M.Mubin's Hindi Novel on Background of Gujrat Riot Part 2

गुजरात दंगो की पृष्ट भूमि पर एक रोमान्टिक उपन्यास
अलाव
लेखकः-ःएम.मुबीन
उस दिन सवीरे जलदी आंख खल गई। चाय बजे के क़रीब। चाय बजे वह बरश करने के लिए अपने मकान की ग्लेरी मैं आ कर खड़ा हो गया उसे मधू का इन्तज़ार था बरश करने के बाद उस ने मुंह हाथ धवे साड़े चाय बज गए थे लेकिन मधू नहीं आई तो उसे बे चैनी महसूस होने लगई। अब तक तो मधू को आ जाना चाहये था साड़े चाय बजे तक वह बस स्टाप पर आ जाती है उस ने चाे भी नहीं पी। ग्लेरी मैं खड़ा मधू का इन्तज़ार करता रहा। उसे डर था अगर वह अन्दर चाे बनाने मैं लग गया तो मधू भी आ जाएगईऔर उस की बस और उस से पहले कि वह मधू की एक झलक दीखे मधू बस मैं सवार हो कर कालेज चाल दे गई। इसलिए उन से चाे नाशतह का ख़याल दिल से नकाल दिया था ग्लेरी मैं खड़ा मधू का इन्तज़ार करता रहा।
जिस बस से मधू कालेज जाती थी वह आई चली गई। लेकिन मधू नहीं आई। उस का दिल डोबने लगा। उस का मतलब है आज मधू कालेज नहीं जाए गई। क्यों कालेज नहीं जाएगईवह तो कभी कालेज जाने का नाग़ह नहीं करती है आ ज कालेज नहीं जाएगईतो जरोर उस की कोई वजह होगई। वह वजह क्या हो सकती हे
सोच कर भी उस वजह को वह तलाश नहीं करपा रहा था बीमार हेघर मैं महमान आए हैं या कालेज पड़ाई से उस का दिल अकता गया हे। जैसे की सवालात उस के ज़हन मैं चकरा रहे थे। साड़े सात बजे के क़रीब मायूस हो कर वह अन्दर आगया। अब मधू के आने की कोई अमीद नहीं थी। वह चाे बनाने लगा। उसे पता नहीं था दस पनदरह मिन्त मैं रघो और राजो आ जाईं गए तो न उसे चाे पीने मले गई और न हलकह सा नाशतह करने। दुकानदारी मैं लगने के बाद नाशतह और खाने क फ़रसत कहां मल पाती है नाशतह से वह फ़ारग़ ही नहीं हुआ था कि रघो ने आवाज़ दी। उस ने दुकान की चाबयां उसे दे कर दुकान खोलने के लिए कहा। उस के बाद नहा धो कर आधे घण्टे बाद नीचे उतरा तो दुकानदारी शुरू होगई थी। रघो और राजो गाहकों से नपट रहे थे।
सत शरी अकाल सरदार जी। अचानक शनासा आवाज़ सुन कर वह चौंक पड़ा।
अरे जावेद भाई आप ‘‘ वह हैरत से जावेद को देखने लगा जिस ने उसे आवाज़ दी थी। । । क्या बात है आज आप अनसटी टयोट नहीं गए
अनसटी टयोट की छटी है जिम्मी। ‘‘
छटी ؟ किस खुशी मैं । । । ‘‘
अरे आज अीद मीलाद अलनबी है हजरत महमद की पीदाश। आज के दिन सारे गांव के मुसलमान अपना कारोबार बनद रखते हैं । और धोम धाम से जशन अीद मीला अलनबी मनाते हैं । मजलस मनाक़द होती हैं ، जलोस नकाला जाता है पीर बाबा के मज़ार के पास खाना बनाया जाता है जिस के लिए सारे गांव को आम दावत होती है उस दावत मैं न सिर्फ़ उस गांव के बलकह आस पास के गांव के मुसलमान और ग़ीर मसलम भी शरीक होते हैं । हजरत महमद की सैरत पर रोशनी डालने वाली जलोस का अनाक़ाद होता है सारा गांव रोशनयों से सजएा जाता है तुमहारी उस गांव मैं पहली जशन अीद मीला अलनबी है ना इसलिए तुम्हें उस का अलम नहीं है अनसटी टयोट तो बनद है सोचा गाड़ी की सरोस कर लों और तुम्हें जशन का नज़ारह दखां । ‘‘
