजमा को ऐसा करने से रोके। चोक की मसलमानों की छोटी बड़ी दोकानों को चन चन कर नशानह बनाया गया और अनीं नीसत व नाबोद कर के जला कर ख़ाक कर के मजमा अशतााल अनगईज़ नारे लगाता आगे बड़ा। उस का रख़ मसलमानों के मोहल्ले की तरफ़ था रासतह मैं जो भी मुसलमान दखाई दीता मजमा नारे लगाता उसपर टोट पड़ता। उसे तलवारों और तरशोल से छीद कर एक लमहे मैं ही लाश मैं तबदील कर दिया जाता था रासतह मैं जो अका दका मुसलमान के मकानात मलते मजमा उस पर पड़ता। दरवाज़े तोड़ कर उन के मकीनों को बाहर नकाला जाता और अनीं तरशोलों की नोक पर ले लिया जाता अोरतों लड़क्यों पर की वहशी टोट पड़ते। मासोम छोटे बच्चों को फुटबाल की तरह हुआ मैं अछाला जाता घरों को आग लगा दी जाती। और फिर उस आग मैं तरशोल से छलनी जिसमों को झोनक दिया जाता मासोम बच्चों को तरशोल की नोक पर रोक कर अनीं आग मैं अछाला दिया जाता था मजमा जैसे जैसे आगे बड़ रहा था अपने पीछे आग ख़ोन लाशों को छोड़ता आगे बड़ रहा था
मसलमानों के मोहल्ले के पास पहूंच कर मजमा रुक गया। नकड़ पर सौ के क़रीब मुसलमान हाथों मैं लाठयां लिए खड़े थे। उन के मदमक़ाबल ۲ हज़ार से ज़ाद का मजमा था उस को देख कर ही सब के हाथ पीर फूल गए। लेकिन सामना तो करना था दोनों तरफ़ से पथरा शुरू हो गया। सामने से चालीस पचास पत्थर आए तो इधर से सौ दो सौ पत्थर उन की तरफ़ बड़े। पथरा मैं की लोग ज़ख़मी हो कर मैदान छोड़ गए। बाक़ी पर मजमा उस तरह टोटा जैसे गध किसी लाश पर टोटते हैं । दो बदो मक़ाबले का नज़ारह ही नहीं था एक एक आदमी को बीस बीस पचीस पचीस आदमयों ने घीर रखा था और उस परचारों तरफ़ से लाठयां ، तलवारों और तरशोलों से हमलह हो रहा था थोड़ी देर मैं उस की लाश ज़मीन पर गरी तो उस के मरदह जिसम मैं तरशोलों और तलवारों को गाड़ कर फ़तह का जशन मनएा जाता थोड़ी देर बाद कोई भी मक़ाबलह करने वाला नकड़ पर नहीं बच्चा था तमाम मक़ाबलह करने वालों की या तो लाशीं वहां पडे थीं या फिर ज़ख़मी हो कर वह जा बच्चा कर भग गए थे।
अब मजमा पूरे मोहल्ले पर टोट पड़ा था एक एक घर पर सौ सौ से ज़ाद अफ़राद टोटो पड़े। दरवाज़े तोड़े जाते। मकान के मकीनों को मकान से बाहर खीनच नकाला जाता उन को तरशोलों से छलनी कर दिया जाता बच्चों को तरशोलों पर अछाला जाता अोरतों और लड़क्यों पर भोके भीड़ये की तरह टोट पड़ते।
चारों तरफ़ शोरशीतानी नारों की गोनज अोरतों की चीख़ व पकार बचों के रोने की आवाज़ ، मरने वालों की आख़री चीख़ीं गोनज रही थी। जो दरवाज़े नहीं टोट पाते। उन मकानों पर तील छड़क कर अनीं आग लगादी जाती। जवान अोरतों और बच्चों को सरे आम ननगा कर के उन से ज़ना क्या जाता मजमा वहशी बना। उस मन्ज़र से लतफ़ अनदोज़ हो कर शीतानी क़हक़हे लगाता। हामलह अोरतों के पीटों को चाक कर के उन से नौ ज़ाईदह बच्चों को नकाल कर आग मैं झोनक दिया जाता
सब घर कर रह गए थे। उन से बचना महाल था घरों मैं आग लगाई जा रही थी। जलते घरों मैं लोग जिन्दा जाल रहे थे। घट कर मर रहे थे। जो गोल जान बचाने के लिए जलते घरों से बाहर आने की कोशिश करते अनीं तरशोल की नोक से जलते घरों मैं वापिस धकीला जाता अजीब मन्ज़र था ऐसा मन्ज़र तो फिल्मों मैं भी आज तक दखाया नहीं गया था हलाको और चनगईज़ पर बनाई फिल्मों मैं भी उस तरह के मनाज़र दखाने की जरत दुनिया के किसी फ़लम डारीकटर ने नहीं की थी।
