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M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 14

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव

लेखकः-ःएम.मुबीन

Part 14 Last

कभी लगता तोफ़ान थम गया। ओ र कभी लगता यह तो आग़ाज़ था अभी उरूज बाक़ी है गांव का तोफ़ान थम भी गया तो उस से कोई फ़रक़ नहीं पड़ता रहा था चारों तरफ़ तोफ़ान उठा हुआ था आस पास के सारे गांव अलाक़े जाल रहे थे। हर जगह वही मनाज़र थे जो नोटया मैं दीखे गए थे। वही वाक़ाात दहराे जा रहे थे। जो नोटया मैं पेश आए थे।
हर गांव मैं एक अमित पटेल सा राकशस मौजूद था गांव मैं एक भी मुसलमान नहीं बच्चा था या तो वह आग मैं जाल कर मर गए थे। या उन की बे वारिस लाशीं गांव की सड़कों पर सड़ चकी थीं । या फिर वह जान बच्चा कर किसी तरह गांव से भागने मैं कामयाब हुए थे। और क़रीबी शहर के एक पनाह गज़ीं कीमप मैं कसमपरसी की जिन्दगई गज़ार रहे थे।
पूरे गांव पर एक पर होल सनाटा था हर चहरह तना हुआ था तने हुए चहरे पर न तो पशीमानी का तासरात थे और न ही फ़ातहानह जज़बात मुस्तक़्बिल के ख़ोफ़ से एक तना हर एक किसी के चहरे पर था अमित भाई पटेल जैसे लोगों के चहरों पर फ़ातहानह तासरात थे। और वह एक एक लमहह का जशन मना रहे थे। लोगों को जमा कर के तक़रीरीं करते। अपने कारनामे सनाते और उन को उन के कारनामों पर मबारकबाद दीते अालान करते।
यह अखनड भारत की राह मैं पहला क़दम है । । ‘‘
चल पडे हैं । । । अब मनज़ल दूर नहीं । । । ‘‘
आज गुजरात। । । कल दूसरी रयासत। । । ‘‘
मलक मैं एक भी। । । मलछ नहीं बच्चे गा। । । ‘‘
मुसलमान या तो क़बरसतान जाईं गए। । । या पाकसतान। । । ‘‘
अब गांव मैं धीरे धीरे ख़ाकी वरदयां दखाई दीने लगई थीं । अख़बार के रपोरटर और टी वी चैनल के कीमरह मीन आने लगए थे। लेकिन उन को जो कुछ हुआ उस की कहानी सनाने वाला कोई नहीं था वह पनाह गज़ीं कीमपों से लोगों की कहानयां सुन कर आते और उन के लिए जले घरों की मन्ज़र कशी कर के ख़बरीं बनाते।
गांव के लोगों के ज़बानों पर जैसे ताले लगए हुए थे। उन को सख़ती से हकम दिया गया था कि वह अपनी ज़बान न खोले। । । अगर किसी ने ज़बान खोली तो उस से सख़ती से पेश आया जाएगा। परीस रपोरटर लोगों से पूछते कि क्या उस गांव मैं उस तरह के वाक़ाात हुए तो जवाब मैं वह ख़ामोश रहते या कुछ घाग क़िस्म के लोग उस बात को झटलाते कहते यह गांव के शरीफ़ लोगों को बदनाम करने की साज़श है
उस का दिल चाहता कि वह कीमरे सामने जा कर खड़ा हो जाए और जो कुछ उस ने अपनी आँखों से देखाजो कुछ अपने कानों से सना जो कुछ उस गांव मैं हुआ उस का एक एक लफ़्ज़ सना दे। लेकिन वह ख़ोफ़ज़दह था उस डर था अगर उस ने सचाई बयान की ज़बान खोली तो उस का अनजाम भी जावेद सा हो गा।
चारों तरफ़ वहशी बखरे पडे थे। वह वहशयों से के दरमयान घरा हुआ था इसलिए एक कोने मैं दबके रहने मैं ही उस को अाफ़ीत महसूस हो रही थी। अब तक कोई गरफ़तारी अमल मैं नहीं आई थी। वहशी दिनदनाते सारे गांव मैं आज़ाद घोम रहे थे। उन के चहरों पर फ़ातहानह चमक थी। और आँखों मैं वहशी अरादे। शरीफ़ लोग उन को देखते तो उन के कारनामों को याद कर के सहम जाते थे। और अदब से अनीं सलाम कर के आगे बड़ जाते थे।