अछा आज अीद मीला अलनबी है उस के बारे मैं मैं ने सिर्फ़ सुन रखा है पंजाब के गांव मैं तो उस का पता ही नहीं चलता। अब पंजाब के दीहातों मैं मुसलमान कहां हैं । मैं ने अपने बज़रगों से सुन रखा है तक़सीम से क़बल जब मुसलमान ख़ातर ख़वाह तादाद मैं पंजाब के दीहातों मैं आबाद थे। उस वक़्त उस दिन सारे पंजाब के दीहातों मैं जशन का समां होता था ‘‘ उस ने कहा। साथ ही साथ उस के ज़हन मैं घनटयां भी बजने लगई। आज अीद मीलाद अलबनी की कालेज मैं छटी होगई उस वजह से मधू कालेज नहीं गई और वह सवीरे से उस की राह देखता रहा।
जावेद भाई चाे मनगवां उस ने जावेद से पोछा।
सरदार जी। । । चाे छोड़ये। । । मेरे साथ चलिए आज मैं आप को अपने घर ले जा कर नाशतह कराता हूं अीद मीलाद अलनबी के सलसले मैं घरों मैं नयाज़ की जाती है मेरे घर की तरह के पकवान बने हैं । जावेद ने जवाब दया।
चलिए। । । गाड़ी को छोड़ दीजये। जब तक हम वापिस आईं गए गाड़ी बन कर तयार हो जाए गई। ‘‘ उस ने कहा। और दोनों गांव की तरफ़ चाल दिए।
सच मच सारे गांव मैं जशन का समां था गांव के दरमयानी चोराहे से मसलमानों का महलह बहुत दूर था लेकिन चोराहे पर जो मसलमानों की दोकानीं थीं वह बनद थीं । लेकिन सजी हुई थीं उन पर रोशनयां थी जो दिन मैं भी जाल रही थी। हरे झनडे लगए थे। जिन पर उर्दू और गुजराती मैं जशन अीद मीलाद अलबनी लखा था सबज़ रंग के फलवारे पूरे चोक मैं लगए थे।
अब जगह जगह से लाड उसपीकर की आवाज़ीं भी सनाई दीने लगई थीं । लाड उसपीकरों पर खुश अलहान आवाज़ों मैं नात रसोल पाक पडे जा रही थीं । जगह जगह पया लगए थे। जहां पर राह गईरों मैं शरबत तक़सीम क्या जा रहा था गोल बड़े जोश व ख़रोश से क़तारों मैं खड़े हो कर शरबत पी रहे थे।
ठोड़ी देर बाद एक बड़ा जलोस दखाई दया। यह अीद मीलाद अलनबी का जलोस था उस जलोस मैं गांव के तमाम छोटे बड़े मुसलमान मर्द शरीक थे। बच्चे अपने हाथों मैं छोटी छोटी हरी झनडयां थामे हुए थे। कुछ लोगो ने हाथों मैं बड़े बड़े जशन अीद मीला अलनबी के झनडे और बीनर उठा रखे थे। एक दो जगह जलोस के साथ मीलाद पडे जा रही थी।
जलोस की अगली सफ़ के बच्चे जोश और खुशी मैं नारे लगा रहे थे।
नार तकबीर ‘‘
अललह अकबर
नबी का दामन ‘‘
नहीं छोड़ीं गए
ग़ोस का दामन ‘‘
नहीं छोड़ीं गए
बचों और लोगों ने हाथों मैं खुशबोदार छोटी बड़ी अगर बतयां पकड़ रखी थीं जिस की वजह से सारा माहोल महका हुआ था लोग अपने मकानों की खड़क्यों ، दरवाज़ों ग्लेरी मैं खड़े हो कर उस जलोस को देख रहे थे।
दो पहर तक यह जलोस सारे गांव मैं घोमता रहेगा। दोपहर मैं यह जलोस पीर बाबा की दरगाह पर पहनचे गा जहां पर खाना पका हो गा और सारे गांव वाली वहां दोपहर का खाना खाते के लिए जाईं गए। जावेद बताने लगा। वह लोग भी जलोस मैं शरीक हो गए थे।