वह मनाज़र अपनी आँखों से पुर मजमा देख रहा था लेकिन किसी का दिल नहीं पघल रहा था नह किसी के चहरे पर अपने उन घनाने कामों की वजह से मज़मत की परछाई लहरा रही थीं । वहशत का ननगा नाच नाच कर वह एक रोहानी मसरत हाशिल कर रहे थे। जीसा अनीं अबादत कर के एक अज़ली सकोन मल रहा हो। उन के चहरों पर वहशयानह फ़ातह जजबा रक़स कर रहा था आधा मजमा घरों को जलाने और लोगों को लाशों मैं तबदील करने मैं मसरोफ़ था तो बाक़ी आधे मजमा ने मसजद पर धओा बोल दया।
मसजद के पेश अमाम और मोज़न की लाशीं बस से पहले गरीं और उन के खून से मसजद का फ़र्श सीराब होने लगा। उस के मसजद को तबाह क्या जाने लगा मसजद के नक़्शा व नगार तो मसख़ क्या जाने लगा। मसजद की एनट से एनट बजा दी गई। और उस के ममबर पर हनोमान जी की मोरती रख दी गई। किसी ने एक घनटा ला कर टोटी हुई मसजद मैं बानध दया। ज़ोर वर से घनटा बजएा जाने ला। और हनोमान चालीसा पड़ा जाने लगा और आरती गाई जाने लगई। और हनोमान की पोजा की जाने लगई।
उस के बाद एक हसह पीर बाबा की दरगाह की तरफ़ बड़ा। दरगाह वीरान थी। जो कोई भी दरगाह पर रहता था वह वहां से भग गया था मजमा ने अपने हाथों मैं पकड़े बीलचों कदालों से दरगाह को मसमार करना शुरू कर दिया जिस किसी मकान को मसमार क्या जाता है देखते ही देखते दरगाह मसमार कर दी गई। दरगाह मसमार कर के ज़मीन बन दी गई। जैसे वहां कभी दरगाह का नाम व निशान न रहा हो।
वह अपनी आँखों से यह हीबत नाक मनाज़र देख रहा था वह मजमा के साथ साथ था लेकिन एक तमाशाई की तरह। की मनाज़र तो एसे भी आए के उस की आँखों मैं उन मनाज़र को देखने की ताब न रही। उस ने अपनी आँखों बनद कर लीं या फिर वह वहां से वापिस जाने लगा। लेकिन मजमा मैं शामिल लोगों ने उसे रोक लिया
सरदार जी। । । इतनी जलदी घबरा गए। सख तो शीर होते हैं । अपने नामों के आगे शीर का नाम लगाते हैं । लेकिन तुम तो गईडर साबत हुए। हम जो कर रहे हैं तुम उसे देख नहीं पा रहे हो। । । ‘‘
अरे हम घास पता खाने वाली जनों ने कभी मास अपनी आँखों से नहीं देखा यह सब देख रहे हैं । और तुम तो अपनी करपान से एक झटके से बकरे का सर अलग करते हो। तुम नहीं यह सब देख पा रहे हो ‘‘
अन के अलओह की तरह के रकीक ताने। और कोई मौक़े होता तो वह गुस्से मैं अपनी करपान नकाल कर उन पर टोट पड़ता। लेकिन उस ने जबत से काम लिया यह मौक़े ऐसा नहीं था क जज़बात से काम लिया जाए। अगर उस ने जज़बात से काम लिया तो उस का अनजाम भी वही होने वाला था जो अब तक सीनकड़ों लोगों का हो चका था लेकिन कहां तक भागता। चारों तरफ़ वहशी फीले हुए थे। उस तरह की की शीतानी टोलयां शीतान को खुश करने के लिए शीतानी कामों मैं मसरोफ़ थी। हर टोली मर काट कर रही थी। लाशीं गरा रही थी। घरों को जला रही थी। लोट मर कर रही थी। आग मैं लाशीं गरा रही थी। घरों को जला रही थी। लोट मर कर रही थी। आग मैं लोगों को जिन्दा जला रही थी। अोरतों की उसमत दरी कर रही थीं । बोड़यों को ननगा कर के बे इज़्ज़त क्या जा रहा था
सारा गांव वहशी हो गया था वहशत का ननगा नाच नाचने वालों मैं अगर सारा गांव शामिल नहीं था तो सारा गांव तमाशाई तो बन हुआ था गांव के किसी भी फ़र्द मैं हिम्मत नहीं थी कि उन वहशयों को ऐसा करने से रोके। न किसी के दिल मैं ऐसा जजबा पीदा हो रहा था कि यह अनसानीत सोज़ वाक़ाात के सलसले को खतुम करने के लिए अड़ जाए।
