M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 9

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 9

कभी कभी सुबह की पहली करन अपने साथ मनहोस वाक़ाात की मनादी ले कर आती हैं । उस दिन वह जलदी जागा लेकिन उसे माहोल कुछ बोझल बोझल सा लग रहा था उसे चारों तरफ़ वहशत सी छाती महसूस हो रही थी। मामोल के मताबक़ मधू आई। उस से कुछ देर उस ने बातीं कीं । और बस मैं बैठ कर चली गई। लेकिन उसे मधू के मिलने से कोई मसरत नहीं हुई। एक अजीब सी अदासी मैं उस ने खुद को लपटा हुआ महसूस क्या। ज़हन पर एक बोझ सा था बोझ तो दो दनों से उस के ज़हन पर था उस ने दो टोक अमित से कह दिया था वह मधू से प्यार करता है और करता रहेगा। वह उसे धमकी दे कर गया था उस से पहले मधू अमित को दो टोक कह चकी थी।
दो दनों तक अमित ने कुछ नहीं क्या था दिल मैं एक दहशत सी लगई थी। हर लमहह डर लगा रहता था कि अमित कोई अनतक़ा कारवाई करेगा। लेकिन अमित की तरफ़ से कोई कारवाई नहीं हुई थी। लेकिन उस बात परोह खुश फ़हमी मैं मबतला नहीं हो सकते थे कि अमित ने शकसत तसलीम कर ली है अब वह उन के रास्ते मैं नहीं आए गा।
ख़दशह तो दोनों को लगा हुआ था कि अमित इतनी जलदी अपनी शकसत तसलीम नहीं करेगा। उन पर कोई वार करने के लिए अपनी सारी ताक़त को यकजा कर रहा हो गा। न तो अमित उस के बाद उस के पास आया था न उस ने मधू को धमकाने की कोशिश की थी। उस के ख़ामोशी ने अनीं एक अजीब से अलझन मैं मबतला कर दिया था यह ख़ामोशी किसी तोफ़ान का पेश ख़ीमह महसूस हो रही थी। एसे मैं सुबह तो उदास वहशत नाक महसूस कर के वह डर गया। उस का दिल बार बार कहने लगा आज तो कोई बहुत ही अजीब बात होने वाली है उस के लिए कोई अजीब वहशत नाक और कोई बात क्या हो सकती थी। यही कि अमित अनतक़ामी कारवाई के तहत उन पर हमलह करेगा। यह हमलह किस रोप मैं हो सकता है अनीं उस बात का अनदाज़ह नहीं था और न वह उस सलसले मैं कोई अनदाज़ह लगा पा रहे थे।
वह दुकान मैं बैठा उस के बारे मैं सोच रहा था कि फ़ोन की घनटी बजी। जिम्मी टी वी पर नयोज़ देखी। ‘‘ दूसरी तरफ़ जावेद था
मेरे घर या दुकान मैं टी वी नहीं है ‘‘ उस ने जवाब दया।
ओहो जावेद की तशवीश आमीज़ आवाज़ सनाई दी। दहशत भरी ख़बर है ‘‘
कीसी बरी ख़बर ‘‘ जावेद की बात सुन कर उस का भी दिल धड़क उठा।
कार सयोक एोधया से वापिस आ रहे ۷۰ के क़रीब कार सयोकों को जिन्दा जला दिया गया है जिस टरीन साबरमती एकसपरीस से वह वापिस आ रहे थे। उन के डबह पर गोधरा के क़रीब हमलह कर के उन के डबों मैं आग लगा दी गई। जिस की वजह से वह डबह मैं ही जाल कर मर गए। ‘‘
ओ हो यह सुन कर उस का भी दिल धड़क उठा।
यह वाक़ाह गुजरात मैं हुआ है गुजरात जहां फ़रक़ह परसती उरूज पर है गोधरा यहां से क़रीब है टरीन आह्मद आबाद आने वाली थी। अब शाम को वह लाशों को ले कर आह्मद आबाद पहनचे गई। टी वी चैनल खुले अलफ़ाज़ मैं कह रहे हैं कि टरीन पर हमलह करने वाली और हमारे सयोकों को जिन्दा जलाने वाली मुसलमान थे। ‘‘
यह तो बहुत बरी बात है जावेद भाई। ‘‘
इतनी बरी कि उस का तसोर भी नहीं क्या जा सकता। टी वी चैनल पर बार बार जली हुई टरीन का डबह दखाया जा रहा है जली हुई लाशीं दखाई जा रही हैं । लीडरों के भड़काने वाली बयानात आ रहे हैं । उस का उसर सिर्फ़ गुजरात बलकह सारे हिन्दोस्तान पर पड़ेगा। आज या कल क्या हो गा खुद ही ख़ीर करे जावेद ने कहा।
आप क्या करीं गए
क्या करों कुछ समझ मैं नहीं आ रहा है मैं बाद मैं फ़ोन करता हूं । कह कर जावेद ने फ़ोन रख दया।
थोड़ी देर मैं जनगल की आग की तरह यह ख़बर सारे गांव मैं फील गई थी कि गोधरा मैं कार सयोकों को मसलमानों ने जिन्दा जला दया। राम भकतों पर बज़दलानह हमलह कर के अनीं जिन्दा जला दिया गया। मरने वालों मैं बच्चे भी थे और अोरतीं भी। पर कोई उस बात की मज़मत कर रहा था तो यह कुछ लोग उस ख़बर को सुन कर गुस्से मैं ओल फ़ोल बक रहे थे।