क्या उस खाने मैं सारा गांव शरीक होता हे
हमारे बच्चे नहीं सारा गांव शरीक होता था लेकिन गज़शतह चंद सालों से अब वह बात नहीं रही। अब सिर्फ़ चंद लोग ही शरीक हो पाते हैं । जावेद ने जवाब दया।
जलोस मसलम मोहल्ले से गज़रने लगा तो वह मोहल्ले की बह राश देख कर दिनग रह गया। उस ने उस तरह की सजओट पंजाब मैं सिर्फ़ चंद मख़सोस मौको पर देखी थी।
गांव मैं पचास साथ मसलम घर हूं गए। वह तमाम एक मोहल्ले मैं ही थे। मसलमानों की आबादी पाँच चाय से के क़रीब होगई। लेकिन गांव पर मसलमानों का दबदबह था उस तोर पर था कि गांव के तमाम अहम कारोबार मैं मुसलमान शरीक थे। जावेद के अनसटी टयोट को ही लिया जाए तो वह गांव की रीड़ की हडी का मक़ाम रखता था जहां से अलम हनर की रोशनी फोटती थी। मसलमानों के खीत भी थे। तील की घानयां भी थीं । छोटे मोटे कारोबार भी थे। ग़रीब मुसलमान भी थे। जो खीतों मैं मज़दोरी करते थे या फिर दोकानों कारोबारों मैं काम करते थे।
कछ घर मैं बहुत ज्यादा आसोदगई थी तो कुछ घरों मैं अनतहा ग़रीबी। एक मसजद भी जिस मैं पाँच वक़्त की नमाज़ पडे जाती थी। उस मैं एक मदरसह था जिस मैं बच्चों को दीन की तालीम दी जाती थी। एक स्कूल था जहां बच्चे तालीम हाशिल करते थे। लेकिन उस स्कूलमैं सिर्फ़ परामरी दरजे की ही तालीम दी जाती थी। हाई स्कूलकी तालीम उस स्कूल से फ़ारग़ हो कर बच्चे गांव के हाई स्कूलमैं ही हाशिल करते थे। तालीम के माामले मैं गांव मैं इतनी रोशन ख़याली नहीं थी।
जावेद जैसे नोजवान थे जो तालीम के मैदान मैं काफ़ी दूर तक गए थे। वरनह बच्चे अबतदाई या हाई स्कूलकी तालीम हाशिल करने के बाद म बाप के कारोबार या धनदों मैं लग कर पैसे कमाने लगते थे। पैसे एक अहम शह थी। हर किसी को पैसे धन दोलत के मायार पर ही तो ला जाता था
जावेद ने उसे अपने घर ले जा कर उसे नाशतह करएा। नाशतह मैं मीठा और तरह तरह की मठायां थीं । वह जावेद के घर वालों से मला। जावेद के घर वाली उस से मल कर बहुत खुश हुए। उन के ख़लोस और अपनाईत को देख कर उसे महसूस हुआ वह गुजरात के एक गांव नोटया मैं नहीं है पंजाब के अपने गांव मैं ही है
नाशतह कर के वह दोबारा जलोस मैं शरीक हो गए। जलोस गांव की गलयों से गज़र रहा था एक जगह वह ठटक कर रह गया। एक सह मनज़लह इमारत की ग्लेरी मैं मधू खड़ी जलोस को देख रही थी। मधू को देख उस का दिल धड़क उठा। तो यह मधू का घर है मकान पर गुजराती मैं कुछ लखा था वह पहार नहीं सका। टकटकी बानधे मधू को देखता रहा। जलोस क़रीब आया तो उस ने मधू के होनटों पर एक मसकराहट देखी। उस मसकराहट से उस के दिल की धड़कनीं तीज़ होगई। उसे लगा मधू उसे दख कर मसकरा रही है दूसरे ही लमहे ही मैं वह चौंक पड़ा। जावेद भी मधू को देख कर मसकरा रहा था जावेद ने मसकरा कर मधू को हाथ बताया तो जवाब मैं मधू ने भी हाथ हला कर जावेद को जवाब दया। वह हका बका दोनों को देखता रहा। कुछ उस की कुछ समझ मैं नहीं आया। पर एक ख़याल बजली की तरह उस के ज़हन मैं कोनदा और उस की आँखों के सामने अनधीरा सा छाने लगा।