वह लोगों के दलों मैं डर दहशत ख़ोफ़ की अलामत बन गए थे। सयासी लीडर आते। मगर मछ के आनसो बहाते धवां धार तक़रीरीं करते। क़ातलों ، मजरमों को न बख़शने का अज़म करते और वापिस चले जाते। क़ातल मजरम वहशी उन के ख़लाफ़ नारे लगाते। वहशत दरनदगई पानदह बाद के नारे लगाते। अपने कारनामों के तारीख़ के सनहरे ओराक़ क़रार दीते। ऐसा लगता था जैसे दुनिया से अनसाफ़ ، रवादारी सचाई ख़लोस महबत आथ गई थी। बस चारों तरफ़ नफिरत ज़हर फ़रक़ह परसती छाई थी। एक अला दहका हुआ था जिस की तपश चारों तरफ़ फीली थी।
दोतीन दिन से उस ने दुकान नहीं खोली थी। रघो और राजो भी काम पर नहीं आ रहे थे। उस दिन वह आए भी तो उस ने अनीं घर भीज दया। अभी हालात ठीक नहीं हुए थे। जब हालत दोस्त हो जाईं गए तो दुकान खोलों गा। दुकान खोल कर भी कोई फ़ादह नहीं था न कोई गाहक आने वाला था न धनदह होने वाला था सारा वजोद घाम का सहरा बन हुआ था कतने घाम थे उन का शमार करना मुश्किल था गांव मैं होने वाली वाक़ाात का घाम जावेदकी मौत का ग़म। । । और अब सब से बड़ कर मधू की बरबादी का ग़म। । । अमित की दरनदगई का अहसास। । । उन बातों को या कर के कभी खून खोल अठता तो कभी वजोद पर एक बे बसी छाजाती और दिल खून के आनसो रोने लगता।
वह अफ़सरदह सा दुकान के बाहर करसी पर बैठा था उसी वक़्त सामने से अमित पटेल फ़ातहानह अनदाज़ मैं चलता हुआ आया। कहो सरदार जी कैसे हो तुम बच गए बड़ी बात है ؟ मुझ से दशमनी ले कर भी जिन्दा हो। । । वरना पूरे गांव मैं मेरा कोई भी दुश्मन जिन्दा नहीं बच्चा है ‘‘
उस ने कोई जवाब नहीं दिया सर उठा कर ख़ाली नज़रों से अमित को देखा।
ओहो। । । हां । । । शायद तुम्हें उसली बात तो मालूम ही नहीं हुई। सच मच तुम्हें उस बात का पता नहीं चला हो गा। वरना उन आँखों मैं यह ख़ाली पन नहीं होता। । । आग होती। । । मधू से बहुत प्यार करते होनामधू भी प्यार करती है तुम्हें । मधू जो मेरी है जिस पर सिर्फ़ अमित पटेल का हक़ है वह मधू तुमहारी होगई थी। और तुम पर अपना तन मन धन सब कुछ नछओर करने के लिए तयार थी। अमित पटेल को ठकरा कर। । । ‘‘
अमित रुक गया और उस के चहरे के तासरात पड़ने की कोशिश करने ला। वह ख़ाली ख़ाली नज़रों से उसे घोरे जा रहा था
लेकिन अब मधू तुमहारी नहीं रहे गई। मधू अगर इज़्ज़त दरा बाप की बीटी होगई तो तुमहारे क़रीब भी नहीं फटके गई। और मधू की उसलीत जान कर तो तुम मधू की सूरत देखना भी क़ुबूल नहीं करो गए। । । अब मधू जिन्दगई भर एक रनडी बन कर जिन्दा रहे गई। एक रनडी जिस को मैं जब चाहूं तब इस्तेमाल करों गा। ‘‘
अमित की बात सुन कर उस के कानों की रगें फड़कने लगईं ।
शायद तुम्हें मालूम नहीं है । । मधू के साथ मैं सहाग रात मना चका हूं । मधू के कनवारे पन को मैं खतुम कर चका हूं । मधू की जवानी का ज़ाक़ह सब से पहले मैं ने चखा है अब वह बासी है तुम बासी खाना खा गए। । । खा। । । अगर तुम मधू को अपना भी लो। । । तो मुझे कोई फ़रक़ नहीं पड़ेगा। । । वह मेरा बासी। । । झोटा छोड़ा हुआ खाना है जसे तुम जिन्दगई भर खाते रहोगए। । । तो सरदार जी। । । मेरा झोटा खाना पसन्द करो गए । । । कर लो मधू से शादी। । । लेकिन उस के साथ सहाग रात तो मैं मना चका हूं । । । उस के एक एक अनग से खील चका हूं । । । उस के जिसम का एक एक हसह अपनी आँखों से बरहनह देख चका हूं । । । उसे भोग चका हूं । । । आहा। । । आहा। । । आहा। । । जा मेरी झोटी छोड़ी मधू को भोगो। । । आहा। । । आहा। । । ‘‘