कार सयोकों पर हमलह करने वाली फ़रार हैं ‘‘
कार सयोकों का क़ातलों को बख़शा न जाए
ख़ोन का बदलह। । । ख़ोन
कार सयोक अमर हे
बदलह लिया जाए
गोधरा का बदलह लिया जाए ‘‘
पूरे गांव को गोधरा बन दिया जाए
अन के घरों और महलों को साबरमती एक परीस की बोगयां बनादी जाए
जे शरी राम ‘‘
जे बजरंग बली
क़बरसतान पहनचा दो
पाकसतान पहनचा दो
जिन्दा जलादो। । । छोड़ो नहीं । । । ‘‘
ख़ोन का बदलह। । । ख़ोन। । । आग का बदलह। । । आग ‘‘
हर किसी के मुंह बस यही बातीं थीं । दिल को दहला दीने वाले। । । नफिरत भरे नारे गांव की फ़जा मैं गोनज रहे थे। नोजवान लड़के हाथों मैं ननगई तलवारीं लिए तरशोल लिए माथे पर भगवा पटयां बानधे अशतााल अनगईज़ नारे लगाते फिर रहे थे।
तुमहारे क़ातलों को नहीं छोड़ीं गए ‘‘
एक बदले मैं दस को खतुम करीं गए
क़बरसतान बनादीं गए
जला कर राख कर दीं गए
देखते ही देखते सारे गांव का कारोबार बनद हो गया। लोग सड़कों पर आठ आठ दस दस के मजमवाह मैं जमा हो कर एक दूसरे से बातीं कर रहे थे। सब के चहरे गुस्से से तने हुए थे। उन की आँखों मैं नफिरत की आग भड़क रही थी। जो लोग शानत थे। लीडर क़िस्म के लोग अपनी ज़हरीली अशतााल अनगईज़ तक़रीरों से उन की खून को भी खोला रहे थे।
लोग टी वी से चपके थे। टी वी पर पल पल ने अनदाज़ की ख़बरीं दी जा रही थीं । हर बार एक नी ख़बर ने अनदाज़ मैं आ कर अशतााल फीलाती। बार बार टरीन के जले हुए डबों को खाया जा रहा था जली हुई लाशों को दखाया जा रहा था उस वारदात मैं जो लोग मारे गए उन के रिश्ता दारों से अनटर वयो लिया जा रहा था अनटर वयो दीने वाली अनटर वयो मैं अशतााल अनगईज़ बातीं करते। । । बदलह लीने की बातीं करतीं । । । खून का बदलह खून की बातीं । । । तबाह करने वालों को तबाह करने की बातीं । । । लीडर उन बातों को क़लाबे आसमानों से जोड़ते। उसे दहशत गरदी का वाक़ाह कहा जाता । । तो कभी फ़रक़ह परसती के ज़हर की दीन। । । कभी नफिरत की आग के अला का अनजाम। । । आर एस एस बजरंग दल वशो हनदो परीशद बी जे पी सारी तनज़ीमैं एक होगई थीं । सब एक आवाज़ मैं बात कर रहे थे। यह बस देख कर उस का कलीजह मुंह को आ रहा था वह बहुत पहले दुकान बनद कर चका था और दुकान बनद कर के गांव की सैर को नकला था गांव मैं जो मनाज़र वह अपनी आँखों से देख रहा था उसे महसूस कर रहा था दूर से एक बगोलह तेजी से गांव की तरफ़ बड़ रहा है अब उस बात का इन्तज़ार है कब वह गांव को अपनी लपीट मैं ले गा और किस तरह गांव को नीसत व नाबोद करेगा। गांव मैं मीटनगईं जा रही थीं । जलोस नकल रहे थे। जलोस के शरका नफिरत अनगईज़ अशतााल अनगईज़ फ़रक़ह परसती के ज़हर मैं नारे लगा रहे थे। अपने हाथों मैं पकड़ी तलवारीं और तरशोल को चमका रहे थे।
यह जलोस मैं अमित पेश पेश था वह ननगई तलवार हाथों मैं लिए उसे लहराता नफिरत अनगईज़ नारे लगाता लोगो को भड़का रहा था उस पर नज़र पड़ते ही वह कुछ ज्यादा ही ग़जबनाक हो जाता और अपने हाथों मैं पकड़ी तरशोल ، या तलवार को कुछ ज्यादा ही तेजी से लहराने लगता। जैसे उस से कह रहा हो। वक़्त आने पर तुम उस तलवार ، तरशोल का सब से पहला शकार होते।
उस से यह मनाज़र ज्यादा देर दीखे नहीं गए। वह वापिस घर आया। और पलनग पर लीट गया। और सोने की कोशिश करने लगा। लेकिन दिन मैं भला नीनद आ सकती थी। जब सारे गांव को एक पर होल सनाटे ने अपनी लपीट मैं ले रखा और वह रह रह कर नफिरत अनगईज़ अशतााल अनगईज़ फ़रक़ह परसती के ज़हर मैं बझे नारे उस सनाटे के सीने को चीर रहे हो।
हर नारे चीख़ शोर के साथ उस के दिल की धड़कनीं तीज़ हो जाती थीं । नफिरत की आग का अला जाल चका था यह आग अब किस को जलाे गई क्या क्या ग़जब ढाे गई बस एक ही सवाल ज़हन मैं था

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