सड़कों पर जगह जगह मसख़ शदह ज़ख़मी ख़ोरदह लाशीं पडे हुई थीं । जलते घरों से गोशत के जलने की बदबो आथ रही थी जो उस बात की सबोत था कि उस आग मैं अनसानी जिसम जाल रहे हैं । जब वह लाशों को ग़ोर से देखता तो उसे वह चहरे शनासा से लगते।
अरे यह लड़का तो रिकशा चलाता था । । यह तो सड़क डरायोर है अकसर गरीस या आल लीने के लिए मेरी दुकान पर आता था । । अरे यह तो उस दुकान का मालिक है । । अरे यह लड़का रोज़ानह मेरे सामने स्कूलजाता था । । उस बोड़े को अकसर मैं ने पीर बाबा के मज़ार पर बैठा हुआ देखा हूं । । । यह बोड़ी औरत तो गलयों मैं जामन और दूसरे दूसरे फल बीची करती थी। । । यह औरत तो पागल है पागलों की तरह सारे गांव मैं घोमती रहती थी।
जले हुए घर और दोकानीं भी अपनी कहानयां कहते थे। उस दुकान पर ताज़ह दोध मिलता था । । यह दुकान कराने की दुकान थी। । । यह उसटीशनरी की दुकान थी। । । यहां यह स्कूलकी कताबीं और कापयां मलती थी। । । उस चाे की होटल की चाे बड़ी मशहोर थी। । । लोग उस होटल की चाे पीने दूर दूर से आते थे।
लाशों और जले हुए घरों और दोकानों को देखते हुए उस पर एक बड़ी ही अजीब सी बे चैनी और वहशत छाई हुई थी। वह सिर्फ़ एक फ़र्द के बारे मैं जानना चाहता था जावेद। । । जावेद कहां है वह उस के बारे मैं जानना चाहता था उस वहशयानह तानडो मैं उसे जावेद कहीं दखाई नहीं दिया था क्या वह किसी जलते हुए घर मैं जाल कर खतुम हो गया या फिर किसी तरह अपनी जान बच्चा कर उस गांव से नकल भागने मैं कामयाब हो गया। लोगों की बातों से तो पता चाल रहा था बहुत कम लोग अपनी जानीं बच्चा कर भग पाे हैं ।
एक जीप का क़सह हर किसी की ज़बान पर था एक आदमी अपनी जीप मैं अपने पूरे खानदान को ले कर गांव से फ़रार होने मैं कामयाब हो गया। लेकिन दूसरे गांव क सरहद पर धर लिया गया। और वहां फिर भी वहशत का ननगा नाच नाचने वाली वहशयों ने उस के सारे खानदान को खतुम कर के जीप मैं आग लगा दी उसे ज़नद जला दया।
अगर जावेद किसी तरह गांव से फ़रार होने मैं कामयाब भी हुआ तो वह वहशयों से कहां कहां बच सके पायेगा। चारों तरफ़ तो वहशी फीले हुए थे। लेकिन उस की यह तमाम अमीदीं धरी की धरी रह गई। उसे सड़क के दरमयान एक लाश दखाई दीं । जो मुंह के बल पडे थी। उसे उस लाश के कपड़े कुछ शनासा से महसूस हुए उस ने जैसे ही उस लाश को सीधा क्या उस के मुंह से एक फ़लक शगाफ़ चीख़ नकल गई। जावेद भाई यह जावेद की लाश थी। उस का सारा जिसम तरशोलों से छलनी था और पूरे जिसम पर तलवार के घा थे। चहर पर करब के तासरात जैसे मरने से पहले उस ने कड़ा मक़ाबलह क्या हो और कड़ी अज़ीत सही हो। जिस के लिए वह अपनी दुकान से नकल कर उन वहशयों के साथ तमाशाई बन उन की वहशत का तमाशह देख रहा था उस आदमी की लाश उस के सामने थी। वह लाश के पास बैठ कर फोट फोट कर रोने लगा। आते जाते लोग उसे रोता देख कर खड़े हो जाते और कभी हैरत से लाश को तो कभी उस को देखने लगते।
पता नहीं कतनी देर तक वह जावेद की लाश के पास बैठा आनसो बहाता रहा। फिर आथ कर बोझल क़दमों से चप चाप अपनी दुकान की तरफ़ चाल दया।

Contact:-M.Mubin303- Classic Plaza, Teen BattiBHIWANDI- 421 302Dist. Thane ( Maharashtra)Mob:-09322338918Email:- mmubin123@gmail.com

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