कोन है वह ‘‘ उस ने अपने होनटों को तर कर के हलक़ से थोक को नगला और जावेद से पोछा।
मधू उस का नाम है ‘‘ जावेद बोला। ’’۱۰ वीं तक हम साथ साथ पड़े हैं । मेरे साबर मैं बाक़ाादगई से आती है कालेज पड़ने के लिए शहर जाती है ‘‘
ओर। । । ‘‘
ओर क्या ؟ जावेद उस का मुंह देखने लगा। सरदार जी यह चहरे का रंग क्यों बदल गया है क्या दिल का माामलह हे
दल। । । हां । । । नहीं नहीं । । । ‘‘ वह बोखला गया।
’’ तो पंजाब का दिल गुजरात पर आगया। ‘‘ जावेद उसे छीड़ने लगा। दरासल मधू चीज़ ही ऐसी है आप का दिल आगया है तो कोई बरी बात नहीं है । । लगए। । । रहे। मनज़ल खुद बह खुद आसान हो जाए गई। जलोस आगे बड़ता गया।
वह बार बार मड़ कर मधू को उस वक़्त तक देखता रहा जब तक वह आँखों से ओझल न होगई। उसे उस बात की खुशी थी जलोस मैं शरीक होने के बहाने उस ने मधू का घर देख लिया है जावेद मधू को जानता है यह और भी अछी बात थी। अब तो जावेद से मधू के बारे मैं सारी मालोमात मल सकती है और फिर उस ने ताड़ भी लिया है कि उस का और मधू का दिल का माामलह है अब माामलह आगे बड़े तो जावेद उस मैं साथ दे सकता है
जलोस पीर बाबा की दरगाह पर पहूंच गया नदी के कनारे एक बड़े से मैदान मैं बनी एक दरगाह थी। दरगाह के चारों तरफ़ आम और बरगद के बड़े बड़े दरख़त थे और आस पास खीतों के सलसले। दरगाह के क़रीब एक बड़ा सा कनवां था और दरगाह से लग कर एक छोटा सा मकान भी था दरख़तों के सएे मैं जगह जगह दीगईं छड़ी हुई थी जिन मैं खाना पक रहा था कुछ दीगों मैं खाना तयार हो गया था जलोस मैं शरीक लोग मैदान मैं बैठ गए।
लाड उसपीकर से बारबार अालान हो रहा था कि लोग जिल्द अज़ जिल्द क़तार मैं बैठ जाईं खाना शुरू हो रहा है वह और जावेद एक पीड़ के नीचे बैठ गए। खाने की तक़सीम शुरू होगई। जरमन की रकाबयों मैं खाना उन के सामने आया। खाना मीठा चओल था चओल और गड़ से बनाया हुआ मीठा चओल। जावेद वहां बैठने से क़बल क़रीब लगई दोकानों से आम का अचार। पापड़ और पकोड़े ले आया था एक नज़र मैं उसे यह खाना बड़ा अजीब लगा उस ने आज तक उस क़िस्म का खाना नहीं खाया था
खाये सरदार जी। । । यह खाना साल मैं सिर्फ़ एक बार पकता है जावेद ने उसे टोका तो उस ने खाना शुरू क्या। एक दो नवाले हलक़ से नीचे अतरने के बाद उसे महसूस हुआ खाना तो बड़ा लज़ीज़ है उसे पकोड़ों चने की चटनी और आम का अचार के साथ खाया जाए तो उस की लज़त दोबाला हो जाती है पलीट मैं का खाना खतुम होने से क़बल खाना तक़सीम करने वाली पलीट मैं खाने का ढीर लगा दीते थे। ढीर देख कर उसे महसूस होता था कि बहुत खाना है खतुम नहीं हो गा। लेकिन देखते ही देखते वह पीट मैं पहूंच जाता था उस ने भूख से ज्यादा ख लिया था