अमित अचानक उस के मुंह से एक चीख़ नकली कमीने मैं तुझे जिन्दा नहीं छोड़ों गा। । । तो ने मेरी मधू को बर्बाद क्या। । । मैं चप रहा। । । अब तो उसे ज़लील कर रहा है तो जिन्दगई भर उस तरह मेरी मधू को ज़लील करता रहेगा। इसलिए अब मैं तुझे जिन्दा ही नहीं छोड़ों गा। । । बोले सौ नहाल। । । कहते हुए उस ने करपान नकाली और अमित की तरफ़ लपका।
अमित उस नी सचवीशन से घबरा गया था अमित ने ख़वाब मैं भी नहीं सोचा था कि जिम्मी उस तरह का कोई क़दम उठाे गा। उस के हाथों मैं ननगई करपान थी और वह करपान लहराता हुआ उस की तरफ़ बड़ रहा था
नहीं चीख़ता हुआ वह गांव की तरफ़ भागा। अजीब मन्ज़र था अमित जान बच्चा कर कतों की तरह भग रहा था और जिम्मी उस के पीछे हाथ मैं ननगई करपान लिए दौर रया था जो भी उस मन्ज़र को देखता। ख़ोफ़ज़दह हो कर एक तरफ़ हट जाता और दोनों को रासतह दे दीता। जैसे ही अमित उस के क़रीब आता वह अपनी करपान से उस पर वार करता। अमित चीख़ कर गरता। लेकिन अ से पहले कि वह उस पर दूसरा वार करे अमित पोरी ताक़त यकजा कर के आथ खड़े होता और भग जाता जिम्मी फिर उस के पीछे ननगई करपान ले कर दोड़ता।
जहां मौक़े मिलता वह करपान से अमित के जिसम पर वार करता। अमित सर से पीर तक खून मैं डोबा हुआ था लोगों ने उस से भी होलनाक मनाज़र दीखे थे। लेकिन ऐसा मन्ज़र नहीं देखा था कल का योधा बे बस बे यारों मददगार अपनी जान बचाने के लिए भग रहा था कल तक जो लोगों की मौत का बन हुआ था आज मौत उस का तााक़ब कर रही थी। किसी मैं इतनी हिम्मत नहीं थी कि वह जिम्मी को रोके।
जिम्मी अपनी करपान से अमित पर वार किए जा रहा था आख़र ज़ख़मों की ताब न ला कर अमित ज़मीन पर गर पड़ा। खून मैं लत पत अमित आख़री बार तड़पा और फिर साकत हो गया। नढाल हो कर जिम्मी करपान का सहारा ले कर ज़मीन पर बैठ गया। और फोट फोट कर रोने लगा।
लोग उस के सीनकड़ों मीटर दूर दायरे की शक्ल मैं खड़े उसे ख़ोफ़ से देख रहे थे। किसी मैं उस के क़रीब आने की हिम्मत नहीं थी।
वह मुसलसल रो रहा था । । । । । । । । !!

--------------------------The End-------------------------------

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