खाना ख कर उस ने दरगाह के कनवीं से पानी पया। लोग खाना खाने के लिए ख़ोक़ डर जोक़ आ रहे थे। थोड़ी देर के बाद अोरतीं भी खाना खाने के लिए आने लगईं । अोरतों का दूसरी जगह अनतज़ाम क्या गया था
यह खाने का सलसलह शाम चार बजे तक चलता रहेगा। ‘‘ जावेद कहने लगा। उस मैं आस पास के गांव से भी लोग शरीक हूं गए। खाना ख कर वह नदी कनारे चलते चलते वापिस आ गए। नदी मैं बराे नाम पानी था
वापस दुकान पर आ कर उस ने रघो और राजो को भी खाने की छटी दे दी। वह लोग भी खाना खाने के लिए पीर बाबा की दरगाह पर जाने वाली थे। उन के जाने के बाद वह दुकान मैं अकीला रह गया। लेकिन दुकान मैं कोई काम भी नहीं था उस के दिल मैं आया दुकान बनद कर के सौ जाए। कोई गाहक तो आने से रहा। अीद मीलाद अलनबी की वजह से शायद गाहकों ने समझ लिया था उस की भी दुकान बनद रहे गई या फिर अनीं उस की दुकान के सामान की ज़रूरत महसूस नहीं हो रही थी।
वह करसी पर बैठ कर ओनघने लगा। और फिर कानटर पर सर रख सौ गया। एक दो बार चौंक करास की आंख खली। उसे लगा जैसे कोई आया है लेकिन उस ने जब देखा सामने सड़क पर दूर दूर तक सनाटा है तो वह फिर दोबारा कानटर पर सर रख कर सौ गया।
राजो और रघो दो घण्टे के बाद आए। उन के आने तक उस ने एक अछी ख़ासी झपकी ले ली थी। शाम पाँच बजे के क़रीब ख़बर आई कि चोराहे पर कुछ गड़बड़ हुई है तफ़सीलात मालूम करने पर पता चला कि सवीरे से ही चोराहे पर कुछ लोगों ने बोरड लगाे थे के पीर बाबा की दरगाह पर जशन अीद मीला अलनबी के सलसले मैं होने वाली खाने मैं हनदो शरीक न हूं । यह धरम के ख़लाफ़ है मलछ लोगों का खाना खाना अपना धरम भरशट करना है उस के बओजोद लोग खाना खाने के लिए जाने लगए तो उन्हों ने अनीं जाने से रोकने की कोशिश की। किसी के साथ माामलह तकरार से बड़ कर झगड़े तक पहूंच गया तो कुछ लोग दबा मैं आ कर सहम कर उन की बात मान कर वापिस अपने घरों को लोट गए।
एक बार तकरार इतनी बड़ी के माामलह हा था पाई तक पहूंच गया। उस के बाद रोकने वालों ने चोराहे पर लगई झनडयां नकाल कर आग मैं जलानी शुरू कर दी। सजओट और आराश को नुक़सान पहनचाने लगए। मसलमानों की बनद दकानों पर पथरा करने लगए।
जब मसलमानों को मालूम हुआ तो वह भी एक जगह जमा हो गए। उस पर वह लोग उन मसलमानों पर पथरा करने लगए। जवाब मैं मुसलमान भी पथरा करने लगए। जिस से माामलह और बड़ गया। पथरा मैं दोनों जानब कुछ और लोग शामिल हो गए। उस से क़बल के माामलह सनगईन सोरत हाल अख़तयार करे ، गांव के कुछ बड़े लोगों ने दोनों गरोहूं को समझा कर माामलह रफ़ा दफ़ा कर दया। और दोनों को अपने अपने घरों को भीज दया। जिन्दगई फिर से मामोल पर आ गई।
Contact:-M.Mubin
303- Classic Plaza, Teen
BattiBHIWANDI- 421 302
Dist. Thane ( Maharashtra)
Mob:-09322338918

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